ऐप बेस्ट शिक्षा के नुकसान ज्यादा

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कोरोना के साथ ही स्टूडेंट्स के लिए जो मोबाइल ऐप आधारित कक्षाएं शुरू हुई हैं, उसके कई दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। पहला तो यही कि जिनके पास इन कक्षाओं से कनेक्ट होने की हैसियत नहीं है, या जिनका इंटरनेट स्लो है, वे ऐसी शिक्षा व्यवस्था से कोसों दूर हैं। इसके अलावा बच्चे पढ़ने के बहाने मोबाइल या लैपटॉप पर गेम्स खेलते हैं। ऐसे भी कई समाचार हैं, जिनमें भरी कक्षा में मोबाइल ऐप को हैक किया गया और उसमें पॉर्न फिल्म चलाई गई। डिजिटल क्लासेस सबसे पहले जूम ऐप पर चलाई गईं, जिसके हैक होने की कई शिकायतें आईं। अप्रैल के महीने में दिल्ली में जब इसी ऐप से ऑनलाइन क्लास चल रही थी, तो सिलेबस की जगह अचानक पॉर्न फिल्म चलने लगी। इसके तुरंत बाद चंडीगढ़ में भी ऐसी घटना घटी। वहां टीचर ऐप के जरिए 10वीं के करीब 45 छात्र-छात्राओं को पढ़ाना शुरू करने वाली थीं कि तभी छात्रों के मोबाइल स्क्रीन पर पॉर्न फिल्म चलने लगी। जूम ऐप के बारे में टीचर को ज्यादा जानकारी नहीं थी। इसीलिए पांच मिनट तक कुछ समझ में ही नहीं आया और तब तक फिल्म चलती रही।

पुलिस ने मामले की जांच की तो पता चला कि ऐप को हैक किया गया। हैकिंग की यह खबर सिर्फ भारत की ही नहीं है, दुनिया भर से ऐसी कई घटनाओं के समाचार हैं। हालांकि, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस ऐप को लेकर अप्रैल में ही गाइडलाइंस जारी की थीं, जिसके बाद शिक्षण संस्थाओं ने इसका प्रयोग करना बंद कर दिया। इसकी जगह अब वे माइक्रोसॉफ्ट टीम, गूगल मीट आदि जैसे एप का इस्तेमाल कर रही हैं तो ट्यूशन देने वाले कभी-कभार बच्चों को पढ़ाने के लिए वॉट्सऐप भी चला लेते हैं। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह की ऑनलाइन क्लासेस सफल नहीं हो पा रही हैं, क्योंकि वहां इंटरनेट कनेक्टिविटी की बड़ी समस्या है। ऐसी क्लासेस के चलते कम पढ़े-लिखे पैरंट्स भी खूब परेशान होते दिख रहे हैं। कोरोना ने कमाई कम कर दी है, फिर भी उन्हें स्मार्ट फोन, लैपटॉप या टैबलेट अरेंज करने पड़ रहे हैं। जो बच्चे मोबाइल या लैपटॉप के जरिए पढ़ रहे हैं, उन्हें न तो स्कूली वातावरण मिल रहा है और न ही वे टीचरों के साथ अच्छे से जुड़ पा रहे हैं। इसी के चलते ट्यूशनों की जरूरत एकाएक बढ़ गई।

अधिकांश अभिभावक ऑनलाइन क्लासों के साथ-साथ ट्यूशन पढ़ाने वालों का भी सहारा ले रहे हैं। लेकिन यह कोई नहीं समझा पा रहा है, कि जो बच्चे स्कूल में भी नहीं पढ़ते थे, वे ऑनलाइन माध्यमों से कैसे पढ़ाई पूरी कर पाएंगे। फिर ट्यूशन का बोझ हमेशा से अभिभावकों की जेब पर डाका डालता रहा है। इस साल की शुरुआत में आई एनएसएसओ की सर्वे रिपोर्ट ने भी माना है कि भारतीय परिवारों की कमाई का एक तिहाई हिस्सा बच्चों की अतिरिक्त शिक्षा यानी ट्यूशन पर खर्च होता है। कहने को तो निजी स्कूल बाहर से टयूशन लेने को मना करते हैं, पर बढ़ते कॉम्पिटिशन और ज्यादा अंक लाने की लालसा बच्चों और अभिभावकों को कोचिंग तंत्र के समक्ष नतमस्तक होने पर मजबूर कर देती है। इसके अलावा कामकाजी परिवारों के बच्चे अक्सर स्कूली होमवर्क पूरा नहीं कर पाते। ऐसे बच्चों के लिए टयूशन दिलवाना जरूरी भी हो जाता है।

गणित, विज्ञान और अंग्रेजी जैसे कुछ सब्जेक्ट तो ऐसे हैं, जिनके लिए पैरंट्स प्रफेशनल ट्‌यूटरों का इंतजाम करते ही हैं, भले कितनी ही मजबूरी हो। ऑनलाइन क्लासों के बहाने बच्चे अब पूरे दिन मोबाइलों से चिपके रहते हैं और गेम, पबजी आदि खेलते रहते हैं। पबजी के चलते तो कई घटनाएं भी होने लगी हैं। स्क्रीन बच्चों की आंखें भी खराब करती है, तो मोबाइल फोन का रेडियेशन उनके शारीरिक विकास में बाधा बनता है। पिछले हफ्ते भारत में हुए एक सर्वे में 80 फीसद से अधिक अभिभावकों ने माना कि लॉकडाउन में उनके बच्चों का स्क्रीन टाइम काफी बढ़ गया है, जिससे वे चिंतित हैं। इन्हीं सब दुष्परिणामों के चलते कर्नाटक और मध्य प्रदेश ने तो पांचवीं तक के छात्रों के लिए इस महीने से ऑनलाइन क्लासों पर रोक लगा दी है, बाकी राज्यों को भी जितनी जल्द समझ आ जाए, उतना अच्छा!

रमेश ठाकुर
(लेखक स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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