ट्रंप को जल्दी भूल गया अमेरिका

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अंग्रेजी में एक कहावत है, ‘आउट ऑफ साइट, आउट ऑफ माइंड,’ यानी आप नजर के सामने नहीं हैं तो आप लोगों के दिमाग में भी नहीं हैं। यह कहावत डॉनल्ड ट्रंप पर सटीक बैठती है। ट्रंप को राष्ट्रपति पद से हटे सौ दिन हो चुके हैं। वहीं फेसबुक और ट्विटर ने उन पर जो प्रतिबंध लगाया था, उसे भी इतना वक्त हो चुका है। अब अमेरिका में ट्रंप एक ऐसा विषय बन चुके हैं, जिसे लोग हंस कर टाल दे रहे हैं। राष्ट्रपति पद का चुनाव अभियान हो, या राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप का कार्यकाल, उन्होंने न केवल सोशल मीडिया का बढ़-चढ़ कर इस्तेमाल किया, बल्कि राष्ट्रपति के रूप में असर नीतिगत मामलों में भी उन्होंने अपनी बात ट्विटर के जरिये ही रखी। कई बार ऐसा हुआ कि उनके ट्वीट्स आधिकारिक और घोषित नीतियों से अलग होते और इससे वाइट हाउस के प्रवक्ताओं को परेशानी होती। राष्ट्रपति चुनाव में हार के बाद लंबे समय तक वह गलत तथ्य ट्वीट करते रहे, जिस पर इस सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म ने उन्हें बैन किया। बाद में फेसबुक ने भी उन पर पाबंदी लगाई। ट्रंप जब से ट्विटर से गायब हुए हैं, तब से उनके बारे में अखबारों में भी बहुत कम खबरें आई हैं।

वैसे, पिछले दिनों यह खबर आई कि ट्रंप अपनी खुद की सोशल मीडिया वेबसाइट लाने वाले हैं, लेकिन इस बात को भी एक महीना हो चुका है। ट्रंप के बारे में यह भी कहा जा रहा था कि वह 2024 में फिर से राष्ट्रपति पद के लिए मैदान में आ सकते हैं, लेकिन अब ये अकटलें दम तोड़ चुकी हैं। न्यूयार्क टाइम्स ने लिखा है कि ट्रंप के जाने से अमेरिका और अमेरिकी लोग सोशल मीडिया पर स्क्रॉल करते हुए राहत महसूस कर रहे हैं। इससे पहले न केवल वहां के बाशिंदे बल्कि अमेरिकी मीडिया भी इस बात से परेशान रहता था कि ट्रंप न जाने कब या ट्वीट कर दें। उनका यह रवैया न केवल आक्रामक था बल्कि वह लोगों में एक अलग तरह का नैरेटिव तैयार कर रहे थे, जो समाज के लिए कई स्तर पर घातक साबित हो रहा था। चाहे वह मुद्दा जलवायु परिवर्तन का हो, जिसकी खिलाफत ट्रंप लगातार करते रहे। या जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस हिरासत में हुई मौत के बाद जब काले लोगों ने प्रदर्शन किया, तो ट्रंप उनके खिलाफ सोशल मीडिया पर भावनाएं भड़काईं। और अंत में जाते-जाते उन्होंने कैपिटल हिल पर चढ़ाई करने के लिए भी लोगों को उकसाया। सौ दिन बाद अब ट्रंप के बारे में अगर कुछ छपता है तो यही कि ट्रंप के कार्यकाल के दौरान जलवायु परिवर्तन से जुड़े विभाग में नियुत वैज्ञानिक को पद से हटा दिया गया है।

या राष्ट्रपति बाइडेन ने ट्रंप शासनकाल के किन फैसलों को उलट दिया है। ट्रंप समर्थक अमेरिका की राइट विंग मीडिया ने भी उनसे पल्ला झाड़ लिया है। ट्रंप से जुड़ी खबरें अब इन पर न तो प्रमुखता से आती हैं और न ही चैनल के एंकर उन पर कोई विशेष रिपोर्ट कर रहे हैं। हालांकि केबल चैनल- वन अमेरिका नेटवर्क अभी भी ट्रंप के एजेंडा के साथ है। इस चैनल ने मार्च के अंत में दावा किया गया कि अमेरिका को पता नहीं है कि उनका राष्ट्रपति कौन है। रिपोर्ट में बाइडेन की जीत पर ट्रंप के ही सवाल उठाए गए। इस चैनल की पहुंच करीब 3.5 करोड़ लोगों तक है। ट्रंप के सोशल मीडिया पर वापसी पर भी संशय है। ट्विटर पर उनका लौटना मुश्किल लगता है जबकि फेसबुक ने ट्रंप पर लगे बैन को हटाने संबंधी ओवरसाइट बोर्ड की बैठक मुल्तवी कर दी है। ट्रंप समर्थक अब रिपलिकन पार्टी से उम्मीद कर रहे हैं कि वह किसी ऐसे व्यक्ति को लाएं, जो नीतियों में ट्रंप जैसा हो, मगर ट्रंप से अधिक रिफाइंड हो। ट्रंप विरोधी इस समय चैन की सांस ले रहे हैं कि बिना सोशल मीडिया के ट्रंप किसी भी तरह से अमेरिकी जनता को बरगला नहीं पा रहे हैं।

जे. सुशील
(लेखक स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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