रविवार को आषाढ़ मास की अमावस्या है। इस दिन सूर्य ग्रहण भी होगा। इसके बाद सोमवार, 22 जून से 29 जून तक आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्र रहेगी। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार सालभर में चार बार ऋतुओं के संधिकाल में नवरात्र आती है। आषाढ़ और माघ मास की नवरात्र गुप्त मानी जाती है। चैत्र और आश्विन मास की नवरात्र सामान्य होती है। ऋतुओं के संधिकाल में मौसमी बीमारियों का असर बढ़ जाता है। इस समय में खान-पान से संबंधित सावधानी रखनी चाहिए। नवरात्र में व्रत-उपवास करने से खान-पान के संबंध में होने वाली लापरवाही से बचा जा सकता है। इन दिनों में ऐसे खाने से बचना चाहिए, जो आसानी से पचता नहीं है। अधिक से अधिक फलाहार करना चाहिए। देवी मां के नौ स्वरूपों की पूजा: जो भक्त गुप्त नवरात्र में देवी दुर्गा की सामान्य पूजा करना चाहते हैं, वे देवी दुर्गा की या उनके नौ स्वरूपों की पूजा भी कर सकते हैं। ये नौ स्वरूप हैं शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
मुख्य रूप से गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की पूजा की जाती है। ये पूजा पूरे विधिविधान से करनी होती है, अन्यथा पूजा का बुरा असर भी हो सकता है। इसीलिए गुप्त नवरात्र में विशेष पूजा किसी योग्य पंडित के मार्गदर्शन में ही करनी चाहिए। दस महाविद्याओं की पूजा: गुप्त नवरात्र में विशेष रूप से दस महाविद्याओं की आराधना की जाती है। ये दस महाविद्याएं हैं- काली, तारा देवी, त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुरी भैरवी, मां धूमावती, मां बगलामुखी, मातंगी व कमला देवी। साधकों के लिए : इस बार गुप्त नवरात्रि वृद्धि योग में शुरू हो रही है। ज्योतिषियों के अनुसार ग्रह-नक्षत्रों के संयोगों से साधना करने वाले गृहस्थ साधकों को सिद्धि प्राप्त करना आसान होगा। यह अवसर साधकों के लिए खास रहेगा। गुप्त नवरात्र 22 जून से शुरू होकर 29 जून को समाप्त होगी। पारण 30 जून को होगा। काशी के ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्र के अनुसार गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है।
इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं। नहीं पहनने चाहिए काले कपड़े: पं. मिश्र के मुताबिक नौ दिन व्रत रखने वाले साधकों को काले कपड़े नहीं पहनने चाहिए। नमक और अनाज का सेवन नहीं करना चाहिए। दिन में सोना नहीं चाहिए। किसी को भी अपशद नहीं बोलना चाहिए। साधक को माता की दोनों समय आरती करना चाहिए। इन दिनों में दुर्गा चालीसा और दुर्गा सप्तशती का पाठ विशेष लाभदायी होता है। गुप्त नवरात्रि में नौ दिनों तक उपवास रखने का विधान बताया गया है। इस नवरात्रि में माता की आराधना रात के समय की जाती है। इन नौ दिनों के लिए कलश की स्थापना की जा सकती है। अगर कलश की स्थापना की है तो दोनों समय मंत्र जाप, दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए। ऋषि शृंगी ने बताई गुप्त नवरात्रि कथा : ऋषि शृंगी साधना करने के बाद भक्तों को दर्शन दे रहे थे।
उसी वक्त भीड़ में एक महिला ने ऋषि का आशीर्वाद लेने के बाद अपनी व्यथा सुनाई कि मेरे पति व्यसनी है। इस वजह से हम रोज पूजन नहीं कर पाते हैं। क्या ऐसा उपाय करें जिससे मुझे कम समय में देवी का आशीर्वाद मिले। ऋ षि ने बताया अगर गुप्त नवरात्र में 10 महाविद्याओं का पूजन नियमानुसार कर लेते हैं, तो जातक को पूर्ण फल प्राप्त होता है। महिला ने गुप्त नवरात्रि का नियमानुसार पूजन किया। इससे उनके पति सदाचारी गृहस्थ हुए और घर में समृद्धि आई। तभी से गुप्त नवरात्रि गृहस्थ लोगों में प्रचलित हुई। रात्रिकालीन अनुष्ठान: माघ और आषाढ़ महीने में पडऩे वाली गुप्त नवरात्रि में 10 महाविद्याओं का पूजन और साधना की जाती है। गुप्त नवरात्रि में रात्रिकालीन साधना होती है। देवी शास्त्रों की मान्यता है कि गुप्त नवरात्रि में 10 महाविद्या के पूजन से मनोकामना पूर्ण होती है। गुप्त नवरात्रि में, प्रत्यक्ष नवरात्रि जैसा ही साधना, पूजा पाठ करने का नियम है। पहले दिन कलश स्थापना व आखिरी दिन विसर्जन के बाद पारण होता है।