कोर्ट से दिखी उम्मीद की किरण

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दिल्ली की सरहदों पर केंद्र के कृर्षि कानून के खिलाफ पिछले डेढ़ माह से आंदोलन कर रहे किसानों को सुप्रीम कोर्ट की ओर से राहत और उमीद की किरण दिखाई देने लगी है। एक याचिका के तहत पूरे मामले को संज्ञान में लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने जहां केंद्र सरकार को फटकार लगाई है वहीं किसानों का आंदोलन रोकने को कानूनों को होल्ड पर रखने का भी संकेत दिया है। कोर्ट का यह कहना कि हम प्रदर्शन के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन अगर कानून पर रोक लगा दी जाती है तो किसान या प्रदर्शन स्थल से अपने घर को लौट जाएंगे? किसान कानून वापस करना चाहते हैं जबकि सरकार मुद्दों पर बात करना चाहती है। हम अभी कमेटी बनाएंगे और कमेटी की बातचीत तक कानून के अमल पर हम स्टे करेंगे। कोर्ट का यह कहना इस बात का संकेत है कि कोर्ट कोई भी निर्णय ऐसा नहीं लेना चाहता कि जिससे आंदोलित किसान उग्र हो जाएं। वह देश में शांति बनाए रखने के लिए कानून पर स्टे लगा सकता है। उम्मीद है कि कोर्ट दो-तीन माह के लिए कानून पर रोक लगाएगी, जिससे किसान कोर्ट के निर्णय पर घर वापस चले जाएंगे, इस दौरान कोर्ट द्वारा कमेटी व सरकार इस समस्या का समाधान ढूंढ लेगी।

सोमवार को सुनवाई के दौरान किसान संगठनों के वकील द्वारा कोर्ट को यह विश्वास दिलाया गया कि गणतंत्र दिवस के अवसर पर टै्रटर मार्च नहीं होगा। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसान संगठनों को कोर्ट के निर्देश पर कोई एतराज नहीं होगा। यदि कोर्ट द्वारा कानून पर रोक लगाई जाती है तो आंदोलित किसान घर वापसी की राह पकड़ सकतें हैं। कोर्ट का सरकार पक्ष से यह पूछना कि वह स्वयं कानून पर रोक लगाएगी या कोर्ट को ही लगानी पड़ेगी। चीफ जस्टिस एसए बोबड़े का यह कहना कि किसानों की चिंताओं को गठित होने जा रही कमेटी के समक्ष रखे जाने की जरूरत है। इस बात का संकेत है कि कोर्ट किसानों के तर्क से सहमत है, हो सकता है कि वह अपना निर्णय किसानों के पक्ष में दे। योंकि कोर्ट के निर्णय को आंदोलित किसान मानेंगे। आंदोलन के स्थगित होने पर जहां ठंड और बारिश में संघर्ष कर रहे किसानों को थोड़ी राहत मिलेगी वहीं दिल्ली के आवागमन में यात्रियों की भी परेशानी खत्म हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट का कानून के अमल स्टे के संकेत देना किसान, आम जनता और सरकार के लिए राहत की उमीद है। स्टे के दौरान सरकार व किसान अपना तर्क देकर कोर्ट में अपना पक्ष मजबूत कर सकते हैं।

कोर्ट के प्रस्ताव पर यदि कमेटी गठित होगी तो वह सरकार और आंदोलित किसानों का पक्ष सुनेगी। कमेटी की सिफारिश पर कोर्ट अगला कदम उठाएगी। यदि यह कानून किसान हित में नहीं है, जिसके लिए वह लगभग पौने दो माह से संघर्षरत हैं, कोर्ट सरकार को कानून रद करने के लिए बाध्य कर सकता है। सोमवार को सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपना निर्णय देने के लिए एक दिन का समय मांगा है, उमीद है कि मंगलवार (आज) को कानून पर स्टे दे और एक कमेटी के गठन का प्रस्ताव भी दे जो दोनों का पक्ष सुनते हुए अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को देगी। यदि कमेटी को अपनी रिपोर्ट देने में तीन-चार माह का समय लगता है तो यह किसानों के लिए राहत होगी, क्योंकि कड़ाके की सर्दी में आंदोलन कर रहे किसान घर जाकर अपनी खेती देख सकेंगे और रबी की फसल की तैयारी कर सकेंगे। उधर राजधानी में आवागमन करने वालों को भी राहत मिल सकेगी। ऐसा संभव है कि कमेटी की रिपोर्ट के बाद यदि कोर्ट का फैसला किसान हित में आता है तो यह आंदोलन खुद ही खत्म हो जाएगा।

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