दिल्ली की प्यास हरियाणा बुझाता आया हैं और इस मुद्दे पर दोनों प्रदेशों की सरकारों के बीच टकराव होता आया है। एक बार जब भजनलाल हरियाणा कके मुख्यमंत्री थे व बंटवारे को लेकर विवाद चल रहा था तो उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि हम किसी हालात में दिल्ली को प्यासा नहीं रखेंगे क्योंकि हमारी संस्कृति में किसी को जल पिलाना तो काफी अच्छा माना जाता हैऔर किसी प्यासे को पानी पिलाना बहुत अच्छा काम माना जाता है। मगर जब हाल ही में प्यास के कारण आस्ट्रेलिया के गांवों व शहरों की ओर रूख कर वहां के पानी स्त्रोतों पर हमला करने के कारण आस्ट्रेलिया में 10,000 ऊंटो को गोली मारने की खबर पढ़ी तो दिल हिल गया। यह बहुत जघन्य कदम है कि किसी को महज इसलिए गोली मार देना क्योंकि वह पानी पीना चाहता है। ध्यान रहे वहां के सूखा प्रभावित क्षेत्रों से परेशान व जंगलों की आग के कारण पानी की तलाश में शहरों व गांवों के पानी स्रोतों पर हमला करने वाले ऊंटों से स्थानीय नागरिक व सरकार बहुत परेशान है। बुधवार को अफसरों ने उन्हें मारने का हुक्म जारी किया। अनुमान है कि एक सप्ताह में 10,000 ऊंटो के मरने का काम पूरा हो जाए।
वहां जबरदस्त गर्मी पड़ रही है व ऊंटों को मारने के लिए शिकारियों की सेवाएं ली जा रही हैं। जंगलों में लगी आग तो मानों वहां के हालात खराब करने में आग में घी का काम कर रही है। ज्यादातर समस्या आस्ट्रेलिया के दक्षिणी इलाको में है जहां बहुत कम लोग रहते हैं। वहां तो लगभग अमेरिका के कैनटकी इलाके की तरह महज 2300 लोग ही रहते हैं। माना जाता है कि आस्ट्रेलिया में रहने वाले ऊंटों की संख्या करीब 10 लाख है। ऊंट ही नहीं दूसरे जंगली जानवर भी प्यास व आग की गर्मी के कारण बहुत परेशान हैं। पिछले दिनों तो एक कोआला में प्यास के कारण पानी की बोतल से पानी पीने के फोटो वायरल हो गई। वहां अन्य तस्वीर में सड़क के दोनों और पड़े झुलसे हुए जानवरों की तस्वीर लेते हुए एक आदमी को दिखाया गया था। माना जाता है कि लाखों जानवर आग व गर्मी के कारण मर जाते हैं। पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा आस्ट्रेलिया को जानवरो की प्रजाति का नष्ट होने का नुकसान पहुंचा है। सबसे पहले 11 नवंबर 2016 में आस्ट्रेलिया के टोवूंबा इलाके से आग शुरू हुई थी जोकि देखते ही देखते कुछ दिनों में 20000 है टेयर में फैल गई व उसने छह मकानों को नष्ट कर दिया।
देश के दक्षिण पूर्वी इलाके में आग बुरी तरह से फैली हुई हैं। यह एक लाख वर्ग किलोमीटर इलाके को अब तक अपने आगोश में ले चुकी हैं व इससे जंगलों में पांच लाख से ज्यादा जानवर प्रभावित हुए हैं। सिडनी सरीखे शहर तक इससे नहीं बच पाया। अब तक इसके कारण 2500 भवन व 1800 घर जलकर बरबाद हो गए व 25 लोगों को अपनी जिदंगी से हाथ धोना पड़ा। आग के कारण सिडनी का आकाश लाल हो गया व वहां इतना अधिक धुंआ फैल गया मानों हर व्यक्ति 27 सिगरेट पी रहा हे। माना जा रहा है कि आग के कारण 1 अरब जानवर मर गए हैं। वहां का मौसम बेहद गर्म व सूखा हो गया है। यही हालात आस्ट्रेलिया की राजधानी कैनेबरा के बड़ी तादाद में पेड़ पौधे व वनस्पति नष्ट होने से है। इसका पर्यावरण पर कितना बुरा असर पड़ेगा इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है। धुंआ इतना ज्यादा है कि इसकी तस्वीरे नासा के अंतरिक्ष में स्थित सेटेलाइट द्वारा देखी जा रही हैं। वहां ज्यादातर लोग दूर-दराज जंगलों के पास गांवों में रहते हैं। उनके घर उजड़ गए हैं व वे हजारो किलोमीटर दूर रहने के लिए मजबूर हैं।
न तो वे काम पर जा पा रहे हैं और न ही उनके बच्चे स्कूल जा पा रहे हैं। इसके कारण आस्ट्रेलिया को जबरदस्त आर्थिक नुकसान हुआ हैं। फसलें बहुत कम तैयार हो रही हैं। लोगों की कार्यक्षमता घट गई है व उनके स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ रही है। लोगों ने अपने खर्च कम कर दिए हैं। वहां की 90 फीसदी लकड़ी जल कर नष्ट हो गई हैं। कंगारू का देश कहने जाने वाले आस्ट्रेलिया में जो पर्यटन आए थे वे वापस जाने लगे हैं व नए पर्यटको का आना लगभग बंद हो गया है। आस्ट्रेलिया में जिन ऊंटों की स्थिति इतनी खराब हो रही है उनके पूर्वजो ने 1840 में पहली बार यहां की धरती पर कदम रखा था। वहां इन्हें भारत से सामान लाने-ले-जाने के लिए लाया गया था। वे मूलत: अरब से भारत आए। वे वहां के रेगिस्तान में काम के लिए ले जाए जाने लगे। 1840 में भारत से इनका आयात शुरू किया गया व ज्यादातर ऊंट दक्षिण आस्ट्रेलिया लाए गए व इनकी संख्या 10- 220 रही थी। उन्हें वहां सामान ढोने के लिए लाया जाता था व एक ऊंट हर दिन 70 किलोमीटर तक का सफर करते।
उनका उपयोग परिवहन व सामान ढोने के लिए किया जाता था मगर गाड़ी के अविष्कार के बाद ऊंटों की उपयोगिता कम होने लगी व 20वीं सदी में उनकी जगह वाहनों का इस्तेमाल किया जाने लगा। ऊंटों के मालिको ने उन्हें जंगलों में छोड़ दिया। बताते हैं कि 2008 में आस्ट्रेलिया में उनकी संख्या 10 लाख हो गई थी व 8-10 साल में उनकी जनसंख्या के दुगने होने की आशंका थी। माना जाता है कि इस देश में ऊंट पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। खासतौर से सूखे इलाको में वे और भी ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। शुरू में भारत व पाकिस्तान से लाए जाने वाले ऊंटों को उनके मुस्लिम मालिको के साथ लाया जाता था जो कि उनसे बातचीत कर काम करना सिखाते थे। वे पश्तून, अफगानी, लूची, सिंधी व पंजाबी थे। भारत से आने वाले ऊंट बीकानेर से होते थे व हर ऊंट 600 किलोग्राम तक वजन उठाकर 40 किलोमीटर तक आसानी से जा सकता है। बाद में आस्ट्रेलिया के मूल आदिवासी लोगों ने जंगलों में छोड़े गए ऊंटों को इस्तेमाल करना सीख लिया। वे उनकी सवारी करने व माल लादने में उनसे काम लेने लगे।
हर साल ऊंटों की जनसंख्या 10 फीसदी बढ़ जाती है व उपलब्ध वन स्थिति का 80 फीसदी भाग हजम कर जाते हैं। वो ऐसे पेड़ पौधे भी खाते हैं जिन्हें आम शाकाहारी जानवर नहीं खाते हैं। वे पांच किलोमीटर दूर से उस नमी के कारण उस जगह का पता लगा लेते हैं जहां पानी होता है व जानवरों के बाड़े, नलों, बाथरूम आदि को तोड़- फोड डालते हैं। अमेरिका, यूरोप, जापान आदि देशों में उनका मांस बहुत पसंद किया जाता है व सऊदी अरब, सयुक्त अरब अमीरात, ब्रुनेई व मलेशिया में भी उन्हें अच्छा भोजन माना जाता है। आस्ट्रेलिया में उनके मास से जानवरों का खाना तैयार किया जाता है। ऊंट के दूध को भी तमाम रोगों का ईलाज माना जाता है। हर साल आस्ट्रेलिया की ऊंट डेरी 50000 किलो दूध उपलब्ध करवाती है। हमारे यहां की तरह आस्ट्रेलिया में ऊंटों को जंगली पशु माना जाता है व उन्हें एक समस्या के तौर पर देखा जाता है।
विवेक सक्सेना
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)