सर्व समावेशी ज्ञान… नागालैंड की राजधानी कश्मीर

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नाम-जय प्रकाश, पद – प्रधानाध्यापक, विषेश योग्यता- राज्यपाल द्धारा सम्मानित शिक्षक, जिला- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश। हमारा राजस्थान शिक्षा के मामले में स्वतंत्रता से पूर्व इतना विकसित नहीं था। ठाकुरों और नवाबों को तो केवल ‘बाप जी घणी खमा’ से अधिक शिक्षित जनता चाहिए ही नहीं थी जिसका प्रबंध वे अपने लट्ठ के बल पर किए हुए थे। हां, सेठों ने गांधी जी के प्रभाव के कारण शिक्षा के प्रचार में पर्याप्त रुचि ली। अपने इलाकों में स्कूल खोले जिनमें अध्यापक उत्तर प्रदेश के मेरठ, आगरा से आते थे। इसलिए हम उत्तर प्रदेश को बहुत शिक्षित मानते आए हैं। लगता है वहां का तो गधा भी संस्कृत बोलता होगा। हम यह भी मानते रहे कि उत्तर प्रदेश के पास दुनिया के सभी प्रश्नों के उत्तर हैं। लेकिन आज ऊपर संदर्भित गुरुजी द्वारा दिए गए उत्तरों से हमें बहुत सदमा लगा। जैसे ही तोताराम आया हमने उसी पर सारी झुंझलाहट उतार दी। कहा- देखा, या हाल हो गया है उत्तर प्रदेश का? बोला- क्यों या हुआ? सब कुछ ठीक तो है। राम मंदिर का फैसला आ गया और अब एक भव्य मंदिर बनेगा।

दुनिया की सबसे ऊंची राम की मूर्ति बनेगी। दिवाली पर लाखों दीये जलाए गए ही थे। गायों को सर्दी से बचाने के लिए कोट पहनाए जा रहे हैं। और क्या चाहिए? हमने कहा- बन्धु, हम इन प्रतीकात्मक कामों की बात नहीं कर रहे हैं। हम तो उत्तर प्रदेश के एक प्रधानाध्यापक की बात कर रहे हैं जो प्रतापगढ़ के डीएम के औचक निरीक्षण के समय नागालैंड की राजधानी कश्मीर, तमिलनाडु की राजधानी पंजाब और पंजाब की राजधानी चंदौली पढ़ा रहा था। और मजे की बात यह कि स्कूल के अन्य बच्चों को भी यही पढ़ाया जा रहा था। बोला- तो क्या हुआ? जब एक मुख्यमंत्री किसी शहर का नाम बदल सकता है, कोई शिक्षा मंत्री देश का इतिहास बदल सकता है या कोई केंद्रीय मंत्री डार्विन को गलत सिद्ध कर सकता है, कोई मुख्यमंत्री बत्तखों के पंखों से ऑक्सीजन निकलवा सकता है तो एक प्रधानाध्यापक तमिलनाडु की राजधानी पंजाब क्यों नहीं बना सकता।

मैं तो कहता हूं उसे पंजाब की राजधानी चेन्नै बताना चाहिए था। इसमें बुराई क्या है? अच्छा है इससे सुदूर उत्तर और सुदूर दक्षिण के दो प्रान्तों में एकता स्थापित हो जाएगी। सकारात्मक और राष्ट्रवादी दृष्टि रखा कर। हमने कहा- लेकिन इस प्रधानाध्यापक को तो राज्यपाल ने पुरस्कृत भी किया हुआ है। क्या ऐसे लोगों को पुरस्कृत किया जाता है? बोला- पुरस्कार की एक अलग पद्धति और प्रक्रिया है। उसके लिए अपना मुख्य काम नहीं बल्कि अन्य आलतू-फालतू काम करने होते हैं जैसे पार्टी का टिकट पाने के लिए जनता की सेवा नहीं, ‘मन की बात’ सुनते हुए और बिना बात के जुलूस और रैलियां करते हुए फोटो खिंचवाकर और स्थानीय अखबारों में छपवाकर उनकी कटिंग ऊपर भेजनी होती है। स्वच्छता के लिए मेहंदी प्रतियोगिता और बेटी बचाओ के लिए रंगोली प्रतियोगिता करवानी होती है। देश भक्ति का परिचय देने के लिए एक खास रंग की जैकेट पहननी होती है। सत्ताधारी दल के अनुसार बच्चों को वितरित की जाने वाली साइकलों का रंग कभी काला और कभी भगवा करवाना होता है। तू अपने साथ के उन अध्यापकों को याद कर जिन्हें श्रेष्ठ अध्यापक का पुरस्कार मिला था।

एक हॉस्टल का वार्डन जो हेड ऑफिस के अधिकारियों के लिए हॉस्टल से खाने की व्यवस्था करवाता था, एक ड्राइंग टीचर जो उस जमाने में जब फोटो सस्ता काम नहीं था तब अधिकारियों के परिवार के मुफ्त फोटो खींचता था। एक वर्क एसपीरियंस टीचर जो प्रिंसिपल के कूलर पंखे आदि की मुफ्त मरम्मत किया करता था, एक प्राइमरी टीचर जो अपनी कार में प्रिंसिपल और अधिकारियों को फ्री घुमाता था और एक महिला टीचर जिसका पति मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव था और अधिकारियों को मुफ्त टोनिक पहुंचाया करता था। यदि परीक्षा परिणाम पुरस्कार का आधार होता तो तुझे आज तक जाने कितनी बार मिल जाता पुरस्कार। हमने कहा- चलो फिर भी अच्छा हुआ जो डिस्ट्रिट मजिस्ट्रेट मार्कंडेय शाही ने उसे सस्पेंड कर दिया और ट्रांसफर कर दिया। बोला- तो उससे क्या होगा? सस्पेंड कर दिया तो मुफ्त में आधी-पौनी तनख्वाह लेगा और यदि ट्रांसफर कर दिया तो अच्छा है अपने इस सर्व समावेशी ज्ञान का लाभ प्रदेश के दूसरे बच्चों को भी प्रदान कर सकेगा।

                                                            रमेश जोशी
(लेखक देश के वरिष्ठ व्यंग्यकार और ‘विश्वा’ (अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, अमरीका) के संपादक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।मोबाइल – 09460155700। blog-jhoothasach.blogspot.com (joshikavirai@gmail.com) 

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