नागरिकता कानून पर सियासी महाभारत

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नागरिकता संशोधन कानून पर इन दिनों देश भर में सियासी घमासान मचा हुआ है। अफसोसनाक यह है कि जिनका इस कानून से कोई लेना-देना नहीं है वे सडक़ों पर उतर कर अपनी ताकत के साथ ही देश के संसाधनों को भी आवेश में नुकसान पहुंचा रहे हैं। इसमें हैरान करने वाली बात यह भी है कि ज्यादातर लोगों को यही नहीं पता कि सीएए क्या है फिर भी फुफकार रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब तक इसमें डेढ़ दर्जन बेकसूर जानें गवां चुके हैं। ये वे लोग हैं जिनके परिवार की जिम्मेदारी लेने कोई नहीं आगे आएगा। यह सच है कि सरकार ने कानून को लेकर संभावित चुनौतियों के बारे में पहले से नहीं सोच रखा था। सचेत होती तो इतना भयावह मंजर सामने नहीं आता। देर से सही अब सरकार चेती है। बीजेपी देश भर में रैलियों के जरिये लोगों को संशोधित कानून के बारे में बताएगी। मीडिया चैनलों में भी अब इस पर एक कवायद शुरू हुई है। वैसे संसद में सरकार की तरफ से यह बहस के दौरान बार-बार बताया गया कि इस कानून का मकसद पाकिस्तान-बांग्लादेश और अफगानिस्तान में जो अल्पसंगयक धर्म के आधार पर प्रताडि़त किए जाने के कारण हिंदुस्तान भाग कर आये हैं उन्हें सरकार नागरिकता देने के लिए कानून लाई है इसमें हिन्दू सिख बौद्ध जैन पारसी और ईसाई शामिल हैं। यह सर्वज्ञात है कि उन पड़ोसी देशों में राज्य का धर्म इस्लाम है। इसलिए वहां के अल्पसंख्यकों के लिए यह कानून प्रताडऩा से मुक्ति का रास्ता देता है। जो इसकी मुखालफत करते हुए कहते हैं कि मजहब की बुनियाद पर एक्ट पास हुआ है इसलिए यह भारतीय संविधान की मूल अवधारणा के विपरीत है आखिर क्या कहना चाहते हैं यह बात समझ से परे नहीं है। जाहिर है सवाल वोट बैंक का है। यही चिंता उन्हें संविधान की मनचाही व्याख्या के लिए विवश करती है।

दिक्कत यह है कि उन पड़ोसी देशों से जो भारत में घुसपैठ कर रह रहे हैं उनको भी देश का हिस्सा बनाए जाने की वकालत हो रही है। प्रधानमंत्री ने भी पिछले दिनों दिल्ली के रामलीला मैदान में शरणार्थी और घुसपैठिये पर छाए सियासी कुहासे को छांटने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि शरणार्थी जब सीमा में प्रवेश रता है तब स्थानीय एजेंसीज को अपने आने की जानकारी देकर राहत की बाट जोहता है जबकि घुसपैठिया बिना बताए गुजारे को सोचता है। उनकी मंसा पर सवाल उठ सकता है लेकिन जिन अल्पसंख्यकों को इस कानून में कवर किया गया है वे प्रताडऩा की स्थिति में भला और किस देश में अपनी ठौर तलाश सकते हैं सिवाय भारत के। अब इसमें किसी को कोई साजिश नजर आती हो तो यह उसके विवेक पर निर्भर है। खुद महात्मा गांधी ने देश के विभाजन के बाद कहा था कि जब हिन्दू और सिख भाइयों को भारत लौटने का मन करे तो स्वागत है। बापू विभाजन की वजह और उसके संभावित खतरे को जानते थे। आखिर उनका आंकलन सच निकला। तत्क लीन पीएम पंडित नेहरू को पाकिस्तान के पीएम लियाकत अली के साथ अल्पसंख्यकों के सुरक्षा हितों को लेकर समझौता करना पड़ा। भारत का मिजाज ही ऐसा है यहां तो करार का पूरी ईमानदारी से पालन हुआ लेकिन पाकिस्तान में ठीक करार के उलट हुआ। आंकड़े गवाह हैं। बटवारे के बाद पाकिस्तान में 21 फीसद अल्पसंख्यक थे और भारत में 8 फीसदी के आसपास। पाकिस्तान में 3 फीसदी के करीब अल्पसंख्यक रह गए हैं जबकि भारत में 18 फीसदी के लगभग हैं यानी ठीक दोगुने। यह भारतीय समावेशी मिजाज की देन है। यहां लोगों को स्वीकारने की स्वाभाविक परम्परा है। यही वजह है कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।

इस पूरे मामले में दिलचस्प यह भी है कि सियासतदानों के साथ ही ठीक ठाक पढ़े-लिखे लोग भी भ्रम का संजाल खड़ा करने में अपने लिए फौरी सार्थकता देख रहे हैं। सीपीएम की नेता वृंदा करात कहती हैं यह मोदी -शाह का त्रिशूल है यानि एक सियासी पैकेज। उनका मानना है सीएए को एनआरसी के साथ जोड़ते हुए एनपीआर जो अभी वजूद में नहीं है लेकिन निकट भविष्य में आने वाला है उसको भी गंभीरता से लेने की जरूरत है। तब कहीं जाकर बीजेपी-संघ की अल्टीमेट डिजाइन समझ आ पायेगी। उनका सीधा आरोप यह सारी कवायद अल्पसंख्यकों को दोयम दर्जे की हैसियत में पहुंचाने की है। क्या वाकयी ऐसा है क्या कोई सरकार इस तरह का दुस्साहस कर सकती है बिलकुल नहीं। पहले कहा जाता था बीजेपी आएगी तो अल्पसंख्यकों के लिए जिंदगी दुश्वार हो जाएगी। पर इन वर्षों में अल्पसंख्यकों की योजनाओं को देखें तो उसके फंड का आकार पहले की सरकारों से कम नहीं हुआ अपितु बढ़ा ही है। कल्याणकारी जितनी योजनाएं देश में चल रही हैं उसमें क हीं भी भेदभाव के लिए जगह नहीं छोड़ी गयी है। यह सब सरकारी लाभार्थियों की फेहरिस्त से समझा जा सकता है। पर सिर्फ सियासी हित की खातिर हमे किसी भी हद से गुजरना है तो फिर कुछ नहीं कहा जा सकता।

ममता बनर्जी को लगता है देश की संसद से पारित कानून का परीक्षण यूएन में होना चाहिए तो फिर कोई बात नहीं। इससे भी दिलचस्प बात एनसीपी लीडर शरद पवार ने कही है। उन्होंने महाराष्ट्र की अघाड़ी सरकार को यानि उद्धव को सीएए न मानने का मशवरा दिया है। पर साथ ही यह भी डर भरने की कोशिश की है कि हो सकता है ऐसा करने पर मोदी सरकार बर्खास्तगी की कारवाई से भी गुरेज ना करे। जिस तरह छोटे-छोटे बच्चे इस आंदोलन में इस्तेमाल हुए है वो चिंता का विषय है। किसी भी संगठन और सियासी दल को इससे बचना चाहिए। अराजकता की स्थिति में बच्चे बेवजह पिसते है। सख्ती दिखते हुए यूपी में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हुए प्रदर्शनों के बाद सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ सूबे की योगी आदित्यनाथ सरकार ने कार्रवाई शुरू कर दी है। यूपी पुलिस ने ऐसे लोगों को चिन्हित कर उन पर जुर्माना लगाकर, उन्हें वसूली नोटिस भेजना शुरू कर दिया है। जुर्माना नहीं चुकाने पर संपत्ति को कुर्क करने की बात हो रही है। योगी ने कहा, कानून को हाथ में लेकर उपद्रव और हिंसा करने की छूट किसी को नहीं दी जा सकती। संशोधित नागरिकता कानून पर फैलाए जा रहे भ्रम और बहकावे में कोई भी न आए। उन्होंने कहा कि प्रदेश में हर व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करने का दायित्व उत्तर प्रदेश सरकार का है और पुलिस हर व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान कर रही है। मुख्यमंत्री ने जनता से अपील की है कि वह अफवाहों पर यकीन नहीं करे और उपद्रवी तत्वों के उकसावे में न आएं। जरूरत अब लोगों को सच से वाकिफ करने की है। यही एक उपाय है।

प्रमोद कुमार सिंह
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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