जैसी करनी वैसी भरनी

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कोई कितना भी रसूखदार हो लेकिन उसके कर्मों की सजा उसे जरूर मिलती है यह समय समय पर वत्त्क के दामन पर दर्ज हुआ है। फिर भी सत्ता के नशे में चूर कुछ लोग यही समझते हैं कि उनकी मुठ्ठी में सब कुछ है। यह मुगालता उन्नाव से बीजेपी के विधायक रहे कुलदीप सेंगर का भी रहा जो शुक्रवार को टूट गया। उन्नाव रेप मामले में दोषी कुलदीप सिंह सेंगर को तीस हजारी कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। इसके साथ ही सेंगर पर 25 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। सजा के ऐलान के साथ ही सेंगर की राजनीतिक पारीए रुतबा सब खत्म हो गया। 90 के दशक में कांग्रेस से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाला कुलदीप सिंह सेंगर अब अर्श से फर्श पर आ चुका है। सेंगर की जिंदगी के तकरीबन हर पन्ने में जरायम का काला साया है। विधायकी कुलदीप की थी और इसे उसके भाई अतुल सिंह सेंगर और मनोज सिंह सेंगर भुनाते थे। टैसी, बस स्टैंड में वसूली से लेकर खनन तक सारे अवैध धंधे राजनीतिक ओहदे की छत्र छाया तले हो रहे थे।

उार प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले समाजवादी पार्टी (एसपी) का दामन छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल हुए कुलदीप सिंह सेंगर ने बांगरमऊ से चुनाव लड़ा था। न सिर्फ सेंगर ने चुनाव लड़ा बल्कि अपने बाहुबल के साथ जीत भी दर्ज की। सेंगर ने इससे पूर्व 2012 के विधानसभा चुनाव में उन्नाव की ही भगवंतनगर सीट से एसपी के टिकट पर चुनाव लड़कर जीत दर्ज की थी। कुलदीप सिंह सेंगर द्वारा चुनाव से पहले दिए गए ऐफिडेविट में चुनाव के दौरान गड़बड़ी करने का एक मामला दर्ज होने का जिक्र किया गया है। करोड़ों की चल-अचल संपत्ति के मालिक सेंगर मूल रूप से माखी गांव के रहने वाले हैं। कुलदीप सिंह सेंगर ने राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से की थी लेकिन यह साथ बहुत लंबे वक्त तक नहीं चल सका।

वर्ष 2002 में जब विधानसभा चुनाव आए तो कुलदीप सिंह कांग्रेस का हाथ छोड़कर बीएसपी के साथ चल दिए। कुलदीप सेंगर ने चुनावी मैदान में कांग्रेस के प्रत्याशी को बड़े अंतर से मात दे दी। बाहुबली की छवि बनाने की वजह से 2007 से पहले बहुजन समाज पार्टी ;बीएसपीद्ध की प्रमुख मायावती ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। फिर कुलदीप सिंह सेंगर ने समाजवादी पार्टी का दामन थामकर बांगरमऊ से जीत दर्ज की। कुलदीप सिंह सेंगर के पड़ोसी से एनबीटी ऑनलाइन ने बात की। वह कहते हैंए कुलदीप सिंह की राजनीति की शुरुआत माखी ग्रामसभा के प्रधान के रूप में हुई थी। विधायक बनने से पहले वह तकरीबन 15 साल तक प्रधान रहे। माखी कुलदीप सिंह सेंगर का ननिहाल है। बचपन से ही वह यहां रह रहे थे। उनके नाना (बाबू सिंह) इससे पहले लंबे वक्त तक प्रधान रहे। फिलहाल, कुलदीप सिंह सेंगर के छोटे भाई अतुल सिंह की पत्नी माखी ग्रामसभा से प्रधान हैं। कुलदीप सिंह सेंगर बहुत कम उम्र में गांव के प्रधान चुने गए थे। इससे पहले भी कई सियासी रसूखदार सलाखों के पीछे जा चुके है फिर भी प्रभावशाली तबके के ऐसे मनबढ़ लोग नहीं सचेत रहते तो इसकी वजह हमारी सुस्त न्याय व्यवस्था है। सजा की दर बढ़ाये बिना ऐसे तबको में कहां किसी बात का खौफ।

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