महाराष्ट्र-यूपी में श्रीकृष्ण के साथ होती है रुक्मिणी की पूजा, द्वारिका में है अलग मंदिर

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दुनियाभर में भगवान कृष्ण के कई मंदिर हैं। जहां उनकी पूजा देवी राधा या बड़े भाई बलराम के साथ होती हैं, लेकिन पत्नी के साथ भगवान श्रीकृष्ण के बहुत ही कम मंदिर हैं। इनमें देश के 2 ऐसे मंदिर हैं जहां भगवान श्रीकृष्ण की पूजा देवी रुक्मिणी के साथ की जाती है, वहीं गुजरात का एक ऐसा मंदिर है जहां देवी रुक्मिणी का अलग मंदिर है और उनकी पूजा भगवान श्रीकृष्ण के साथ नहीं की जाती है। पौष माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को रुक्मिणी अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस बार ये व्रत 19 दिसंबर को मनाया गया। इस दिन देवी रुक्मिणी और श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है।

पंढरपुर
महाराष्ट्र में पुणे से लगभग 200 कि.मी की दूरी पर एक गांव है, जहां श्रीकृष्ण को उनकी पत्नी रुक्मिणी के साथ पूजा जाता है। महाराष्ट्र के इस पंढरपुर नाम के गांव में विट्ठल रुक्मिणी मंदिर नाम का एक मंदिर है। जहां भगवान श्रीकृष्ण को पत्नी रुक्मिणी के साथ पूजा जाता है। इस मंदिर में काले रंग की सुंदर मूर्तियां हैं। विट्ठल रुक्मिणी मंदिर पूर्व दिशा में भीमा नदी के तट पर है। भीमा नदी को
यहां पर चंद्रभागा के नाम से जाना जाता है। आषाढ़, कार्तिक, चैत्र और माघ महीनों के दौरान नदी के किनारे मेला लगता है। जिसमें भजन-कीर्तन करके भगवान विट्ठल को प्रसन्न किया जाता है। कई भक्त अपने घरों से मंदिर तक पैदल यात्रा भी करते हैं। जिसे दिंडी यात्रा कहा जाता है। मान्यता है कि इस यात्रा को आषाढ़ मास की एकादशी या कार्तिक माह की एकादशी को मंदिर में खत्म करने का महत्व है।

द्वारिका पुरी
द्वारिका पुरी में द्वारकाधीश मंदिर से 2 किलोमीटर दूर रुक्मिणी के मंदिर के रूप में मौजूद है। ये मंदिर एक अलग हिस्से में बना हुआ है। ये मंदिर 12 वीं सदी में बना है। यहां भगवान श्रीकृष्ण के साथ माता रुमिणी की पूजा नहीं की जाती है। इसके पीछे दुर्वासा ऋषि के शाप की कथा है। जिस वजह से श्रीकृष्ण और देवी रुक्मणी को 12 साल तक एक-दूसरे से अलग रहना पड़ा था। इतना ही
नहीं इस वजह से द्वारकाधीश के मंदिर में भी रुमणी माता को स्थान नहीं मिला।

मथुरा
मथुरा के द्वारकाधीश मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा पत्नी रुक्मिणी के साथ की जाती है। माना जाता है इस मंदिर में मौजूद भगवान कृष्ण की मूर्ति लगभग 250 साल पहले ग्वालियर में खुदाई के दौरान सिंधिया शासन काल के कोषाध्यक्ष को मिली थी। माना जाता है भगवान कृष्ण ने कोषाध्यक्ष गोकुल दास जी के सपने में आकर आदेश दिया कि ब्रज भूमि में मेरी मूर्ति स्थापित कर मंदिर बनवाओ। इस मंदिर में मौजूद द्वारकाधीश मंदिर में कृष्ण के 8 स्वरूप की पूजा होती है। इसमें हर बार द्वारकाधीश जी के वस्त्र से लेकर पूजा पाठ और भोग सब कुछ अलग-अलग होता है। इस मंदिर में श्रीकृष्ण और रुक्मिणी जी की हर दिन 8 अलग-अलग झांकियां सजती हैं। इन झांकियों के 8 भाव होते हैं और 8 बार ही दर्शन के लिए मंदिर के पट खुलते हैं।

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