पूर्ण विराम एजेंडे में नहीं

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नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र की एनडीए सरकार के दूसरी बार शपथ लेते समय किसी ने कल्पना नहीं की थी कि अपने मूल अजेंडे पर सरकार इतनी तेजी से आगे बढ़ेगी। अमित शाह के गृह मंत्रालय संभालने के बाद सरकार का चरित्र और तेवर बदल गया है। बीजेपी के अजेंडे की दृष्टि से देखें तो मोदी सरकार 0.1 और 0.2 में मौलिक अंतर दिखाई देगा। पहले कार्यकाल में गृह मंत्रालय ने गोहत्या पर एक राष्ट्रीय कानून का मॉडल बनाकर राज्यों को भेजा, लेकिन इससे आगे कुछ नहीं हुआ। अजेंडे पर काम न करने से संघ का धैर्य भी टूटा और सर संघचालक मोहन भागवत को विजयादशमी के उद्बोधन में राममंदिर निर्माण के लिए सार्वजनिक रूप से आवाज उठानी पड़ी। अमित शाह ने जिस आत्मविश्वास के साथ अनुच्छेद 370 को संसद में पेश किया, विपक्ष के विरोध का सामना किया और इसे पारित कराया, वह अभूतपूर्व था। एक साथ तीन तलाक के विरुद्ध कानून के बारे में जिससे भी चर्चा होती, यही कहता कि यह इस बार भी पारित नहीं होगा। लेकिन हुआ। आतंक वाद विरोधी गैरकानूनी गतिविधियां निरोधक कानून में जो संशोधन चाहा अमित शाह ने पारित करा लिया। अपने भाषण से संसद के अंदर वातावरण ऐसा बना दिया कि जो भी इसका विरोध करेगा वह आतंक वाद का समर्थक माना जाएगा। राम जन्मभूमि के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया जो 1986 से बीजेपी के अजेंडे में शामिल था। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने ही ट्रस्ट बनाने की जिम्मेदारी देकर केंद्र सरकार की भूमिका सुनिश्चित कर दी है।

तीन इस्लामी देशों से आने वाले हिंदू-सिखों को नागरिकता देने का अजेंडा जनसंघ के समय से ही चलाल आ रहा है। संघ ने 1950 के नेहरू -लियाकत समझौते का विरोध किया था। अब प्रश्न उठ रहा है कि आखिर छह महीने में ही अपने मुख्य घोषित अजेंडों के पूरा हो जाने के बाद मोदी सरकार आगे क्या करेगी/ कई लोग मानते हैं कि सरकार जनसंख्या नियंत्रण कानून की ओर बढ़ेगी। प्रधानमंत्री ने लालकिले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस संबोधन में इसकी चर्चा की इसलिए सीधा ध्यान उसी ओर जाता है। गृह मंत्री ने संसद के दोनों सदनों में यह घोषणा कर दी है कि हमें पूरे देश के लिए राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी लागू करना है। तो ये दो बड़े अजेंडे बीजेपी के सामने हैं। हालांकि ऊपरी तौर पर समझ में नहीं आता कि आखिर मोदी सरकार 2024 तक की अपनी कार्यावधि में देश को कहां ले जाएगी। इसके लिए संघ और बीजेपी के वैचारिक अधिष्ठान पर नजर डालना आवश्यक है। नरेंद्र मोदी ने 2013 में राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखते हुए कहा था कि हम इसी व्यवस्था में जो कुछ है, उसी से भारत को समृद्धतम और विश्व को दिशा देने वाला राष्ट्र बनाएंगे। आज जो कुछ हो रहा है, इसी प्रणाली और संविधान के अंदर ही। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अनेक अंग-उपांग हैं। भारत की सीमाओं के अंदर और सीमाओं से बाहर विश्व को लेकर भी इसका लक्ष्य है।

मोदी ने दुनिया भर के भारतवंशियों के बीच सभाएं करके उन्हें भारत के साथ जोडऩे की जिस तरीके से कोशिश की है, उसका व्यापक असर है। वे जिस देश में जाते हैं वहां के मंदिरों, गुरु द्वारों में भी जाते हैं। मुस्लिम देशों में भी मंदिर निर्माण तथा पुराने मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ है। प्रवासी सम्मेलन का पूरा चरित्र बदल चुका है। बौद्ध धर्म को मानने वाले देशों, वहां के बौद्ध भिक्षुओं तथा लोगों से सीधा संवाद करने और उनके भारत आने-जाने पर काफी फोकस किया गया है। विश्वव्यवस्था में विचार के साथ संख्याबल भी महत्वपूर्ण है। हिंदू, सिख के साथ यदि बौद्धों और यहूदियों आदि को मिला दिया जाए तो आबादी काफी बड़ी हो जाती है। व्यापक लक्ष्य को ध्यान रखें तो इसमें जनसंख्या नियंत्रण की वह कल्पना फिट नहीं होती जो आम लोग कर रहे हैं। संघ परिवार मानता है कि मुस्लिमों की आबादी जिस तेजी से बढ़ रही है उससे जनसंख्या असंतुलन अनेक क्षेत्रों में पैदा होगा क्योंकि हिंदुओं-सिखों-बौद्धों और जैनों की आबादी आनुपातिक रूप में घट रही है। तो जनसंख्या नियंत्रण की चिंता वहां है। विचारधारा तो यह कहती है कि गैर मुस्लिमों और गैर ईसाइयों को आबादी बढ़ाने के लिए प्रेरित किया जाए। एनआरसी के द्वारा यह साफ करने की कोशिश तो होगी कि कितने विदेशी अवैध रूप से रह रहे हैं, जो बीजेपी के अजेंडे का भाग है लेकिन उसके दूसरे कई लक्ष्य हैं।

हां, असम में इसका अनुभव जितना बुरा रहा है, उसके बाद सावधानी अपेक्षित है। नई शिक्षा नीति लागू करना एक बड़ा अजेंडा है। इसमें भाषा को लेकर समस्या है। नागरिकता कानून में पूर्वोत्तर के अनेक क्षेत्रों को अलग करना पड़ा। गोहत्या निषेध के लिए राष्ट्रीय कानून में समस्या यह आई कि गाय को लेकर एक समान पवित्र धारणा सारे देश में नहीं है। समान नागरिक संहिता भी मुद्दा है। तीन तलाक विरोधी कानून इसी दिशा में एक कदम था। भारत जैसे विविधता भरे देश में विवाह, तलाक, संपत्ति, उत्तराधिकार और गोद लेने के लिए एक समान कानून बनाना आसान नहीं है। विधि आयोग की प्रश्नावली पर आए उत्तरों पर काम भी हो रहा है। बीजेपी और संघ परिवार का एक बड़ा सपना अखंड भारत का है। इस दिशा में पाक अधिकृत कश्मीर सहित गिलगित और बाल्तिस्तान को वापस लेना और चीन अधिकृत जमीन की मुक्ति भी एक लक्ष्य है। सरकार के अंदर यह धारणा सुदृढ़ है कि जम्मू-कश्मीर को पूरी तरह सामान्य बनाना तब तक संभव नहीं जब तक गिलगित, बाल्तिस्तान सहित पाक अधिकृत कश्मीर पर फैसला न हो जाए और बलूचिस्तान जैसे उपराष्ट्रीय आंदोलनों में पाकिस्तान बुरी तरह उलझ न जाए। सच यह है कि सामान्य कामकाज के साथ मोदी सरकार का वैचारिक अजेंडा इतना व्यापक है कि उसमें पूर्ण विराम की जगह ही नहीं है।

अवधेश कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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