आग लगाने वालों को ठोकने की मोदी सरकार में कुव्वत

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गृह मंत्री अमित शाह खुश होंगे। बहुत खुश। इसलिए कि उन्हें सड़कों पर उस पहनावे के लोगों, छात्रों की भीड़ दिखलाई दे रही है, जिन्हें मुसलमान कहा जाता है। कोलकत्ता के ‘द टेलीग्राफ’ अखबार ने कल विरोध प्रदर्शनों के फोटो छाप प्रधानमंत्री मोदी को आईना दिखाना चाहा कि क्या इन फोटोज में भीड़ मुसलमानी है, जो आप कह रहे हैं कि पहनावा देखो तो मालूम होगा कि सड़कों पर कौन उतरे हुए हैं! हां, भारत के प्रधानमंत्री का ऑन रिकार्ड बयान है कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ ये जो आग लगा रहे हैं, ये कौन हैं उनके कपड़ों से इसका पता चल जाता है। इधर उनका यह खुलासा था और उधर जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में पुलिस ने घुस पर छात्रों की ऐसी पिटाई की, जिससे देश को अपने आप मालूम हुआ कि मोदी सरकार में कुव्वत है आग लगाने वालों को ठोकने की।

फिर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कल दो टूक शब्दों में बताया कि जिहादी, माओवादी, अलगाववादी हैं छात्र रूप में! भला यह नैरेटिव क्यों, जबकि हिसाब से देश भर में जिहादी, माओवादी, अलगाववादियों का इतनी तादाद में सड़कों पर उतरना अमित शाह के लिए बतौर गृह मंत्री चिंता वाली बात होनी थी! उन्हें व प्रधानमंत्री मोदी को समझना था कि पांच साला छप्पन इंची छाती के राज के बाद भी यदि अलग पहनावे वाले मुसलमान, जिहादी, माओवादी, अलगाववादी विरोध का दम दिखा रहे हैं तो ऐसा कैसे? क्या मोदी-शाह को चिंता में घबराना नहीं था? सर्वदलीय बैठक बुलाने या संवाद करने जैसा विचार नहीं आना चाहिए?

मगर प्रधानमंत्री मोदी, निर्मला सीतारमण, अमित शाह ने आंदोलन करने वालों की पहचान बता कर, उनसे लोगों को (हिंदुओं को) आगाह करने, उनकी सरपरस्त विरोधी पार्टियों को देश का विरोधी करार देते हुए जैसी जो बातें की हैं वह सरकार की इस बेफिक्री का प्रमाण है कि पानीपत की लड़ाई का अगला चरण यदि सड़कों पर होना है तो चिंता न करें, बाहुबल हमारे पास है और हम बता दे रहे हैं कि हम हिंदू हैं!

हां, यहीं सन् 2019 के सात महीनों का सार है। अमित शाह ने बुलंदी से देश-दुनिया को अहसास कराया है कि भारत अब हिंदुवादी है! मैं इसे आत्मघाती बड़बोला हिंदुवाद मानता हूं। तीन तलाक, अनुच्छेद 370 की समाप्ति के काम राष्ट्रवादी एप्रोच, एक देश-एक कानून के तर्क लिए हुए थे लेकिन नागरिकता संशोधन कानून का मैसेज एकदम अलग है। इससे दुनिया में, देश में मैसेज बना है कि भारत राष्ट्र-राज्य में मुसलमान का अब वैसे स्वागत नहीं है, उसे वैसी शरण नहीं है, जैसे पहले थी। बाकी धर्मावलंबियों का खुले हाथ स्वागत है मगर मुसलमान का नहीं! दूसरा मैसेज है कि भारत हिंदुओं की नैसर्गिक पुण्य, जन्म और शरण भूमि है!

तभी अपना मानना है कि अनुच्छेद 370, तीन तलाक से बड़ा और देश को निर्णायक दिशा देने वाली जल्दबाजी का नाम नागरिकता संशोधन कानून है। इसका मैसेज दुनिया को अनुच्छेद 370 से अधिक गया होगा। दुनिया के तमाम इस्लामी देश, तमाम तरह के मानवाधिकारी और धार्मिक स्वतंत्रता आदि संगठनों को दो टूक मैसेज है कि नरेंद्र मोदी की राष्ट्रवादी-हिंदुवादी सरकार मुसलमान के प्रति भेदभाव की नीति लिए हुए है और भारत राष्ट्र-राज्य हिंदुवादी होने की तरफ है! लोकसभा में जिस दिन नागरिकता संशोधन बिल पेश हुआ उस दिन से वैश्विक मीडिया, चैनल सभी में अमित शाह की फुटेज के साथ यह भारी प्रचार है कि भारत की रीति-नीति में मुसलमान के प्रति भेद है।

मंगलवार को अमेरिका के ‘द न्यूयार्क टाईम्स’ में खबर है कि क्या भारत हिंदू राष्ट्र बनने के करीब पहुंच रहा है? ध्यान रहे यह अखबार न केवल दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित अखबार है, बल्कि अमेरिकी एलिट की बौद्धिक खुराक भी है। इसके प्रारंभिक पैरे का सार है कि मोदी सरकार ने कश्मीर में हजारों मुसलमानों को हिरासत में लिया। इलाके की स्वायत्तता खत्म की, उत्तर-पूर्व के राज्यों में नागरिकता का टेस्ट लागू किया, जिससे लोग नागरिकताविहीन हुए और उसमें मुस्लिम भी हैं… नरेंद्र मोदी का सबसे बड़ा जुआ नया नागरिकता बिल है, जो इस्लाम को छोड़ कर दक्षिण एशिया के सभी धर्मों को फेवर करता है। यह कानून वह ऐलानिया संकेत है, जिससे सरकार विरोधी मान रहे हैं कि मोदी भारत को हिंदू केंद्रित वह राष्ट्र बना रहे हैं, जिसमें बीस करोड़ मुसलमान अलाभदायी स्थिति, मुश्किल में रहेंगे।… भारत के मुसलमान मोदी सरकार के हिंदू राष्ट्रवादी प्रोग्राम को चिंता से देख रहे थे लेकिन अब उनका गुस्सा फूट पड़ा है। पिछले कुछ दिनों में देश के कई शहरों में विरोध-प्रदर्शन फूट पड़े हैं।… मुसलमान अभी तक मूक थे लेकिन अब उनकी हताशा बढ़ती जा रही है.. दुनिया भी सोच रही है, तौल रही है, संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी, अमेरिकी प्रतिनिधि, अंतरराष्ट्रीय पैरोकार ग्रुप और धार्मिक संगठनों ने बयान जारी कर नागरिकता कानून को न केवल भेदभावपूर्ण बताया है, बल्कि भारत के खिलाफ प्रतिबंध के लिए भी कहा है।

अमेरिकी अखबार की खबर के इस सार का अर्थ है कि अमित शाह का नागरिकता कानून दुनिया की चर्चाओं में भारत का आज रिफरेंस है। तय मानें कि कल से मलेशिया में मुस्लिम देशों (मलेशिया, इंडोनेशिया, तुर्की, पाकिस्तान आदि) के नेताओं की शिखर वार्ता होगी तो उसमें अमित शाह और उनके बनवाए कानून की चर्चा प्रमुखता से भारत की भर्त्सना लिए हुए होगी। भारत वैश्विक पैमाने पर पहली बार बतौर हिंदू देश चर्चा में है। दूसरा अर्थ है कि भारत के मुसलमानों के साथ भेदभाव, विरोध-प्रदर्शन को सही माना जाने लगा है। मतलब दुनिया की नजर में अब हिंदू नहीं, बल्कि मुस्लिम पीड़ित पक्ष है!

सोचें, इस वैश्विक अर्थ पर? क्या यह प्रमाणित नहीं होता कि हिंदुओं को राज नहीं करना आता! हकीकत है कि कांग्रेस ने ही, कांग्रेस के राज में, इंदिरा गांधी-राजीव गांधी के राज में बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों की समस्या को सर्वाधिक गंभीरता से लिया गया। घुसपैठियों को बाहर निकालने का फैसला हुआ। असम समझौता हुआ। असम में एनआरसी बना और सुप्रीम कोर्ट की देख रेख में काम हुआ। मगर पूरी प्रक्रिया में इस पहलू पर किसी ने हल्ला नहीं बनाया कि पड़ोसी देशों से उत्पीड़ित हो कर आए हिंदुओं को घुसपैठी नहीं मानेंगे और उन्हें शरण देना भारत का धर्म है। मतलब बिना हिंदू राष्ट्र बने भी हिंदुओं का प्रश्रय देश भारत का धर्म है। असम के या किसी भी प्रदेश के मूल, आदिवासी लोग परेशान नही हों क्योंकि जरूरत हुई तो हिंदू शरणार्थियों को दूसरी जगह भी बसाया जा सकता है। मगर कांग्रेस को छोड़ें, खुद हिंदू राष्ट्रवादी, मोदी-शाह-भाजपा भी तब जागे जब असम के रजिस्टर में नागरिकताविहीन हिंदुओं की संख्या मुस्लिम नागरिकताविहीनों से ज्यादा प्रकट हुई! उस नाते आज प्रामाणिक तौर पर, संख्या की हकीकत में नागरिकता का संकट किनका ज्यादा है? तो जवाब है हिंदू शरणार्थियों का है। वे असम में असमी आबादी के निशाने में हैं तो मुस्लिम शरणार्थी-घुसपैठियों के लिए लोकल मुस्लिम, राजनीतिक पार्टियों और वैश्विक जनमत बना है! क्या नहीं? कौन दोषी है? तभी लाख टके का सवाल है कि मोदी-शाह का यह हिंदू हितकारी कैसा काम, कैसी रीति-नीति, जिसमें हिंदू का न भला है और न साख, सभ्यपना है। दुनिया के आगे हिंदुओं का यह तर्क खत्म हो रहा है कि वह आक्रामक, असभ्य, जिहादी पक्ष नहीं, बल्कि पीड़ित पक्ष है।

ऊपर से भारत राष्ट्र-राज्य के प्रधानमंत्री के मुंह से ऐसे वाक्य कि विरोध-प्रर्दशन करने वालों को पहचानें उनके कपड़ों से! या यह बात कि जिहादी, माओवादी, अलगाववादी हैं छात्र रूप में!

पर शायद मोदी-शाह को हिंदू की वैश्विक इमेज, राष्ट्र-राज्य और उसके समाज की अंदरूनी मजबूती की चिंता नहीं है। इन्हें चिंता सिर्फ वोटों की है, सत्ता की है, सड़कों पर पानीपत की उस लड़ाई को जिंदा बनवाने की है, जिनसे हिंदू गोलबंद उनके पीछे खड़े रहें और सब टीवी चैनलों के आगे बैठे देखें, बूझें कि विरोध-प्रदर्शन, दुश्मनों में किसका पहनावा विधर्मी है!

हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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