अव्यवस्था और आर्थिकी की चिंता

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पूरा देश अराजकता के दौर में पहुंचता दिख रहा है। हर जगह किसी न किसी तरह की अव्यवस्था पैदा हो गई है या जान बूझकर पैदा कर दी गई है। इस अराजकता और अव्यवस्था के बीच सबसे बड़ी चिंता आर्थिकी को लेकर है। अलग अलग कारणों से देश के अलग अलग इलाकों में आर्थिकी ठप्प पड़ी है। जम्मू कश्मीर की आर्थिक भले छोटी हो पर पर्यटन पर निर्भर उसकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से खत्म हो गई है। पिछले चार महीने में पर्यटकों की संख्या गिनती की रह गई है। कुछ इलाकों में हुई हिंसा के बाद बाहर से जाने वाले लोग घबराएं हैं। सेब के ट्रक ड्राइवरों की हत्या की वजह से सेब का कारोबार भी ठप्प है या मंदा पड़ गया है।

इस बीच असम और पूर्वोत्तर में आंदोलन शुरू हो गया। हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतरे हैं। उनका कोई नेता नहीं है। किसी पार्टी ने या किसी छात्र संगठन ने बंद या प्रदर्शन की अपील नहीं की। लोगों ने कारोबारी प्रतिष्ठान खुद ब खुद बंद किया। स्कूल-कॉलेजों में ताले लग गए और लोग सड़कों पर उतर गए। उनका कहना है कि नागरिकता संशोधन कानून के जरिए सरकार उनकी अस्मिता को खत्म कर रही है।

एक अनुमान के मुताबिक नागरिकता कानून लागू होने के बाद असम में रह रहे बाहरी लोगों को भारत की नागरिकता मिली तो राज्य में असमिया बोलने वालों से ज्यादा संख्या बंगाली बोलने वालों की हो जाएगी। इस बात को लेकर बंगाली आबादी वाले इलाके बराक घाटी में जश्न हो रहा है तो बाकी पूरे राज्य में आग लगी है। बंद, हिंसा, उपद्रव है और सड़कों पर सेना है। त्रिपुरा में भी तनाव बना हुआ है और बाकी छह राज्यों में भी कमोबेश तनाव की स्थिति ही है।

देश के बाकी हिस्सों में एक तनावपूर्ण खामोशी है। देश का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय आशंकित है। वैसे आशंका समूची आबादी में होनी चाहिए क्योंकि अगर सरकार नागरिकता कानून के बाद राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर बनाने के लिए आगे बढ़ती है तो देश का हर नागरिक अपनी नागरिकता प्रमाणित करने की लाइन में खड़ा मिलेगा। इस परियोजना पर हजारों करोड़ रुपए खर्च होने हैं। जब यह काम शुरू होगा तो यह सोचना मुश्किल नहीं है कि आर्थिकी को किस तरह से प्रभावित करेगा।

इस बीच दूसरे हर आर्थिक मोर्चे पर निगेटिव खबरें आ रही हैं। सबसे ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि सरकार वस्तु व सेवा कर, जीएसटी की दरें बढ़ाने पर विचार कर रही है। जीएसटी को लेकर देश के कारोबारी पहले से परेशान है। सरकार के अपने आंकड़े से पता चला है कि पिछले पांच साल में प्रति व्यक्ति उपभोग में साढ़े तीन फीसदी से ज्यादा की कमी आई है। यानी लोगों ने खर्च करना पहले कम कर दिया है। उनका खर्च कम करना कोई शौकिया नहीं है, बल्कि उनकी मजबूरी है। लोगों के काम धंधे ठप्पे हैं, नौकरियां नहीं हैं, कारोबार नहीं चल रहा है इसलिए उनके खर्च कम हो रहे हैं।

तभी अगर जीएसटी की दरें बढ़ाई जाती हैं तो फिर लोगों की मुश्किलें और बढ़ेंगी। जरूरी खर्च के लिए उनके पैसे पूरे नहीं पड़ेंगे। सरकार के राजस्व में जितनी बड़ी कमी का अनुमान है उसे देख कर लग रहा है कि सरकार जीएसटी की दरों में बड़ा इजाफा करेगी। उसमें भी आम आदमी के लिए चिंता की बात यह है कि कर की सबसे बेसिक दर यानी पांच फीसदी वाली दर को बढ़ा कर दस फीसदी किया जा सकता है। इससे महंगाई बढ़ेगी, रिजर्व बैंक ब्याज दरों में और कटौती नहीं कर पाएगा, जिससे मांग और कम होगी और अंततः उससे विकास दर और नीचे आएगी।

देश के बैंकों को बचाने के लिए सरकार कुछ पहल कर रही है पर ऐसा लग रहा है कि बैंकों की हालत उससे ज्यादा खराब है, जितनी बताई जा रही है। खबर है कि देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक ने अपना एनपीए छिपाया था। उसने 12 हजार करोड़ रुपए डूबते कर्ज की बात रिजर्व बैंक को नहीं बताई थी। सोचें, लोगों की नजर में अच्छा बने रहने के लिए देश का सबसे बड़ा बैंक इस तरह की धोखाधड़ी कर रहा है तो बाकी बैंकों के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे क्या कर रहे होंगे।

नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के घोटाले की मार झेल रहे देश के दूसरे सबसे बड़े बैंक पंजाब नेशनल बैंक के बारे में भी चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। बैंक ने एक विदेशी ऑडिटर नियुक्त किया था, जिसने सारे खातों की जांच के बाद बताया है कि नीरव मोदी और मेहुल चोकसी ने बैंक को करीब 28 हजार करोड़ रुपए का चूना लगाया है। अभी तक कहा जा रहा था कि पंजाब नेशनल बैंक को इन दोनों हीरा कारोबारियों ने 14 हजार करोड़ रुपए का चूना लगाया है। अब यह रकम दोगुनी बताई जा रही है। रोजगार बढ़ाने के नाम पर सरकार ने मुद्रा लोन या इस तरह के जितने छोटे लोन दिलाए हैं उनमें से ज्यादातर एनपीए हो रहे हैं।

सरकार राजस्व जुटाने के लिए अपनी मुनाफा कमाने वाली कंपनियों को भी बेचने जा रहा है। पर अव्वल तो उसे बेचने में मुश्किल आ रही है और अगर बिक भी गया तो कर राजस्व में होने वाले नुकसान की भरपाई उससे मुश्किल है। यह सही है कि नागरिकता कानून पास करने से या एनआरसी का हल्ला बनवा देने से लोगों का ध्यान आर्थिकी से हटा है। पेट्रोल व प्याज की महंगाई को लेकर अब ज्यादा चर्चा नहीं हो रही है और न विकास दर को लेकर चर्चा है। पर हकीकत यह है कि सरकार की नीतियों से जो अव्यवस्था पैदा हुई है उसने पहले से गिरती जा रही आर्थिकी को एक और धक्का लगा दिया है, जिससे इसमें गिरावट और तेज हो गई है।

तन्मय कुमार
लेखक स्तंभकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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