धुला मोदी पर लगा गहरा दाग

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गुजरात में गोधरा कांड के बाद 2002 में हुई हिंसा पर नानावटी रिपोर्ट में गुजरात के तत्ताकालीन मुख्यमंत्री और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी गई है। गुजरात विधानसभा में हिंसा की जांच करने वाली नानावटी आयोग की रिपोर्ट रखी गई। आंतरिक रिपोर्ट में नानावटी आयोग ने पीएम नरेंद्र मोदी पर लगे आरोपों को खारिज कर दिया। 27 फरवरी 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में 59 कारसेवकों को जलाने की घटना के प्रतिक्रि यास्वरूप समूचे गुजरात में दंगे भडक़ उठे थे। इसकी जांच के लिए तीन मार्च 2002 को तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज न्यायमूर्ति जीटी नानावती की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया। न्यायमूर्ति के जी शाह आयोग के दूसरे सदस्य थे। शुरू में आयोग को साबरमती एक्सप्रेस में आगजनी से जुड़े तथ्य और घटनाओं की जांच का काम सौंपा गया। लेकिन जून 2002 में आयोग को गोधरा कांड के बाद भडक़ी हिंसा की भी जांच करने के लिए कहा गया। आयोग ने दंगों के दौरान नरेंद्र मोदी, उनके कैबिनेट सहयोगियों व वरिष्ठ अफसरों की भूमिका की भी जांच की। आयोग ने सितंबर 2008 में गोधरा कांड पर अपनी प्राथमिक रिपोर्ट पेश की थी। इसमें गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी गई थी।

उस समय आयोग ने साबरमती एक्सप्रेस की बोगी संख्या-छह में आग लगाने को सुनियोजित साजिश का परिणाम बताया था। 2009 में जस्टिस शाह के निधन के बाद अक्षय मेहता को सदस्य बनाया गया। आयोग ने 45 हजार शपथ पत्र व हजारों गवाहों के बयान के बाद करीब 15 सौ पेज की रिपोर्ट तैयार की। अब इस रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर रखा गया। नानावटी क मीशन ने उन्हें क्लीन चिट दी और तमाम तरह के प्रोपोगैंडा जो न सिर्फ देश बल्कि पूरी दुनिया में फैलाए गए उसे सिरे से खारिज किया गया। इस रिपोर्ट में ये बताया गया कि वहां पर कोई भी ऐसा काम नहीं किया गया जो राज्य सरकार को नहीं करना चाहिए थे। न राज्य सरकार ने किसी तरह की कोई देरी की है, न राज्य सरकार ने किसी तरह का कोई गलत मौखिक गैरकानूनी आदेश दिया। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस की बोगी जलाए जाने के बाद हुई सांप्रदायिक हिंसा सुनियोजित नहीं थी। 15 सौ पन्नों से ज्यादा की रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि किसी मंत्री के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला। रिपोर्ट में ये भी लिखा गया है कि कुछ जगहों पर भीड़ को काबू करने में पुलिस ज्यादा प्रभावी नहीं रही क्योंकि पर्याप्त संख्या नहीं थी और न ही उनके पास पर्याप्त संख्या में हथियार थे।

कुछ अदिकारी यानी दंदों के बाद में मोदी सरकार के ही कुछ अधिकारी जैसे आरबी शिवकुमार और संजीव भट्ट जैसे लोग शामिल थे। ये आरोप लगा रहे थे। लेकिन जब ये लोग आयोग के सामने पेश हुए तो कोई भी ऐसी ठोस बात या ठोस सबूत पेश नहीं कर पाए जो ये आरोपों के जरिए कोशिश कर रहे थे कि नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री रहते हुए उन्हें मौखिक तौर पर आदेश दिए थे कि वो गैर कानूनी काम करें। एक -एक करके वो तमाम आरोप जो मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी पर लगाए गए थे वो तमाम आरोप एक सिरे से आयोग के सामने खारिज होते गए। जिसके बाद रिपोर्ट में उन तमाम आरोपों को आयोग ने गलत बताया। इस आरोप में ये भी कहा गया था कि गुजरात दंगों के दौरान नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए गोधरा के बाद इन दंगों को सही ठहराने की कोशिश की थी। आयोग ने अपनी पूरी रिपोर्ट में सारे साक्ष्यों को गौर करने के बाद इसे गलत पाया। दूसरा आरोप ये लगाया गया कि जानबूझकर सेना की तैनाती में देरी बरती गई ताकि हिंसा ज्यादा हो और वहां के अल्पसंख्यक ज्यादा उसके शिकार हो। लेकिन आयोग ये भी कहा कि ऐसा कुछ नहीं था बल्कि सेना को तुरंत वाहन उपलब्ध करवाए गए और तुरंत सरकारी अधिकारी दिए गए। साथ ही साथ तमाम जरूरी चीजें जो कि सेना को उस वक्त चाहिए थीं, तुरंत मुहैया करा दी गई थीं। तो ये आरोप भी पूरी तरह से गलत साबित हुआ।

अभिनय आकाश
(लेखक स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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