भारतीय डाक विभाग के बढ़ते घाटे से छुटकारा पाने के लिए सरकार ने पिछले वर्ष इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक की स्थापना की थी। विचार था कि दूर-दराज क्षेत्रों में अपनी मौजूदगी की बदौलत पोस्ट ऑफिस इन क्षेत्रों तक बैंकिंग व्यवस्था का विस्तार करने का जरिया बन सकते हैं। लोगों को यह व्यवस्था पसंद आ गई तो इसके साथ ही पोस्ट ऑफिसों का धंधा भी चल निकलेगा। लेकिन मौजूदा हालात इस उम्मीद को खारिज करते हैं। पोस्ट पेमेंट्स बैंक के घाटे बढ़ रहे हैं। वास्तव में हमें डाक विभाग की मूल समस्या पर ध्यान देना चाहिए, जो यह है कि सूचनाओं के ऑनलाइन आवागमन से डाक की जरूरत बहुत कम हो गई है। हालांकि ऑनलाइन डिलिवरी ऑर्डरों को पहुंचाने के काम में भारी वृद्धि हुई है। इस खट्टे-मीठे परिवर्तन का तमाम देशों ने लाभ उठाया है। कनाडा में ऑनलाइन ऑर्डरों का दो तिहाई हिस्सा पोस्ट ऑफिसों द्वारा वितरित किया जाता है। वहां के डाक विभाग ने यह सुविधा दे रखी है कि खरीददार अपनी गाड़ी से आते-जाते डाक खिडक़ी से अपना पैकेट उठा सकता है। इसके लिए उसे गाड़ी से उतरने की भी जरूरत नहीं है। पोस्ट ऑफिसों में कार को बिजली से चार्ज करने की सुविधा भी दी गई है। भारत में भी पार्सल का काम बढ़ रहा है।
पिछले साल पोस्ट ऑफिसों द्वारा 10 करोड़ पार्सल पहुंचाए गए थे जबकि इस साल पहुंचाए गए पार्सलों की संख्या बढक़र 16 करोड़ हो गई है। इसलिए यदि डाक विभाग ऑनलाइन ऑर्डर के वितरण पर विशेष ध्यान दे तो इससे उसके राजस्व में काफी बढ़ोतरी हो सकती है। इस संदर्भ में गौर करने की बात यह है कि वर्तमान में छपे हुए कागजों जैसे पत्रिकाओं और अखबारों के वितरण में पोस्ट ऑफिस विभाग को भारी घाटा वहन करना पड़ रहा है। प्रति छपे हुए पैकेट पर लगभग पच्चीस रूपए का खर्च पड़ता है जबकि वसूली होती है मात्र चार रुपये। छपे हुए कागजों के उपयोग को इसलिए भी हतोत्साहित करने की जरूरत है कि पर्यावरण पर इनका बोझ ज्यादा होता है। जाहिर है, छपे हुए माल की डिलवरी पर दी जाने वाली सब्सिडी बंद कर देनी चाहिए। वैसे ऑनलाइन ऑर्डरों की डिलिवरी भी आसान नहीं है। अमेरिकी पोस्ट ऑफिस विभाग को इसमें कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। वहां पोस्ट मैन द्वारा आपके पोस्ट बॉक्स में एक परचा डाल दिया जाता है कि आप अपने पैकेट को डाक खाने से उठा सकते हैं।
फिर खरीददार को डाक खाने जाकर अपना पैकेट लेना होता है। इस काम के लिए एक -एक घंटे की कतारें लगी रहती हैं। गलत पते पर माल डिलिवरी की शिकायतें भी बड़ी संख्या में मिल रही हैं। इसलिए जरूरत है कि भारतीय डाक विभाग ऑनलाइन ऑर्डरों की डिलिवरी के काम को कुशलतापूर्वक अंजाम दे, अन्यथा इसमें भी वह सफल नहीं होगा। अपने यहां मुख्य समस्या पोस्ट ऑफिस कर्मचारियों के मनोभाव की है। इन कर्मियों के वेतन सुरक्षित हैं और कामकाजी कुशलता से इनके वेतन प्रभावित नहीं होते हैं। इनके सामने कुशलतापूर्वक कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करने वाला कोई कारक भी नहीं है। सरकार ने घोषणा की है कि पोस्ट पेमेंट्स बैंक के प्रॉफिट का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा कर्मियों को वितरित किया जाएगा। लेकिन यह वितरण तो तब होगा जब बैंक को प्रॉफिट होगा। यदि बैंक को प्रॉफिट ही नहीं होता तो इन्हें कमिशन भी नहीं मिलेगा। इस स्थिति में हमें इंग्लैंड से सबक लेना चाहिए। वहां पोस्ट ऑफिस स्थापित करने के लिए सरकार द्वारा एक छोटी राशि मकान के किराये भर के लिए दी जाती है।
इसके बाद पोस्ट मास्टर को काम के हिसाब से कमिशन मिलता है। जैसे प्रति पार्सल पांच रुपये का कमीशन दिया जाए। अपने देश में सरकारी बसों में इसी प्रकार की व्यवस्था है, जिसके कारण सरकारी बस के कंडक्टर और ड्राइवर लगातार प्रयास करते हैं कि अधिकाधिक यात्रियों को उठाएं। भारतीय डाक विभाग को भी इस प्रकार की व्यवस्था लागू करनी चाहिए, जिससे पोस्ट ऑफिस कर्मचारी पार्सल की बुकिंग और डिलिवरी दोनों में दिलचस्पी लेना शुरू करें। इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक का भविष्य यूं भी धूमिल है। मुख्यधारा के बैंकों की तुलना में पोस्ट पेमेंट्स बैंक द्वारा सुविधाएं कम दी जाती हैं। मेनस्ट्रीम बैंकों से आप नगद, चेक जमा, ऋण सभी सुविधाएं एक ही स्थान पर प्राप्त कर सकते हैं जबकि पोस्ट पेमेंट्स बैंक में आप अन्य बैंकों के चेक जमा नहीं कर सकते और इससे कर्ज भी नहीं ले सकते। इसलिए यदि कोई उपभोक्ता पोस्ट पेमेंट्स बैंक में खाता खोलता है तो उसे मुख्यधारा बैंकों में भी एक खाता खोलना पड़ता है ताकि वह चेक आदि का भुगतान ले सके । यह सही है कि पोस्ट पेमेंट्स बैंक में खाता खोलने के लिए न्यूनतम आवश्यक रकम शून्य है जबकि मुख्यधारा बैंकों में यह एक हजार रुपया या इससे अधिक है। लेकिन इस सुविधा का लाभ नगण्य है। कहने के लिए पोस्ट पेमेंट्स बैंक की सुविधाएं आपके दरवाजे तक आती है।
भरत झुनझुनवाला
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)