डॉक्टरी की पढ़ाई : लूटपाट होनी चाहिए बंद

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किसी भी राष्ट्र को यदि आप सुखी, संपन्न और शक्तिशाली बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले दो बातों पर ध्यान देना जरुरी है। पहली, शिक्षा और दूसरी चिकित्सा। चिकित्सा तन बनाती है और शिक्षा मन को। पिछले 72 साल में हमारी सरकारों ने इन दोनों मामलों में कोई मुस्तैदी नहीं दिखाई लेकिन मुझे खुशी है कि मोदी सरकार में पहले स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने दवाओं की लूटपाट को रोका और अब डा. हर्षवर्द्धन डाक्टरी की पढ़ाई में इस लूटपाट के विरुद्ध कमर कस रहे हैं।

भारत में डाक्टरी की पढ़ाई की फीस 25 लाख रु. साल तक जाती है। जो व्यक्ति डाक्टर बनने के लिए एक-डेढ़ करोड़ रु. खर्च करेगा, वह डाक्टर बनने के बाद क्या करेगा ? उसका ध्यान मरीजों के इलाज पर पहले होगा या पहले वह पैसा बनाने पर ध्यान देगा? जाहिर है कि वह ठगी करेगा।

इसी ठगी को रोकने के लिए अब मेडिकल कालेजों की फीस 70 से 90 प्रतिशत घटाई जाएगी। यदि मेडिकल की पढ़ाई सस्ती हो और भारतीय भाषाओं में भी होने लगे तो हम स्वास्थ्य की दृष्टि से दुनिया के 191 देशों में 112 वें पायदान पर पसरे हुए नहीं मिलेंगे। गांवों, गरीबों और पिछड़ों के बच्चे भी डाक्टर बनेंगे और वे हमारे बच्चों के मुकाबले ज्यादा सेवा करेंगे।

अभी भारत में 10 हजार लोगों पर सिर्फ 5 डाक्टर हैं जबकि उन्हें कम से कम दुगुने होना चाहिए। गांवों की तो भयंकर दुर्दशा है। यदि हमारे देश में बैठा, हकीम और होमियोपेथ न हों तो ग्रामीण और गरीब मरीज़ को मौत के मुंह में जाने से रोकना मुश्किल है।

मैंने अपने स्वास्थ्य-मंत्रियों से कई बार कहा है कि मेडिकल की पढ़ाई भारतीय भाषाओं में शुरु करें। उन्होंने मुझसे वादा किया लेकिन उसे अभी तक निभाया नहीं। दूसरी बात मैंने यह कही कि सभी चिकित्सा-पद्धतियों में समन्वय करें। यह क्रांतिकारी काम होगा, जिसका लाभ दूसरे देश भी उठा सकेंगे।

तीसरी बात यह कि डाक्टरी की पढ़ाई में रोगों के इलाज के साथ-साथ उनकी रोक-थाम पर भी पूरा ध्यान दिया जाए। अपने शास्त्रों में सही कहा गया है कि ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम’ याने धर्म का पहला साधन शरीर ही है।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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