पटरी पर लौटता कश्मीर

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इसी 31 अक्टूबर को जम्मू कश्मीर और लद्दाख दो केन्द शासित राज्य हो जाएंगे। बीते 5 अगस्त को राज्य से संबंधित पुनर्गठन विधेयक संसद से पारित होने के बाद अनुच्छेद 370 और 35ए निष्प्रभावी हो गया था। राज्य में नई परिस्थितियों के बीच पाक प्रायोजित आतंकवाद और अलगाववादी ताकतों के मंसूबों को नाकाम करने के इरादे से चाक -चौबंद सुरक्षा के साथ ही संचार के माध्यमों को बाधित कर दिया गया था। इसी कड़ी में छोटे-बड़े नेताओं को नजरबंद रखा गया था। अब धीरे-धीरे स्थितियां सामान्य होने के बाद ही सरकारी पाबंदियां भी हटाई जा रही हैं। पोस्पपेड मोबाइल फोन और इंटरनेट सेवा बीते सोमवार से बहाल हो गई है। एक अर्से बाद लोग अपने दूरदराज के परिजनों व रिश्तेदारों से सम्पर्क साध पा रहे हैं। उम्मीद है सब ठीक रहा तो प्रीपेड मोबाइल सेवा भी बहाल कर दी जाएगी। इससे पहले सरकारी दफ्तर, व्यावसायिक प्रतिष्ठान और स्कूल- कॉलेज अपने रूटीन पर लौट रहे हैं। अब ले-दे के नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के बड़े नेताओं पर से पाबंदी हटना बाकी है।

सरकार की यह कोशिश इस बात का संकेत हैं कि स्थितियां जैसे-जैसे सामान्य होती जा रही हैं, वैसे- वैसे सरकारी पाबंदियों में ढील भी दी जा रही है। मतलब यह कि मंशा साफ है कि सरकार चाहती है जल्द से जल्द राज्य में चुनाव के लायक वातावरण तैयार हो ताकि सबकी भागीदारी से विकास का नया रास्ता तय किया जा सके । इससे यह भी स्पष्ट हो गया है कि जो बातें देश के भीतर और पड़ोसी पाकिस्तान की तरफ से कही जा रही थीं कि मोदी सरकार ने असंवैधानिक तरीके से जम्मू कश्मीर की अवाम का भरोसा तोड़ दिया है। कांग्रेस ने तो कुछ वीडियो क्लिप्स का हवाला देते हुए आशंका जताई कि भारतीय फौज कश्मीरी अवाम से अमानवीयता बरत रही है। बड़ी अदालत से अनुमति मिलने के बाद गुलाम नबी आजादी हालात का जायजा लेने वहां गए भी थे। इससे पहले माकपा के नेता सीताराम येचुरी भी जा चुके थे। पहली बार राहुल गांधी की कमारत में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को जरूर कानून- व्यवस्था का हवाला देते हुए श्रीनगर एयरपोर्ट पर वहां की सरकार ने शहर के भीतर जाने से रोक दिया था।

पर अब बदल रही स्थितियों के बीच आम जनता के दिलो-दिमाग से स्पेशल स्टेटस को लेकर बरसों की धारणा को बदलने का भी काम हो रहा है। इसी सिलसिले में अजमेर दरगाह के सज्जाशीन और अन्य सूफी संतों ने घाटी में लोगों से मुलाकात कर उनकी आशंकाओं को दूर क रने का काम किया। सूफियों के मुताबिक सेना को लेकर किसी ने भी कोई शिकायत नहीं की। यह इसलिए भी गौरतलब है कि पिछले महीने सामाजिक कार्यकर्ता शहरा राशिद ने ट्वीट किया था कि सेना आम लोगों को बंदी बनाकर डरा रही है। पूरा श्मीर जेलखाना हो गया है। हालांकि उनका यह नैरेटिव बीच में ही दम तोड़ गया। शायद यह कुंठा ही है कि उन्होंने मौजूदा सियासत से संन्यास का ऐलान किया है। इस सबके बीच सरकार व सेना के साथ ही कश्मीर की आम जनता भी सराहना की पात्र है जिसने इतने दिनों सब्र से काम लियाए किसी के बहकावे में नहीं आयी।

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