प्रचलित लोक कथा के अनुसार पुराने समय में एक लडक़ा जीवन की परेशानियों से घबरा गया, उसे पैसा कमाने के लिए कोई भी काम नहीं मिल रहा था। लगातार मिल रही असफलताओं की वजह से वह निराश हो गया। एक दिन वह हताश होकर एक संत के पास गया। संत उस क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध थे। उनके पास आने वाले सभी लोगों को परेशानियों का हल मिल जाता था। वह दुखी व्यक्ति भी उनके पास पहुंचा।
निराश लडक़े ने संत को सभी परेशानियां बता दी। तब संत ने कहा कि तुम्हें कोई काम जरूर मिल जाएगा। इस तरह निराश नहीं होना चाहिए। व्यक्ति ने कहा कि मैं हिम्मत हार चुका हूं। मुझसे अब कुछ नहीं होगा। संत ने कहा कि मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं। इस कहानी से तुम्हारी निराशा दूर हो जाएगी।
कहानी के अनुसार कि सी गांव में एक छोटे बच्चे ने बांस का और कैक्टस का एक -एक पौधा लगाया। बच्चा रोज दोनों पौधों की बराबर देखभाल करता था। इसी तरह एक साल बीत गया। कैक्टस का पौधा तो पनप गया, लेकिन बांस का पौधा वैसा का वैसा ही था। बच्चे ने हिम्मत नहीं हारी और उसने दोनों की देखभाल करना जारी रखा। कुछ महीने और बीत गए, लेकि न बांस का पौधा नहीं पनपा था। बच्चा निराश नहीं हुआ और वह देखभाल करता रहा। कुछ महीनों के बाद बांस पौधा भी पनप गया और कुछ ही दिनों में कैक्टस के पौधे से भी ज्यादा बड़ा हो गया।
संत ने समझाया कि दरअसल बांस का पौधा पहले अपनी जड़ें मजबूत कर रहा था, इसीलिए उसे पनपने में थोड़ा ज्यादा समय लगा। हमारे जीवन में जब भी संघर्ष आए तो हमें हमारी जड़ें मजबूत करना चाहिए, निराश नहीं होना चाहिए। जैसे ही हमारी जड़ें मजूबत होंगी, हम तेजी से हमारे लक्ष्य की ओर बढऩे लगेंगे। जीवन में कभी-कभी थोड़ी ज्यादा मेहनत करनी होती है और परिणाम भी देर से मिलता है। तब तक धैर्य रखना चाहिए। वह युवक संत की बात समझ गया और उसने नई ऊर्जा के साथ आगे बढऩे का संकल्प लिया।
कथा की सीख
इस कथा की सीख यह है कि कुछ लोगों को जीवन में कभी-कभी बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है, लेकिन उसका फल नहीं मिलता है। ऐसी स्थितियों में निराश नहीं होना चाहिए, क्योंकि कभी-कभी मेहनत का फल थोड़ी देर से मिलता है। तब तक बिना रुके आगे बढ़ते रहना चाहिए और अपना काम ईमानदारी से करते रहना चाहिए।