हमने कहा-तोताराम, वैसे तो मोदी जी के पास हर मर्ज की दवा है। पर पंचर टायर में भरने के वास्ते हवा है। उनके जोश और जज्बे का क्या कहना? लेकिन 1947 में देश की अर्थव्यवस्था एक ट्रिलियन डॉलर की थी जो 70 साल में राम-राम करके अढ़ाई ट्रिलियन डॉलर हो पाई। मतलब 70 साल में मात्र अढ़ाई गुना वृद्धि। अब किस जादू से वह पांच साल में ही दुगुनी हो जाएगी? बोला- तूने 1979 में रिलीज हुई अमोल पालेकर और उत्पल दत्त की फिल्म ‘गोलमाल’ देखी है?
हमने कहा- मोदी जी द्वारा पांच साल में अर्थव्यवस्था को दुगुना बढ़ा देने का ‘गोलमाल’ से क्या संबंध है? क्या वे कुछ गोलमाल करेंगे? यह ठीक है कि कुछ लोग कैलकुलेशन में इतने माहिर होते हैं कि ‘वन टू का फोर’ कर देते हैं। देश की अर्थव्यवस्था की ग्रोथ रेट कुछ ज्यादा दिखाने के लिए पिछले दिनों ऐसी ही हाथ की सफाई की गई थी लेकिन मोदी जी कुछ भी करें लेकिन गोलमाल नहीं कर सकते। बोला- मेरी बात पूरी तो होने दे। याद कर ‘गोलमाल’ फिल्म में लक्ष्मण प्रसाद दशरथ प्रसाद (अमोल पालेकर) राम प्रसाद दशरथ प्रसाद बनकर सेठ द्वारका प्रसाद (उत्पल दत्त ) के पास असरानी का छोटा कुर्ता पहनकर जाता है। सेठ द्वारका प्रसाद उसे छोटा कुर्ता पहनने का कारण पूछता है तो वह कहता है- इस देश में करोड़ों लोगों को पहनने को पूरे वस्त्र नहीं मिलते जबकि लोग लम्बे-लम्बे कुर्ते पहनते हैं। यदि सभी लोग छोटे कुर्ते पहनने लगें तो देश के करोड़ों अधनंगे लोगों को वस्त्र उपलब्ध हो सकते हैं। हमने कहा-लेकिन मोदी जी तो लम्बा कुर्ता पहनते हैं।
बोला -जैसे अमोल पालेकर ने कम लम्बे कुर्ते का फंडा दिया वैसे ही मोदी जी ने ‘गोलमाल’ फिल्म देखकर आधी बांह के कुर्ते का अविष्कार किया। हां, दोनों के उद्देश्य अलग रहे; अमोल पालेकर सादगी और भारतीयता के सनकी बूढ़े सेठ की लडक़ी को पटाने के लिए छोटे कुर्ते का नाटक करता है जबकि मोदी जी ने तो समस्याएं कुछ कम करने के लिए कुर्ते की बांहें आधी कर दी थी। हमने कहा- यह बात तो सही है, तोताराम। परिवार वाले के काम तो घर में कौन, कब कर देता है, पता ही नहीं चलता। आदमी रोटी बना ले तो सब्जी बनाने का आलस सब्जी-रोटी दोनों बना ले तो बरतन मांजने का आलस। ऊपर से कपड़े धोना, प्रेस करना।
ऐसे में आदमी सोचता है साधुओं की तरह एक लंगोटी लगा लें, जंगल में चले जाएं और कंदमूल खाकर गुजारा कर ले। मोदी जी ने तो कुर्ते की बांहें ही छोटी की हैं। गांधी जी ने शायद इसीलिए बहुत से कपड़े छोडक़र सिर्फ आधी धोती अपना ली। परेशानी ही आविष्कार की जननी है। बोला- लेकिन ऐसे आविष्कारों का दूरगामी असर पड़ता है। गांधी जी ने लंगोटी लगाकर अंग्रेजों को भगा दिया और मोदी जी ने छोटी बांहें आधी करके देश को कांग्रेस मुक्त कर दिया। इसी प्रकार ‘मोदी इफेक्ट’ से अर्थव्यवस्था भी दुगुनी हो सकती है। याद रख, मोदी है तो मुमकिन है, शाह है तो संभव है।
रमेश जोशी
(लेखक वरिष्ठ व्यंगकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)