भारत की बदली भूमिका

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क्या भारत और रूस के संबंधों का गतिशास्त्र बदल गया है? पहले रूस भारत को सहायता देता था। यह पहला मौका है जब भारत ने रूप को कर्ज देने का एलान किया है। दोनों देशों के बीच सहयोग के सैन्य और असैन्य परमाणु सौदे भी अब तक होते रहे हैं। जिसमें भारत खरीदार और रूस विक्रेता रहा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस से अपने दो-दिवसीय दौरे पर कहा कि अब इसे बदलना है। उन्होंने खरीददार-विक्रेता के रिश्ते को बदलकर एक सहयोगी का रिश्ता बनाने पर जोर दिया। कहा कि दोनों देशों के बीच रिश्तों को सैन्य और असैन्य परमाणु व्यापार से आगे बढ़ा कर व्यवसाय और निवेश पर फोकस करने की बात कही। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी सहमति जताई कि दोनों पुराने सहयोगियों के बीच 11 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार बहुत कम है।

इसलिए दोनों नेताओं ने अगले छह सालों में 30 अरब डॉलर का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया। दोनों नेताओं ने आपसी सहयोग बढ़ाने का रोडमैप बनाया। सहयोग बढ़ाने के लिए नए क्षेत्रों में कृषि, फार्मा और इंफ्रास्ट्रक्चर हैं। दोनों नेता पांच- वर्षीय रोडमैप पर ऊर्जा क्षेत्र में दोहरे निवेश को बढ़ाने पर सहमत हुए। माना जा रहा है कि आर्थिक संबंधों को रफ्तार देने के निर्णय से दोनों देशों के बीच संबंधों को नए आयाम मिलेंगे। मोदी और पुतिन ने भारत में पर्यटन के उद्देश्य से अंतरदेशीय जल-मार्ग में रूस की भागीदारी की संभावनाओं पर चर्चा की। उन्होंने भारतीय उद्योगपतियों के लिए वीजा नियमों को आसान बनाने और मुद्रा संबंधी मामलों को सरल बनाने पर भी चर्चा की। उल्लेखनीय यह है कि मोदी ने भारतीय श्रमशक्ति को रूस भेजने का प्रस्ताव रखा।

बताया कि कैसे खाड़ी देशों जैसे देशों की आय में वृद्धि हुई है। भारतीय प्रवासी दूसरे देशों से धन भेजकर भारत की आय भी बढ़ा रहे हैं। विभिन्न क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच लगभग 50 समझौते हुए हैं, जिनसे अरबों डॉलर के निवेश की उम्मीद है। भारत और रूस के फार ईस्ट के बीच कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए चेन्नई और व्लादिवोस्तोक के बीच जल मार्ग शुरू करने का भी निर्णय लिया गया। भारत फार ईस्ट में विभिन्न क्षेत्रों, खासकर ऊर्जा तथा खनन में निवेश करेगा। यही मोदी की इस यात्रा की सबसे खास बात रही। रूस को विकसित देश समझा जाता है। भारत अभी भी विकासशील देश है। वह विकसित देशों को मदद देने लगा है, यह उल्लेखनीय है।

भारत की विदेश नीति की ही ये सफलता है कि खाड़ी देश भी कश्मीर मुद्दे पर अभी पाकिस्तान का साथ नहीं दे रहे हैं। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने मुस्लिम देशों के रवैये पर देशवासियों की निराशा पर है, कहा है कि उन्हें निराश होने की जरूरत नहीं है। अगर कुछ देश अपने आर्थिक हितों के कारण इस मुद्दे को नहीं उठा रहे हैं, वे आखिरकार इस मुद्दे को उठाएंगे। मगर हकीकत यही है कि खाड़ी के देश उससे दूर जा रहे हैं। कभी कश्मीर पर बार-बार प्रस्ताव पास करने वाले इस्लामी देशों के संगठन ओआईसी के सदस्य देश भी अब कश्मीर पर कुछ बोल नहीं रहे हैं। बल्कि इस संगठन ने भारत और पाकिस्तान से विवाद कम करने का अनुरोध किया है।

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