चंद्रयान-2 के लैंडिंग से चूकने के बाद भी सारा देश इसरो की मेधा और दिनरात की तन्मयता को नमन कर रहा है तो यह बिल्कुल स्वाभाविक है, ठीक है चन्द्रमां से चंद कदम दूर लैंडर विक्रम से इसरो वैज्ञानिकों का सम्पर्क टूट गया, जिससे जो इस महत्वपूर्ण अभियान से नई जानकारियों से देश और दुनिया को परिचित कराने का मिशन हो सकता था, उस पर जरूर ब्रेक लगा है। अब चंद्रयान-3 जब 2024 के लिए तैयार होगा। तब चांद के साउथ पोल के अबूझे संसार से परिचित होने का मौका मिल पाएगा। तो इंतजार का वक्त वढ़ा है, लेकिन आखिरी क्षणों में हुई चुक के बावजूद ना वैज्ञानिकों का हौसला कम हुआ है और ना ही देशवासियों का। चांद के साउथ पोल पर पानी की संभावना इसरो के पहले प्रोजेक्ट चन्द्रयान-1 से पता चली थी। चांद के नोर्थ पोल पर तो रूप, अमेरिका और चीन ने जरूर दस्तक दी लेकिन साउथ पोल पर भारतीय वैज्ञानिकों ने अपना आय उतारने का जो जोखिम दिखाया, वो किसी को भी प्रेरित करने के लिए काफी है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक 95 फीसदी मिशन पूरा हुआ है और इन दिनों में अब तक जो आकंडे प्राप्त हुए हैं, वे इस दिशा में आगे के सफर के लिए बड़े मददगार होंगे। उम्मीद है प्राप्त सूचनाओं के विश्लेषण के बाद ढेर सारी नई जानकारियां सामने आएंगी जो अदले मिशन की बुनयाद बनेंगी। इसीलिए वैज्ञानिक कहते है कि प्रयास और प्रयोग की निरंतरता में लक्ष्य मात्र मिशन होता है। इसरो के इस मिशन को लेकर पूरा देश रोमांचित था। हर उम्र के लोगों में गजब का उत्साह था। आखिरी क्षणों के चूक के बाद भी सभी की जुबान से वैज्ञानिकों के लिए निकले सराहना के बोल। खुद लैंडिंग देखने को इसरो में मौजूद रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी वैज्ञानिकों का हौसला बढ़ाते हुए चांद पर पहली बार पहुंचने की उम्मीद जताई। आम तौर पर अलग सुर में बोलने का आदि विपक्ष भी हौसला अफजाई में जुटा और इस तरह एक अरसे बाद यह अनुभव में आया कि देश का हर तबका एक सुर-ताल में दिखा। जहां तक मिशन में अवरोध आने का प्रश्न है तो अभी इस पर कयास ही लगाया जा सकता है।
लेकिन यही बताते हैं कि आखिरी क्षणों में जो कुछ भी हुआ उसके पीछे उस स्थान विशेष की प्रयावरणीय स्थिति हो सकती है, लेकिन यह परिघटना मानव जनित-त्रुटि का परिणाम इसलिए नहीं है क्योंकि अंत समय पर चद्रयान-2 को खुद ही अपने से उतरने की जगह तय करनी थी। शायद सतह समतल ना होने के कारण वह अपने रास्ते से भटक गया। फिलहाल तो उम्मीद की उम्र बढ़ गई है। पर कोई बात नहीं, गर्व की बात यही है कि भारतीय वैज्ञानिकों ने अपनी तकनीकी क्षमता के साथ चद्रयान का निर्माण किया था। मंगलयान की सफलतापूर्वक लांचिंग ने तो पूरी दुनिया में भारतीय वैज्ञानिक प्रतिभा का लोहा मनवाया था। इसलिए भी इसकी कामयाबी के चर्चे रहे क्योंकि नासा के वैज्ञानिकों ने इसी तरह के मिशन पर ज्यादा लागत से यान तैयार किया था। इस तरह अच्छी बात यह है कि भारत की वैज्ञानिक संस्थान निरंतर अपने दम पर आगे बढ़ रहा है। अपनी सोच से तैयार अपनी तकनीक अर्थात पूरी तरह स्वदेशी- यही आत्मनिर्भरता आने वाले दिनों में देश को अंतरिक्ष विज्ञान के मानचित्र पर प्रमुखता से दर्ज कराएगी। ऐसा इसलिए भी कि यह सदी अंतरिक्ष विज्ञान की सदी हैं। गर्व की बात है कि भारत बिना किसी होड़ के पूरी मानवता के लिए अपने मिशन को आगे बढ़ा रहा है।