सोरहिया मेला

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16 दिनों तक चलने वाला सोरहिया मेला 6 सितम्बर, शुक्रवार से 22 सितम्बर, रविवार तक
16 दिनों तक होती है भगवती मां लक्ष्मीजी की विशेष पूजा-अर्चना
धन-सम्पत्ति, वैभव एवं ऐश्वर्य के साथ होती है सन्तान सुख की प्राप्ति

भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में देवी-देवताओ की व्रत उपवास रखकर पूजा-अर्चना करने की धार्मिक व पौराणिक मान्यता है। इसी क्रम में भाद्रपद शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि से भगवती मां लक्ष्मी की उपासना का विशेष पर्व प्रारम्भ हो रहा है, जो कि आश्विन कृष्णपक्ष की अष्टमी पर्यन्त प्रतिदिन 16 दिनों तक चलता है। ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि भाद्रपद शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि 5 सितम्बर, गुरुवार को रात्रि 8 बजकर 50 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 6 सितम्बर, शुक्रवार को रात्रि 8 बजकर 43 मिनट तक रहेगी। जिसके फलस्वरूप 6 सितम्बर, शुक्रवार को अष्टमी तिथि का मान होने से भगवती लक्ष्मीजी की उपासना का पर्व इस दिन से प्रारम्भ हो जाएगा जो कि 16 दिनों तक लगातार 22 सितम्बर 22 सितम्बर, रविवार तक चलेगा। काशी में यह ‘सोरहिया मेला’ के नाम से प्रसिद्ध है, श्रीलक्ष्मीकुण्ड में स्नान का विधान है। ऐसी धार्मिक पौराणिक मान्यता है कि भक्तिभाव से किए गए व्रत से धन-सम्पत्ति, वैभव व ऐश्वर्य के साथ ही सन्तान सुख की प्राप्ति भी होती है।

श्रीलक्ष्मीजी की पूजा व व्रत का विधान – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रत के विधान में मिट्टी या चन्दन से निर्मित नवीन लक्ष्मी जी की आकर्षक व मनोहारी मूर्ति खरीद कर उसकी स्थापना करनी चाहिए। विधि-विधान से 16 दिनों तक पूजा-आराधना करनी चाहिए। व्रतकर्ता को चाहिए कि प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करके 16 बार 16 अंजिल जल से मुख व हाथ धोकर पूजा अर्चना करनी चाहिए। अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अराधना के पश्चात 16 दिन के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। भगवती लक्ष्मी के विग्रह की 16 परिक्रमा, 16 गांठ का धागा, 16 दूर्वा, 16 चावल का दाना व्रत की कथा सुनने के बाद महिलाएं अर्पित करती हैं। 16 सूत का, 16 गाठों से युक्त सूत्र को धूर, दीप, पुष्प आदि से पूजा करके हाथ के बाजू में धारण किया जाता है। 16 सूत्र को 16 गांठ बांधते समय एक-एक गांठ बांधते हुए ‘लक्ष्य्मै नमः’ मन्त्र बोलकर अर्थात प्रत्येक गांठ में एक मन्य का उच्चारण करके 16 गांठ बांधी जाती है। पूजा के अंतर्गत भगवती लक्ष्मी के विग्रह के सम्मुख आटे का 16 दीपक बनाकर प्रज्वलित किए जाते है। मां लक्ष्मीजी को वाहन हाथी की भी पूजा की जाती है। इस व्रत के अन्तर्गत दूर्वा के 16 पल्लव व अक्षत लेकर 16 बोल की कथा सुनी जाती है। भगवती लक्ष्मीजी के 16 दिन के व्रत के पारक के पश्चात ब्रह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देकर पुण्य अर्जित करना चाहिए। परनन्दिा नहीं करनी चाहिए। जीवनचर्या में शुचिता के साथ संयमित रहना चाहिए। व्रत नियमित रूप से 16 दिन तक किया जाता है। इसके पश्चात ब्रह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देकर पुण्य अर्जित करना चाहिए। इस व्रत को मुख्यतः महिलाएं ही करती हैं।

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