अल्पसंख्यकों का जीना हराम

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संयुक्त राष्ट्र के 1992 में पारित अल्पसंख्यकों सम्बन्धी घोषणापत्र के पहले ही अनुच्छेद में कहा गया है कि राज्य अधिकार क्षेत्र के भीतर अल्पसंख्यकों के राष्ट्रीय या जातीय , सांस्कृतिक , धार्मिक और भाषाई पहचान की सुरक्षा करेगा और उन परिस्थियों को बढावा देगा जिस से वे अपनी को बनाए रख सकें। भारत में 1992 के संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव से पहले से ही अल्पसंख्यकों को बढावा देने की नीति अपनाई गई , जिस कारण आज मुस्लिम समुदाय की आबादी 9 प्रतिशत से बढ़ कर 18 प्रतिशत के करीब हो गई है जो दुगनी है।

भारत में जब जब अल्पसंख्यकों के खिलाफ जुल्म की खबर आती है बहुसंख्यक समाज के लोग ही जुल्म करने वालों के खिलाफ आवाज उठाते रहते हैं। पहलू खान के मामले में नीचली अदालत का निर्णय भी अल्पसंख्यकों की आवाज उठाने वालों को संतुष्ट नहीं कर पाया है। कई बार तो ऐसी स्थिति पैदा हो जाती है कि अल्पसंख्यकों के साथ हुई छोटी मोटी घटना को भारत का अंग्रेजी मीडिया और कुछ लोग बढा चढा कर पेश करते हैं जिससे बहुसंख्यक समुदाय में ऐसे लोगों के खिलाफ चिढ पैदा होती जा रही है।

लेकिन पाकिस्तान में इससे उलटा है। भारत पाक बंटवारे के बाद पाकिस्तान में 1951 में हुई जनगणना के अनुसार अल्पसंख्यक हिन्दुओं और सिखों की आबादी 13 प्रतिशत थी। इ में से 10 प्रतिशत हिन्दू और सिख पाकिस्तान के उस हिस्से में रहते थे जहां अब बांग्लादेश बन चुका है। मौजूदा पाकिस्तान में 3 प्रतिशत हिन्दू थे। अब उनकी आबादी सिर्फ 1.6 प्रतिशत रह गई है।

संयुक्त राष्ट्र को अध्ययन करवाना चाहिए कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का अनुपात क्यों घट रहा है? भारत के हिन्दू संगठनों की ओर से लगातार आरोप लगाया जाता है कि पाकिस्तान में हिन्दुओं , सिखों और ईसाईयों का जीना हराम है , ज्यादातर मंदिर, गुरुद्वारों को तोड़ दिया गया और वहां मस्जिदें बना दी गई हैं या मुस्लिमों ने कब्जा कर लिया है। हिन्दू, सिख और ईसाई लडकियों को बालिग़ होने से पहले ही उठा ले जाते हैं और उन्हें मुस्लिम बना कर फौरन किसी मुस्लिम से निकाह करवा देते हैं। इस तरह की खबरों को भी दबा दिया जाता है।

भारत में विभाजन के बीज बोने के लिए पाकिस्तान ने 1980 में सिखों को भडकाना शुरू किया था जिसके नतीजे में भारत के पंजाब ने दस साल तक सिख आतंवाद को झेला| सिखों को गुमराह करने की पाकिस्तानी साजिश अभी भी जारी है , जिस का ताज़ा उदाहरण नवजोत सिंह सिद्धू को मोहरा बना कर सिखों को करतारपुर साहिब का कारीडोर का लालच देना था , लेकिन इस से पाकिस्तान के बहुसंख्यक मुसलमानों की जहनियत में बदलाव नहीं होना था, और नहीं हुआ। सिख लडकियों का अपहरण पहले की तरह जारी रहा, लेकिन सोशल मीडिया आने के कारण इस तरह की खबरें दबाई नहीं जा सकती।

शुक्रवार को सोशल मीडिया पर आई ननकाना साहिब गुरूद्वारे के ग्रन्थी की नाबालिग लडकी के अपहरण कर उसे मुस्लिम बनाए जाने और फौरन एक मुस्लिम लडके से निकाह किए जाने की खबर ने दुनिया भर के सिखों को सकते में डाल दिया है। सारी दुनिया ने सिख परिवार को सामने आ कर यह कहते हुए सुना कि अगर उन की बेटी वापस नहीं दिलाई गई तो वे आत्महत्या कर लेंगे। हैरानी तब हुई जब अल्पसंख्यकों के मुद्दों को बढा चढा कर पेश करने वाले भारत के अंगरेजी मीडिया ने इस खबर को कोई महत्व ही नहीं दिया।

पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में हर साल कश्मीर के मुसलमानों को भारत के अल्पसंख्यक बता कर उन के अधिकारों की आवाज उठाता है। क्या भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार अगले महीने होने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में संयुक्त राष्ट्र के अल्पसंख्यक प्रस्ताव का हवाला दे कर पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को खत्म कर देने वाली पाकिस्तान की नीति के खिलाफ आवाज उठाएंगे| इस समय सुषमा स्वराज की याद आती है, जिन के लिए मानवीय मुद्दे कूटनीति से ज्यादा महत्वपूर्ण हुआ करते थे।

अजय सेतिया
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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