हरितालिका तीज

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भगवान शिव, भागवती पार्वती व प्रथमपूज्यदेव श्रीगणेशजी की पूजा-आराधना का पर्व
अखण्ड सौभाग्य व सुख-समृद्धि के लिए विवाहित महिलाएं करती हैं व्रत – उपवास
कुंवारी कन्याएं भी मनोरंजन वर के लिए रखती हैं व्रत

हिन्दू धर्मशास्त्रों में हरितालिका तीज के व्रत की अनन्त महिमा है। यह व्रत सुहाग की रक्षा का प्रमुख व्रत है। सौभाग्यवती महिलाएं अखण्ड सौभाग्य की कामना लिए इस व्रत को रखती हैं। कुंवारी कन्याएं भी मनोवांछित एवं उपयुक्त वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत को करती हैं। यह व्रत गौरी तृतीया के रूप में भी जाना जाता है। हरितालिका तीज पर व्रत व उपवास रखकर भगवान पार्वती जी एवं प्रथम पूज्यदेव श्रीगणेशजी की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करती हैं। इस बार यह व्रत 2 सितम्बर, सोमवार को रखा जाएगा। भाद्रपद शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि 1 सितम्बर, रविवार को दिन में 11 बजकर 21 मिनट पर लगेगी जो कि 2 सितम्बर, सोमवार को दिन में 9 बजकर 01 मिनट तक रहेगी। 1 सितम्बर, रविवार को हरितालिका तीज का व्रत रखा जाएगा। व्रत को विधि-विधान पूर्वक करवे पर अखण्ड सौभाग्य बना रहता है। व्रत का पारण चतुर्थी तिथि के दिन किया जाता है।

पूजा का विधान – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि पूजा के अन्तर्गत मिट्टी या रजत-सुवर्णादि धातु से निर्मित शिव-पार्वतीजी की मूर्ति का पंचोपचार, दशोपचार तथा षोडशोरचार पूजा करने का विधान है। भगवान शिव व भगवत पार्वती के साथ ही सुख-समृद्धि के दाता श्रीगणेशजी की भी पूजा-अर्चना करते हैं। नवैद्य के तौर पर विभिन्न प्रकार के सूखा मेवा, ऋतुफल, मिष्ठान्न आदि अर्पित किए जाते हैं। हरितालिका तीज से सम्बन्धित कथा का श्रवण व पठन किया जाता है। व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए। साथ ही परनिन्दा व व्यर्थ की वार्तालाप से भी बचना चाहिए। हरितालिका तीज का व्रत आजीवन रखने पर अखण्ड सौभाग्य की सामग्री व अन्य वस्तुएं भी भेंट की जाती है। इस दिन अपना अध्यान भगवान शिव, भगवती पार्वती व श्रीगणेशजी के चरण-कमलों में ही रखकर पूर्ण मनोयोग से व्रत करना चाहिए। जिससे जीवन में अखण्ड सौभाग्य के साथ सुख-समृद्धि बनी रहे।

ज्योतिषिविद् श्री विमल जैन जी के अनुसार व्रत के एक दिन पूर्व भोजन करके दूसरे दिन सम्पूर्ण दिन निर्जला निराहार (बिना कुछ ग्रहन किए) रहा जाता है। प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान-ध्यान के पश्चात अपने आराध्य देवी-देवता के पूजनोपरान्त हरितालिका तीज के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। व्रत वाले दिन व्रती महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं। तथा हाथों में मेंहदी रचाती है। हरितालिका तीज को और अधिक खुशनुमा बनाने के लिए अपनी राशि के अनुसार परिधान करक पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

रंगों का चयन – राशि के अनुसार –

मेष – लाल, गुलाबी
वृष – क्रीम,
मिथुन – धानी व फिरोजी
कर्क – हल्का पीला व क्रीम
सिंह – लाल, गुलाबी एवं सुनहरा
कन्या – फिरोजी व हल्का हरा
तुला – क्रीम, आसमानी एवं नीसा
वृश्चिक – लाल, गुलाबी और सुनहरा
धनु – सुनहरा व पीला
मकर – लाइट ग्रे,
कुम्भ – हल्का नीवा व ब्राउन
मीन- हलके व गहरे पीले रंग के परिधान धारण करना चाहिए।

जन्मतिथि के अनुसार – जिन्हें अपनी जन्मराशि मालूम न हो उन्हें अपनी जन्मतिथि के आधार पर हरितालिका तीज को और अधिक सौभाग्यशाली बना सकते हैं। जिसकी जन्मतिथि किसी भी माह की 1, 10, 19 व 28 हो, उनके लिए लाल, गुलाबी, केसरिया। 2, 11, 20 व 29 वालों के लिए सफेद एवं क्रीम। 3, 12, 21 व 30 के लिए सभी प्रकार के पीला व सुनहरा पीला। 4, 13, 22 व 31 के लिए लभी प्रकार के चमकीले, चटकीले मिले-जुले व साथ ही हल्का स्लेटी रंग। 5, 14 व 23 के लिए हरा, धानी व फिरोजी रंग। 6, 15, 24 के लिए सफेद व चमकीला सफेद अथवा आसमानी नीला। 7, 16, व 25 के लिए चमकीला, स्लेटी व ग्रे रंग। 8, 17 व 26 के लिए काला, ग्रे व नीला रंग। जबकि 9, 8 व 27 के लिए लाल, गुलाबी व नारंगी रंग के परिधान लाभ पहुंचाने में सहायक रहेंगे।

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