जिन्दा रहने के लिए हिन्दुओं के दिल में उतरना होगा कांग्रेस को

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और यह पूरे विपक्ष का संकट है। अनुच्छेद 370 पर कांग्रेस संसद में जैसी बिखरी और जिस परेशानी दुविधा, अनिर्णय में थी वह कांग्रेस की अब स्थायी बदहाली है। इसलिए कि आगे मंदिर का फैसला है। बांग्लादेशी घुसपैठियों का बवाल है तो समान नागरिक संहिता का वक्त भी आना है। यहीं नहीं गौहत्या पाबंदी का अखिल भारतीय कानून भी बन सकता है। और नोट रखें कि अयोध्या में मंदिर बनने के बाद काशी-मथुरा का मुद्दा खुलेगा। इसलिए कि यदि भारत राष्ट्र-राज्य के सुप्रीम कोर्ट ने एक बार इतिहास के खंडहरों में हिंदू मंदिर होने की हकीकत के तर्क को मान्यता दे दी तो हिंदू का दिल बाकी मंदिरों के लिए क्यों नहीं रोएगा?

हां, यहीं सब आगे होना है क्योंकि नरेंद्र मोदी-अमित शाह हिंदू मनोविश्व को हवा देने, हिंदू के दिल को धड़काने वाले ग्रैंडमास्टर हैं। इन्हें समझ आ गया है कि हिंदू किस प्रकृति का है और उसका राजनीतिक उपयोग किस-किस तरह से संभव है।

तभी मसला हिंदू के दिल का है। कुछ सुधीजनों ने अनुच्छेद 370 पर टिप्पणी की कि केंद्र सरकार ने कश्मीरियों (मुसलमान) का दिल तोड़ दिया। 370 के जरिए दिल से दिल मिले हुए थे वे टूट गए, विभाजित हो गए! पर जरा यह भी सोचें कि कांग्रेस, गुलाम नबी आजाद, अधीर रंजन चौधरी, चिदंबरम ने अनुच्छेद 370 को हटाए जाने पर जब स्यापा किया तब हिंदुओं का दिल कांग्रेस से कितना टूटा होगा? सो, आज विपक्षी राजनीति का बुनियादी सवाल है कि कांग्रेस और विपक्ष को हिंदू से दिल जोड़ना है या नहीं? उसे बहुसंख्यक याकि हिंदू का दिल जीतना है या अल्पसंख्यक मुसलमानों का? बेबाक अंदाज में इसे इस तरह पूछ सकते हैं कि वोट की राजनीति मुसलमान से सधेगी या हिंदू वोट से? कांग्रेस भले प्रियंका गांधी को अध्यक्ष बना दे, सैम पित्रोदा या दुनिया के तमाम विशेषज्ञों की सलाह के रोडमैप पर संगठन-पार्टी को वह खड़ी करे लेकिन क्या हिंदू के दिल में बिना घुसे, उसे जीते बिना क्या वोट पा सकती है?

सो अनुच्छेद 370 पर कांग्रेस का अभी जो रवैया रहा उस एप्रोच में हिंदू के दिल में राहुल, सोनिया या कांग्रेस का कोई भी अगला अध्यक्ष पांच-दस प्रतिशत भी पार्टी की जगह बनवा सकता है? कांग्रेस और विपक्ष के कई रणनीतिकार सोचते हैं कि दिल का रास्ता पेट से बनता है। हिंदू भूखे, बेरोजगारी से जब बिलबिलाएंगे तो इंसान बनेंगे और कांग्रेस याकि गैर-भाजपाई समूह को इंसानियत की पार्टी समझ उनको वोट देंगे। या जब मोदी-शाह की रीति-नीति से देश गृह युद्ध की और जाएगा तो हिंदू के दिल-दिमाग में अपने आप कांग्रेस फिर स्थापित हो जाएगी।

पहली बात यह दीर्घकालीन कालावधि वाली सोच है। जबकि आज कांग्रेस बिना खून के है। पार्टी लावारिसपने से आईसीयू में भर्ती है तो यदि जिंदा रहना है तो अल्पकालिक ऑक्सीजन मतलब 2024 या 2029 या 2034 की छोटी अवधि में जिंदा रहने, अपने को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए पहले सोचना होगा या नहीं? उसे हिंदू दिल को जीतने का प्रबंध करना होगा या नहीं? दीर्घकाल में तो जलवायु संकट, सभ्यताओं के संघर्ष में हम सब मर भी सकते हैं, पृथ्वी जीव शून्य भी हो सकती है। तभी तात्कालिक-अल्पकालिक तकाजे में 2014 और 2019 व अनुच्छेद 370 के अनुभव से पैदा इकलौता सवाल है कि कांग्रेस को चुनाव लड़ने, राजनीति करने लायक रहने के लिए हिंदुओं का दिल कैसे जीतना है?

तो जान लें कि कांग्रेस यह काम पेट के रास्ते याकि न्यूनतम वेतन गारंटी, कर्ज माफी, शौचालय या ज्यादा सड़कें बनाने जैसे वादों, अपनी राज्य सरकारों के काम से नहीं कर सकती है। ऐसी बातों पर हिंदू मानस तब विचार करेगा जब कांग्रेस पहले हिंदू के दिल में बैठे। वह दिल जीते हुए हो।

इस बात को बारीकी से समझें। कोर सत्व-तत्व है कि हिंदू के लिए दिमाग बाद में है और दिल पहले। इसलिए क्योंकि दिमाग इतिहासजन्य गुलामी के अनुभव की परंपराओं में बंधा और उसी से हाइबरनेशन वाली अवस्था में है। इसी के सिग्नल दिल को भक्ति, आस्था, मान्यताओं, खौफ में धड़काते हैं। गांधी ने याकि आजादी से पहले कांग्रेस ने इसे बखूबी समझा था। तभी मोहनदास करमचंद गांधी ने संत के कपड़े धारण कर महात्मा-संत-आश्रम-वैष्णव जन के भजनों से हिंदू के दिल में जगह बनाई। हिंदू के दिल में उस रूप की बनी जगह के आगे सभी बुद्धिमान हिंदू फेल थे। हिंदू महासभा और करपात्री महाराज भी फेल।

कांग्रेसियों को सोचना चाहिए कि गांधी ने हिंदुओं का दिल जीता न कि हिंदू महासभा, सावरकर ने तो आखिर कैसे? इसलिए क्योंकि साबरमती के संत की दिनचर्या, उनकी आश्रम परपंरा, हिंदू व्रत-उपवास, सुबह-शाम भजन का व्यवहार हिंदू के दिल को छूता था। उस सबका प्रचार, मार्केटिंग, वैश्विक चर्चा में हिंदू का दिल तब यह सोचते हुए धड़कता था कि गांधी से हिंदुओं का राज आ रहा है। आने वाला वक्त रामराज्य का है। हम बनेंगे विश्व गुरू! देखो एक हिंदू संत ने अंग्रेजों को भगा दिया। यूपी में हिंदू राज बना दिया। मुस्लिम लीग को वहा सत्ता में नहीं आऩे दिया!

अब जरा सोचें, नरेंद्र मोदी की ब्रांडिग में गांधी जैसी मार्केटिंग, रामराज्य, विश्व गुरू के वे तमाम एलीमेंट क्या नहीं हैं, जिनसे कभी हिंदू का दिल कांग्रेस के लिए धड़कता था? दिक्कत यह है कि जैसे सामान्य हिंदुओं का इतिहासबोध नहीं है वैसे अपने ज्ञानी-पढ़े लिखे नेताओं-बौद्धिकों को भी नहीं है कि गांधी-नेहरू-पंत ने भी आजादी से पहले यूपी में मुस्लिम लीग, मुसलमानों का सत्ता में साझा नहीं बनने दिया। कांग्रेस ने अकेले अपना राज बनाया तो वह भी गंगा-यमुना के हिंदुओं में मैसेज बनवाने वाला था कि कांग्रेस असली हिंदुवादी!

तब और अब के वक्त का फर्क है जो तब के वक्त की हवा में हिंदू का दिल संतई-अहिंसाई सूत्रों पर गांधी से जुड़ा। अब क्योंकि बीस सालों की इस्लाम की वैश्विक चिंता से, आंतकवाद से जुड़ा वक्त है तो स्वभाविक है जो हिंदू का दिल नरेंद्र मोदी की छप्पन इंची छाती में सुरक्षा पा रहा है। वह उनसे पुरानी गलतियों को दुरूस्त कराने वाला हीरो पा रहा है।

तो लब्बोलुआब गांधी-कांग्रेस थी बहुसंख्यकता याकि मैजोरिटीवाद याकि हिंदू के दिल को छू कर राजनीति करने वाली। हिंदू जो चाहता है, जैसा उसका स्वभाव है और वक्त का जो तकाजा है उस अनुसार गांधी-नेहरू-इंदिरा सबने हिंदू के दिल को छू कर उनका दिल जीता। इंदिरा गांधी रूद्राक्ष माला पहनती थीं, पूजा-पाठ करती थीं, मंदिरों में जाती थीं, राष्ट्रवादी एक्शन लेती थीं तो टारगेट हिंदू का दिमाग नहीं दिल होता था। दिल उन्होंने वाजपेयी तक का जीता तभी उनका संबोधन ‘दुर्गा’ का निकला। तब वह वाजपेयी का दिमाग नहीं दिल बोल रहा था।

इसलिए सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कांग्रेस कार्यसमिति या आगे के कांग्रेस अध्यक्ष की पहली जरूरत हिंदू के दिल में जगह बनाना है। इसके लिए पहले वह विश्वसनीय हिंदू चेहरे, हिंदू भाव-भंगिमा में अपने को बदले। हिंदू के दिल को पहले छुए। दिल को छूने का एक एक्शन प्लान हो। इसके प्रतीक सौ टका हिंदू और हिंदुवादी हों। कांग्रेस कार्यसमिति विचार करके प्रस्ताव बना कर उस तमाम एजेंडे को हाईजैक करे जो मोदी-शाह का आगे का रोडमैप है। क्यों नहीं जम्मू-कश्मीर में यह स्टैंड लेने की हिम्मत हुई कि अनुच्छेद 370 तब की एक जरूरत थी। सत्तर साल बाद मौजूदा सरकार इसे जरूरी नहीं मान रही है तो हम इस फैसले का समर्थन करते हैं और उम्मीद करते हैं कि पांच साल बाद जम्मू-कश्मीर में सब कुछ सामान्य होगा। या यह कि क्यों सुप्रीम कोर्ट से अयोध्या जैसे भावनात्मक फैसले कराने की जोखिम ली जा रही है, सरकार सीधे मंदिर बनाने का कानून बनाए हम उसको समर्थन देंगे। कांग्रेस ने सोमनाथ बनवाया, अय़ोध्या में शिलान्यास कराया तो केंद्र सरकार अदालत के बजाय सीधे फैसले का साहस करे!

संदेह नहीं कि इससे मुसलमानों का दिल टूटेगा? वे ओवैसी याकि 1947 से पहले की मुस्लिम लीग की तरफ बढ़ेंगे। इस तरह की चिंता मुझे भी है। मैं कांग्रेस को समझाने, हौसला बढ़ाने और उसे जिंदा रखने की जरूरत इसलिए मानता हूं क्योंकि जम्मू-कश्मीर से ले कर केरल तक मुसलमान-ईसाई याकि भारत की विविधताओं, सह-अस्तित्व का ऑल्टरनेटिव म़ॉडल, मंच, उसकी पार्टी यदि नहीं बची रही तो आगे वहीं होगा जो भारत के हजार साला राष्ट्र-राज्य का औसत अनुभव है। हम सबका, राष्ट्र-राज्य का और खास कर हिंदू राष्ट्रवादियों का हिंदू हित में भी कर्तव्य है कि कांग्रेस दौड़ती-कूदती पार्टी बनी रहे और भारत सेकुलर आइडिया ऑफ इंडिया व हिंदू आइडिया ऑफ इंडिया की समानांतर दो मुख्य धाराओं का विकल्प लिए रहे। सवा सौ-डेढ़ सौ-दो सौ करोड़ लोगों और उसमें चालीस-पचास करोड़ मुसलमानों की भावी तस्वीर में एक पार्टी, एक विचार की एकछत्रता, तानाशाही मां भारती के कण-कण में क्या करा सकती है, यह सोचते हुए जरूरी है कि दिल से बंधे लोगों के लिए आस्था के दो केंद्र सदैव उपलब्ध हों।

सो, कांग्रेस की जरूरत नहीं, बल्कि उसका दायित्व भी है कि वह पहले अपने को हिंदू के दिल से जोड़े। हिंदू के दिल में यह विश्वास बनाए कि कांग्रेस महात्मा गांधी- इंदिरा गांधी की हिंदू पार्टी है और सच्चे-आधुनिक राष्ट्रवादी हिंदू हम हैं न कि मोदी-शाह या प्रज्ञा ठाकुर।

मतलब देश हित में, कांग्रेस हित में, भाजपा हित में है कि हिंदू होने का कंपीटिशन होते हुए दो पार्टियों में हिंदू राजनीति हो। दिक्कत सेकुलर बुद्विजीवियों के कठमुल्लाई नैरेटिव की है। वे कांग्रेस को ऐसे सोचने ही नहीं देंगे। तभी अनुच्छेद 370 के अनुभव के बावजूद कांग्रेस कार्यसमिति यह देख नहीं पाई कि हिंदू का दिल कैसे अलग धड़का और उनकी पार्टी किनसे दिल लगाए बैठी है? ठीक है कि गुलाम नबी के दिल की चिंता होनी चाहिए, उन्हें बोलने दिया कोई बात नहीं मगर लोकसभा में तो खुद राहुल गांधी को ख़ड़ा होना था, बोलना था कि यदि ऐसा ही है तो भाजपा ने पांच साल क्यों गंवाए? अगस्त 2015 में क्यों नहीं अनुच्छेद 370 हटाई ताकि अब तक तो कश्मीर आपके रोडमैप से सामान्य हो चुका होता? जाहिर है मुसलमान की चिंता करते हुए, सेकुलर होते हुए भी हिंदुवादी दिल धड़के रह सकता है! उस नाते कांग्रेसियों के लिए क्यों कर गांधी-नेहरू-पटेल प्रमाण नहीं बन पा रहे हैं, यह समझ नहीं आ रहा है! क्या कांग्रेसी जानते नहीं कि गांधी अपने सपने को रामराज्य बताते थे। सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर बनवाय़ा था और उस पर नेहरू ने कैबिनेट में ठप्पा लगाया था। अयोध्या के बाबरी ढांचे में सेकुलर नेहरू और पंत ने राम लला की मूर्तियां लगने दी, रहने दी! क्या नहीं? और हां, राजीव गांधी ने वहा शिलान्यास भी करवाया!

हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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