सरकार की कमान अब शाह के हाथों में

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मोदी सरकार की कमान अमित शाह के हाथ में आ चुकी है। आपने देखा होगा कि नई सरकार गठित होने के बाद जब से संसद का पहला सत्र शुरू हुआ है, नरेंद्र मोदी परिदृश्य में कहीं दिखाई नहीं देते। पिछली मोदी सरकार लाख कोशिश कर के भी राज्यसभा में विपक्ष का किला भेद नहीं पाई थी। मोदी के रणनीतिकार अमित शाह के सरकार में शामिल होते ही परिस्थियां बदल गई है। अब मोदी निश्चिंत हैं क्योंकि भाजपा का एजेंडा लागू करने का मोर्चा अमित शाह ने सम्भाल लिया है । अमित शाह के सरकार की बागडोर सम्भालने का संकेत उसी दिन मिल गया था , जब उन्होंने भरी लोकसभा में जवाहर लाल नेहरु की धज्जियां उडाई थी ।

भाजपा का कार्यकर्ता मोदी की पिछली सरकार के समय निराशा में झूल रहा था क्योंकि मोदी ने भाजपा-संघ एजेंडे की एक बात भी लागू नहीं की थी । बालाकोट पर सर्जिकल स्ट्राईक कर के मोदी ने अपने नाराज कार्यकर्ताओं को संकेत दिया था कि श्रीराममंदिर भले न सही कश्मीर उन के एजेंडे पर है। भाजपा के एजेंडे को लागू करने की गारंटी के बाद ही भाजपा संघ का कार्यकर्ता 2014 से भी ज्यादा ताकत के साथ चुनाव में जुड़ । चुनाव के दौरान ही अपनी यह धारणा बन गई थी कि सरकार बनते ही आपरेशन कश्मीर शुरू होगा , हालांकि अपनी धारणा यह भी थी कि राज्यसभा में बहुमत मिलने तक सरकार 370 या 35 ए को नहीं छूएगी ।

पर अमित शाह ने जिस तेजी के साथ राज्यसभा के समीकरण बदले हैं उस की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था । सोलहवीं लोकसभा में कांग्रेस राज्यसभा के जिस बहुमत के बल पर इतराती थी, अमित शाह ने आते ही वह घमंड चकनाचूर कर दिया । जो तीन-तलाक बिल सोलहवीं लोकसभा में पास हो कर राज्यसभा में अटक गया था , वह उन्होंने उसी राज्यसभा से पास करवा लिया । न सिर्फ तीन तलाक अलबत्ता यूएपीए बिल भी पास हुआ । ये दोनों बिल असल में 370 और 35 ए पर फैसला लेने का ट्रायल थे । असली रणनीति तो कश्मीर में 370 को निष्प्रभावी बनाने की चल रही थी।

पिछली सरकार के समय जब अरुण जेटली 370 और 35 ए को हटाना नामुमकिन काम मान रहे थे , तभी सुब्रहमण्यम स्वामी ने कहा था कि इन्हें राष्ट्रपति के एक आदेश से हटाया जा सकता है संसद में संविधान संशोधन की कोई जरूरत ही नहीं । अमित शाह तभी से भाजपा के सभी वकीलों से इसी दिशा में सलाह मशविरा कर रहे थे । हरीश साल्वे भी इस बात से सहमत थे कि राष्ट्रपति के आदेश से 35 ए खत्म हो सकता है । असल में कश्मीर को भारत से अलग बनाए रखने के लिए 35 ए जिम्मेदार था , जो 370 के तहत ही कश्मीर को स्वायत अधिकार देने के लिए 1954 में राष्ट्रपति के आदेश से जोड़ा गया था । अमित शाह के कानूनी सलाहाकारों ने उसी पर काम किया , पांच अगस्त को जब संसद में चार प्रस्ताव रखे गए तो धारणा यह बनी कि 370 खत्म कर दिया , असल में 370 तो बरकरार है , लेकिन उस के जिस प्रावधान के कारण 1954 और उस के बाद संशोधन हुए थे , उसे खत्म कर दिया गया है । यानी कश्मीर के सारे संवैधानिक विशेषाधिकार खत्म हो गए।

अमित शाह ने लगते हाथों दूसरा काम यह करवाया कि आरएसएस के एक वरिष्ठ प्रचारक के कश्मीर को तीन हिस्सों में बांटने के फार्मूले को संशोधित कर के लागू कर दिया । वाजपेयी सरकार के समय संघ के उस प्रचारक का मूल प्रस्ताव जम्मू, कश्मीर, और लद्दाख को तीन संघ शासित राज्य बनाने का था । संघ के अनेक वरिष्ठ प्रचारक इस फार्मूले से सहमत नहीं थे , इस लिए उसे बीच में छोड़ दिया गया था । उन का मत था कि ऐसा करने के कश्मीर करीब करीब सौ फीसदी मुस्लिम आबादी वाला राज्य बन जाएगा , जो नई मुसीबत होगा । अमित शाह ने उस मूल सुझाव को संशोधित कर के जम्मू कश्मीर राज्य को तीन की बजाए दो केंद्र शाषित क्षेत्रों में बदलने का प्रस्ताव संसद में रखा है । लद्दाख में तो विधानसभा नहीं होगी , अगर परिसीमन के बाद जम्मू कश्मीर विधानसभा के चुनाव हुए तो हिन्दू विधायकों की संख्या ज्यादा होगी और हिन्दू मुख्यमंत्री बन सकेगा।

अजय सोतिया
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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