संसद के बिना दोनों धाराओं को हाथ नहीं लगाया जा सकता

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कश्मीर की घाटी में अचानक हजारों सुरक्षाकर्मियों के पहुंचने से बड़ा हड़कंप मच गया है। कश्मीर के इतिहास में ऐसा शायद पहली बार हुआ है कि अमरनाथ-यात्रियों और सारे देशी-विदेशी पर्यटकों को तुरंत कश्मीर छोड़ने के लिए कहा गया है। ऐसा तब हो रहा है जबकि राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने पिछले सप्ताह ही कहा था कि कश्मीर के हालत ठीक-ठाक हैं तो फिर अब क्या हुआ?

सरकार का कहना है कि उसकी गुप्तचर एजेंसी की पक्की सूचना है कि आतंकवादी भयंकर हमला करने वाले हैं। उसने कई खतरनाक हथियार भी पिछले एक-दो दिनों में जब्त किए हैं। कश्मीरी राजनीतिक दलों के नेताओं का मानना है कि यह अपूर्व सुरक्षा तैयारी केंद्र सरकार ने इसलिए की है कि वह धारा 370 और 35 ए को खत्म करना चाहती है। उसके इस कदम से कश्मीर में जो जन-आक्रोश उफनेगा, उसे दबाने के लिए चप्पे-चप्पे में फौज और पुलिस को तैनात किया जा रहा है।

कुछ लोगों ने मुझसे पूछा कि भारत सरकार पाकिस्तान पर हमला तो नहीं करना चाह रही है और कुछ ने यह भी पूछ लिया है कि कहीं पाकिस्तान युद्ध तो नहीं छेड़ना चाह रहा है ? आखिरी के ये दोनों सवाल इतने बोदे हैं कि इनका जवाब देने की जरुरत नहीं है। दोनों देश आज किसी भी कीमत पर युद्ध नहीं छेड़ सकते। जहां तक धारा 370 और 35 ए को खत्म करने का सवाल है, यह मुद्दा संसद और सर्वोच्च न्यायालय की राय के बिना कोई सरकार कैसे हल कर सकती है?

आतंकवादी हमले की आशंका ही इस सुरक्षा इंतजाम का तात्कालिक कारण मालूम पड़ता है। इस मौके पर आतंकी हमला क्यों हो सकता है, खास तौर से तब जबकि अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संगठन ने पाकिस्तान का टेंटुआ कस रखा है? इसलिए हो सकता है कि आतंकी लोग इस समय भयंकर झुंझालाहट में हैं। वे अपने आश्रयदाता पाकिस्तान को भी शायद सबक सिखाना चाहते हों। वे दुनिया को शायद यह संदेश भी देना चाह रहे हों कि हम पाकिस्तान की कठपुतली नहीं हैं। वे आतंकी हमला करके इमरान खान के आतंकवाद-विरोधी बयानों पर पानी फेरना चाहते हों।

खबर यह है कि पिछले दो-ढाई माह से जो आतंकी लोग नियंत्रण-रेखा से दूर चले गए थे, अब वे फिर उसके आस-पास मंडराने लगे हैं। भारत और पाकिस्तान, दोनों के हित में यही है कि दोनों देश मिलकर कश्मीर में हिंसा न भड़कने दें। यदि डोनाल्ड ट्रंप मध्यस्थता के लिए बहुत ही उत्सुक हैं तो उन्हें मोदी से पूछने की क्या जरुरत है ? वे कोई ऐसा हल सुझाएं, जिसे दोनों मुल्क स्वीकार कर ले।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं…

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