मातृ-भूमि

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आज की ताजा खबर….
आज की ताजा खबर…
चौराहे पर खून….
प्रधानमंत्री पहुंचे रंगून
पांच भूरे मरे…
दो नेता पुलिस ने धरे…
मौजी में हुआ बलवा…
पकड़ा गया डाकू कलुवा…
‘ऐ अखबार वाले! एक अख़बार तो देना।’ साहब ने गाड़ी की शीशा उतार कर आवाज लगाई। मोहन ने झट से एक अख़बार निकाल कर बाबू साबह को दिया। पैसे लिए और फि उसी अंदाज में आगे बढ़ गया…..

“चौहारे पे खून……..
प्रधानमंत्री पहुंचे रंगून……”

आगे खड़ी एक गाड़ी में भी एक साहब बैठे थे। शीशा खुला था और वह बड़ी उत्सुकता से सुन रहे थे कि मोहन क्या कह रहा है। मोहन कहता हुआ आगे निकल गया, परन्तु उन्होंने अख़बार नहीं ख़रीदा। अब अगली लाल बत्ती तक कोई और बिक्री होने की संभावना नहीं थी। इन बाबू साहब की कार के आगे बस एक ट्रक था। अतः मोहन वापिस लौट आया। मोहन को घर जाने की जल्दी थी। उसने सोचा क्यों न इन बाबू साहब से मैं ही पूछ लूं, शायद एक अख़बार ले लें। बड़े प्यार से मेरी ओर देख रहे हैं। एक अख़बार उनकी तरफ बढ़ाते हुए मोहन बोला, “चौराहे प खून…. प्रधानमंत्री गए रंगून….”

बाबू साहब मुस्कुराते हुए कहा, ‘तो मैं क्या करूं? चले गए तो जाने दो।’ मोहन ने फिर कहा, “साबह पांच भूखे मरे, दो नेता पुलिस ने धरे….” बाबू साहब ने बीच में टोककर कहा, “बेटे दो क्या सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लेना चाहिए तभी देश का भला होगा। आगे जा… यहां समय ख़राब न कर…मुझे नहीं पढ़ना तेरा अखबार। पर तू बोलता बहुत अच्छा है।”

अगर बाबू साहब डॉट देते तो बेचारा मोहन आगे पढ़ जाता। परन्तु उन्होंने ये वाक्य इतने प्यार से कहे कि मोहन को अपनापन लगने लगा। वह सोच रहा था कि जल्दी से बाकी अख़बार बिक जाते तो वह घर जता। घर पर उसका कोई इन्तज़ार कर रहा था…..। मोहन की आंख से एक आंसू लुढ़क गया। वह रुआंसा होकर बोला, ‘इतनी अच्छी-अच्छी खबरें हैं, एक अखबार तो ले लीजिये न। मेरी मां ….’ मोहन रो पड़ा।

बत्ती हरी हो गई थी और बाबू साहब के सामने वाली गाड़ी चौराहा पार कर चुकी थी। पीछे वाली गाड़ियां हॉर्न दे रही थी। बाबू साहब ने गाड़ी का दरवाजा खोला और मोहन को जल्दी से गाड़ी में खींच लिया। यह इतना तेजी से हो गया कि मोहन को ना-नुकर करने का समय व होश भी न मिला। बाबू साहब ड्राइवर से बोले, ‘गाड़ी चलाओं, चौहारे के आगे बाई तरफ रोल लेना।’

ड्राइवर ने गाड़ी चौराहे के आगे निकाल कर एक तरफ लगा ली जिससे पीछे आने वाली गाड़ियों को परेशानी न हो। बाबू साहब ने मोहन से पूछा, “अब बता, क्या कह रहा था?” मोहन इस तरह गाड़ी में जबरन बैठाए जाने से घबरा गया था। पर जैसे ही कार रुकी और साहब ने बड़े आत्मीय ढंग से पूछा तो उसकी जान में जान आई। मोहन बोला, “साहब मेरी मां बीमार है। अगर अख़बार जल्दी बिक गए तो दवा लेकर जल्दी घर पहुंच जाऊंगा।” यह कहकर मोहन कार से उतर चुका था।

साभार
उन्नति के पथ पर (कहानी संग्रह)

लेखक
डॉ. अतुल कृष्ण
(अभी जारी है… आगे कल पढ़े)

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