केले का छिलका

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उन्नति के पथ पर
उन्नति के पथ पर

वास्तव में दो मिनट में सुलेखा, बृजमोहन औप पिन्टू जीप में आ बैठे। पिन्टू को कहां छोड़ते? साथ लेना आवश्यक था।

“चलिये भाई साहब” बृजमोहन अशोक से बोले।

ड्राइवर ने चीप स्टार्ट कर दी। अभी पिन्टू की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि हम सब जा कहां रहे हैं। उसे क्या पता था कि उसके भाई का एक्सीडैन्ट हो गया है। अव अपनी भोली आवाज़ में बोला, ‘हम कहां जा रहे हैं, पाप?’

“देशबन्धु अस्पताल।” पापा ने छोटा सा उत्तर दिया।

नादान पिन्टू ने थोड़ा रुकने के बाद फिर पूछा, “देशबन्धु कैन थे, पाप?” पिन्टू नादान तो था पर बुद्धि तेज थी। उसे याद था कि कुछ दिन पहले ही पापा ने बताया था कि बड़े-बड़े महापुरुषों के नामों पर स्कूलों, अस्पतालों, सड़कों, पार्कों लाइब्रेरियों का नाम रखा जता है। इससे ही तो हम उनके बलिदानों को जान पाते हैं और अपने जीवन में कुछ न पाने की प्रेरणा पाते हैं।
ने उसे यह भी याद था कि पापा ने बताया था कि तिलक लाइब्रेरी का नाम श्री लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के नाम पर रखा गया है। तिलक जी ने ही नारा दिया था, “स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, हम इसे लेकर रहेंगे।” पर वो बेचारा क्या जाने स्वराज्य क्या होता है।

पिन्टू की बात का बृजमोहन ने कोई उत्तर नहीं दिया। उनके मन में तो बस बिट्टू की चिन्ता थी। एक-एक मिनट भारी हो रहा था। वेा चुप ही थे। पिन्टू ने फिर पूछा, “बताइये न पापा, देशबन्धु कौन थे?”

अबकी बार धीरे-से डांटते हुए बृजमोहन ने कहा, “चुप रहो पिन्टू।”

पिन्टू समझा नहीं कि उसने क्या गलती कर दी। मुंह लटका कर वह बैठ गया। पर उसे अप नी बात का उत्तर अशोक जी से मिल गया। अशोक ने जीप में आगे की सीट से पीछे घूमते हुए कहा, “वे बहुत बड़े क्रान्तिकारी विचारों के आदमी थे, बेटे। बल्कि यूं समझो की क्रान्तिकारियों के जन्मदाता।”

केले का छिलका
केले का छिलका

जवाब पाकर चहक पड़ा और उसने अशोक जी ओर देखते हुए एक और प्रश्न पूछ लिया, ‘क्रान्तिकारी कौन होते हैं अंकल?’ पर भला अशोक जी एक आठ से बच्चे को क्या समझाएं कि क्रान्तिकारी कौन होते हैं। बात को टालते हुए बोले, “हम तुम्हें एक किताब लाकर देंगे। बढ़ोगे उसे?”

“हां पढूंगा।” पिन्टू बोला।

इतने में अस्पताल आ गया और सभी उतर गए। अशोक जी ने बृजमोहन को डॉक्टर साहब से मिलवा दिया। इससे पहले कि कोई और बात होती, सुलेखा ने घबराई आवाज में पूछा, “कहां है मेरा बिट्टू डॉक्टर साहब? ठीक तो है न!”

डॉक्टर राधेश्याम ने धीरज बांधाते हुए कहा, “धीरज रखें, ईश्वर ने चाहा तो जल्दी ही ठीक हो जाएगा।” और वे उन्हें बिट्टू के कमरे में ले गए। एमरजेन्सी वार्ड में बिट्टू बेसुध लेटा था। ग्लूकोज चल रहा था। सिर पर पट्टी बंधी थी।

सुलेखा रो पड़ी। पिन्टू भी अब समझ गया था कि मामला क्या है। वह भी बिलख पड़ा, “भैया! क्या हो गया तुम्हें!” डॉक्टर साहब बृजमोहन को लेकर बाहर आ गए।

“दिमाग पर सूजन है क्योंकि सिर पर चोट लगी थी। बाहर तो थोड़ी छिलन ही है। टाँके की आवश्यकता नहीं थी। अतः केवल पट्टी ही कर दी है और सूजन कम करने की दवा शुरू कर दी है। चिन्ता न करें, शाम तक या कल सुबह तक होश आ जाएगा।”

बृजमोहन ने पूछा, “पर ये हुआ कैसे डॉक्टर साहब?” बृजमोहन जानते थे कि अनावश्यक रोने, चिल्लाने या घबराने से तो रोगी ठीक होता नहीं है। दवा दे ही दी गई है और हो ही क्या सकता है। ऐसे में तो ईश्वर का ध्यान ही काम आता है।

डॉक्टर साहब ने बताया, “इसे कुछ राहगीर लाए थे। कह रहे थे कि ये लड़का सिटी बस से उतरा। उतरते ही पैर फिसल गया और ये गिर पड़ा, सिर जमीन से टकरा गया और बेहोश हो गया। वे लोग इसे यहां उठा लाए।”

साभार
उन्नति के पथ पर (कहानी संग्रह)
लेखक
डॉ. अतुल कृष्ण

(अभी जारी है… आगे कल पढ़े)

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