यूपी में सुशासन को ताकत देने के इरादे से एक बार फिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिलों की समीक्षा बैठकें कर रहे हैं। इसी सिलसिले में बीते रविवार गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर और महराजगंज के दौरे पर थे, जहां विकास कार्यों में लापरवाही, बिजली आपूर्ति में गड़बड़ी और स्वास्थ्य सेवाओं में मिली अनियमितताओं से नाराज मुख्यमंत्री ने दोषी अफसरों पर कड़ा रूख अपनाया। खराब प्रदर्शन को लेकर कई अफसरों पर गाज गिरी, कोई हटा तो किसी को निलंबित किया गया। राज्य सरकार पहले से कानून-व्यवस्था को लेकर विपक्ष के निशाने पर है। हालांकि संगठित अपराध पिछले वर्षों की तुलना में क म हुए हैं। पुलिस एनकाउंटर का काफी प्रभाव पड़ा है। बड़े अपराधी सलाखों के पीछे हैं और कुछ ने तो एनकाउंटर के भय से प्रदेश ही छोड़ दिया है।
इस लिहाज से योगी सरकार के हिस्से गैंगवार पर लगाम लगाने का श्रेय जरूर जाता है। पर लूट, डकैती और गैंगरेप के मामले बेलगाम हुए हैं। खास तौर पर महिलाओं से छेड़छाड़ और दुराचार की घटनाएं आये दिन हो रही हैं। इससे सरकार की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। विकृत मानसिकता के शिकार लोगों में खाकी का भय मानो तनिक भी नहीं रह गया है। इससे आधी आबादी के बीच असुरक्षा का बोध बढ़ रहा है। यह ठीक है कि बच्चियों और महिलाओं को बेहतर सुरक्षा के टिप्स दिए जा रहे हैं, विशिष्ट फोन नड्डबरों से उन्हें असामाजिक तत्वों के खिलाफ क वच देने की प्रशासनिक पहल शहरों में पुलिस की तरफ से हो रही है। पर एंटी रोमियो स्क्वायड की सक्रियता कहीं नजर नहीं आ रही है। जबकि इस बाबत मुख्यमंत्री ने अलीगढ़ समेत क ई स्थानों पर हुई दुष्क र्म की घटनाओं का संज्ञान लेकर स्क्वायड को सक्र य करने का निर्देश दिया था।
पर एकाध हफ्ते की सक्रियता के बाद पुलिस पहले की तरह उदासीन हो गई है। विपक्ष इसलिए भी हमलावर है कि कानून-व्यवस्था को लेकर ही पूर्ववर्ती सरकारों को भाजपा घेरती रही है। फिर भी इस बात के लिए योगी सरकार साधुवाद की पात्र है इसने भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन की दिशा में सख्त कार्रवाई करके संदेश देने की शुरूआत कर दी है। पिछले दिनों तकरीबन दौ सौ कामचोर और भ्रष्टाचार में लिप्त पचास पार क र्मचारियों को सरकार ने बाहर का रास्ता दिखाने का साहस दिखाया है। अभी रविवार को ही बरेली में ऐसे ही कुछ भ्रष्ट पुलिस कर्मियों को जबरन रिटायर कर दिया गया है। पारदर्शी व्यवस्था के लिए इस तरह की कार्रवाई ठीक है पर ऐसा भी ना हो कि इसकी आड़ में किसी निर्दोष कर्मचारी की बलि दे दी जाए। ऐसे फैसलों के क्रियान्वयन में निष्पक्ष निगरानी की विशेष जरूरत है।
ऐसे भी मामले सामने आते रहे जहां बॉस से सेटिंग ना होने पर कुछ अधीनस्थों का करेक्टर रोल खराब दर्शाया गया था। इसलिए क्लीन स्वीप में सदैव सजगता की दरकार रहेगी। योजनाओं के क्रि यान्वयन में कि सी भी स्तर पर यदि गड़बड़ी होती है तो फिर सारी मेहनत बेकार चली जाती है। योगी सरकार को ढाई साल हो चुके हैं। यूपी में सबसे बड़ी चुनौती विकास की है। इन्वेस्टर्स समिट के बाद कि तना कुछ साकार हो पा रहा है। यह बड़ी चुनौती है। क्योंकि बेरोजगारी का खात्मा विकास से ही संभव है। पिछली बार जो करार हुए थे, उन्हें जो प्रशासनिक सहयोग चाहिए था, क्या वो मिला? यह सवाल इसलिए कि योजनाओं के रूपांतरण में प्रशासनिक सहयोग की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जिलों में समीक्षा बैठकें तभी असरदार हो सक ती हैं, जब उनका फालोअप भी हो। सिर्फ कभी-कभार की सगती से परिदृश्य मनमाफ क नहीं बनता। इस तरह के तेवर और संकल्प की आगे भी जरूरत बनी रहनी चाहिए।