क्रान्तिकारी होगा इस बार बजट

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सरकार बजट की तैयारियों में लगी है। नरेंद्र मोदी की दूसरी सरकार अपना पहला बजट पांच जुलाई यानी आज पेश करेगी। वैसे बजट में कु छ नया या क्रांतिकारी होने की कोई संभावना नहीं है। जो कुछ भी क्रांतिकारी हो सकता है उसकी घोषणा अंतरिम बजट में की जा चुकी है। लोक सभा चुनाव से ठीक पहले पेश हुए अंतरिम बजट में आय कर छूट की सीमा बढ़ाने से लेकर किसानों को सम्मान निधि देने तक के लोक लुभावन फै सले घोषित हो चुके हैं। इसलिए अब जो बजट आएगा वह सिर्फ लेखा जोखा होगा। नीतिगत फैसले कम होंगे। फिर भी बजट से ठीक पहले जो आर्थिक चुनौतियां सरकार के सामने दिख रही हैं उनसे ऐसा लग रहा है कि सरकार को इनसे निपटने के उपाय करने होंगे। बजट से ऐन पहले दुनिया की सारी बड़ी एजेंसियां विकास दर के अनुमान घटा रही हैं। बजट से ठीक पहले वाले महीने यानी जून में जीएसटी का क लेक्शन घटकर एक लाख करोड़ रुपए से नीचे आ गया है। सरकार का राजस्व घाटा सालाना लक्ष्य के 50 फीसदी को पहले ही पार कर चुका है।

जून में लगातार तीसरे महीने वाहनों की बिक्री में गिरावट आई है। ऊपर से मॉनसून को लेकर पूरे देश में चिंता है। सो, सरकार को इन चुनौतियों के बारे में गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। सरकार को अपना खजाना खोलना होगा, तभी बाजार में तेजी लौटेगी। सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती रोजगार की है। श्रम मंत्रालय ने एनएसएसओ के रोजगार डाटा को खारिज किया है पर अगर उस आंक ड़े पर न जाएं तब भी रोजगार में चौतरफा गिरावट दिख रही है। तभी कि सान, नौजवान, कारोबारी, नौकरी पेशा सबके लिए कुछ न कुछ करते हुए सरकार को आर्थिकी की गंभीरता से चिंता करनी होगी। सबसे पहले बाजार में मंदी के संकेत देने वाले पैमाने पर नजर डालते हैं। जून में लगातार तीसरे महीने वाहनों की बिक्री में गिरावट आई है। जबकि इससे पहले लगातार दो बार भारतीय रिजर्व बैंक ने नीतिगत ब्याज दरों में कटौती की है। केंद्रीय बैंक ने सारे कारोबारी बैंकों को आवास और वाहन क र्ज पर ब्याज दरों में कटौती का भी निर्देश दिया।

ऊपर से लोक सभा चुनाव और नई सरकार को लेक रचल रही अनिश्चितता भी मई में खत्म हो गई। केंद्र में दोबारा मजबूत और स्थिर सरकार देश के लोगों ने चुन दिया। इसके बावजूद जून में वाहनों की बिक्री में आई। यह लगातार तीसरा महीने था जब वाहनों की बिक्री में दो अंकों में गिरावट आई। अप्रैल में 17 फीसदी, मई में 20 फीसदी और जून में 19 फीसदी की गिरावट आई। यह गिरावट यात्री और व्यावसायिक दोनों किस्म के वाहनों की बिक्री में आई है और लगातार तीन महीने तक आई है। इसलिए इसे मामूली गड़बड़ी मान कर नहीं छोड़ा जा सकता है। अर्थव्यवस्था की सेहत बताने वाले दूसरे पैमाने में भी बहुत सकारात्मक नहीं हैं। कोर सेक्टर सहित ज्यादातर क्षेत्रों में विकास की दर में गिरावट आ रही है। इसलिए सरकार को बजट में कुछ ठोस उपाय करने होंगे। दूसरा बड़ा संकेत यह है कि जुलाई में एक साल हो जाने के बावजूद वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी के क लेकिशन में स्थिरता नहीं आ रही है। जून में जीएसटी कलेक्शन का आंकड़ा एक लाख करोड़ से कम हो गया।

यह आंकड़ा अप्रैल में एक लाख 13 हजार करोड़ रुपए का था तब माना गया कि अब स्थिरता आ गई है। पर मई में यह घट कर एक लाख करोड़ पर आया और जून में उससे भी नीचे आ गया। जीएसटी कौंसिल लगातार इसमें बदलाव कर रही है पर सरकार को इस बारे में भी गंभीरता से सोचना होगा। सरकार के लिए एक चिंता की बात राजस्व घाटा भी हो सकता है। चालू वित्त वर्ष के पहले दो महीने में राजस्व घाटा 3.66 लाख करोड़ रुपए पहुंच गया है। सरकार ने पूरे साल के लिए राजस्व घाटे का जो लक्ष्य तय किया है यह रकम उसके 52 फीसदी के बराबर है। यानी साल भर के लक्ष्य का आधे से ज्यादा पहले दो महीने में हो गया है। इसे काबू में करने के लिए भी सरकार को उपाय करने होंगे। केंद्र सरार के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रह्मण्यम ने पिछले दिनों सकल घरेलू उत्पाद, जीडीपी के आंकड़ों पर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा था कि इसमें हेराफेरी की गई है। फिर रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने इस्तीफा दे दिया।

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य रथिनरे ने कहा कि देश आर्थिक मंदी की ओर बढ़ रहा है। इसी तरह रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्ति कांत दास ने भी कहा कि आर्थिक अपनी रफ्तार खो चुकी है। इन चार बातों से देश की आर्थिकी के मूड का पता चलता है। इनसे पता चलता है कि सरकार के सामने कितनी बड़ी चुनौती है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को अपना पहला बजट बनाते हुए इन तमाम चुनौतियों का ध्यान रखना होगा। विकास दर बढ़ाना है, महंगाई काबू में रखनी है, रोजगार के अवसर पैदा करने हैं और नीतिगत फैसले से आर्थिकी को मजबूती देनी है। चूंकि यह सरकार का पहला बजट है इसलिए वह सगत फैसले कर सकती है और जोखिम ले सकती है।

सुशांत कुमार
(लेखक पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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