गिरता भूजल ग्राफ

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वेस्ट यूपी में साल 91 सेंटीमीटर नीचे जा रहा भूजल स्तर यह बताने को काफी है कि अब भी इसे थामने के प्रयास ना हुए तो खेती के लिए छोड़िए, पीने के लिए भी बूंद-बूंद पानी को तरसना पड़ सकता है। कमोवेश यही तस्वीर यूपी के दूसरे हिस्सों की भी है। बुंदेलखंड तो जल त्रासदी को लम्बे समय से भुगतता आ रहा है। जल जीवन के लिए उतना ही जरूरी है, जितना हवा। इसलिए जल को लेकर व्यापक स्तर पर नीति और उसके क्रियान्वयन की जरूरत है। य आश्वास्त करने वाली बात है कि योगी सरकार अब वैश्विक तरीकों पर काम कर रही है। कृषि क्षेत्र में उन फसलों के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने की योजना है, जिसमें पानी की मांग कम होती है। मसलन मक्का, दलहन और तिलहल पर ज्यादा जोर देने की जरूरत है। हालांकि धान के लिए भी शोध केन्द्रों में ऐसी प्रजातियां विकसित की जा रही हैं जिसमें कम पानी के इस्तेमाल की जरूरत होगी।

जल संकट पर हरियाणा सरकार सतर्क हो गयी है। उसके नौ जिले डार्क जोन में हैं। इससे सबक लेते हुए वेस्ट यूपी में योगी सरकार भी सिंचाई के लिए छिड़काव लिधि को बढ़ावा दे रही है, यह चल संकट को निश्चित तौर पर कम करेगा। फिलहाल तो ड्रिप इरिगेशन 3 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई हो चुकी है। सरकारी स्तर पर हो रही कोशिशों से सुरत नहीं बदलने लावी, इसके लिए जनहभागिता की बड़ी भूमिका है। जरूरत है गांव स्तर पर मुर्दा हो चुके कुओं और तलाबों की सुधि लेने की उन्हें वर्षा चल संचय के जरिये पुनजीवित करने की। दरअसल जल संकट हमारी अनियोजित दोहन प्रवृत्ति की देन है। खेतों में रासायिनक खादों का प्रचुर मात्रा में इस्तेमाल और जगह-जगह पम्पिंग सेटों का इस्तेमाल, इससे उत्पादन तो बढ़ा लेकिन धरती की उर्वरता घटने के साथ ही जल स्तर भी गिरा। वृक्षों की घटती संख्या और बेहिसाब शहरीकरण से जल स्तर लगातार गिरता जा रहै है।

अब तो मानसून पूर्व बारीश भी पर्याप्त नहीं हो रही है। प्री मानसून बारिश में 30-35 फीसदी कमी देखी गयी है। रही बात मानसून की तो कहीं बाढ़ की स्थिति तो कहीं सूखे के हालात ऐसे प्राकृतिक परिदृश्य में मिल-जुलकर ही हालात में बदलाव किया जा सकता है, जैसे इन्दौर के कुछ किसानों ने कर दिखाया हैष महीने भर पहले जिस गांव में सूखे जैसे हालत थे, वहां ग्रामीणों से अपना पसीना बहाकर भूजल स्तर बढ़ा दिया। रात-दिन जुटे किसानों ने न केवल 20 दिन में छोटा बांध बना दिया, बल्कि नदी भी गहगी कर दी। अब दीन के एक किलोमीटर हिस्से में चार से पांच फीट पानी भरा हुआ है। इससे आसपास के भूजल स्तर में भी इजाफा हो रहा है। स्थिति यह है कि जहां पूरा गांव सिर्फ एक नलकूप के सहारे था, वहां अब डेढ़ सौ से ज्यादा बोरिंग रिचार्ज हो रहे हैं। यह कहानी है इंदौर से 20 किलोमीटर दूर स्थित कनाड़िया गांव की। तो जनसभागिता बड़ा रोल अदा कर सकती है।

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