राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा का जवाब दते हुए बेशक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी सरकार के दूसरे कार्यकाल का रोडमैप रखा, लेकिन साथ ही विपक्ष को आईना भी दिखाया और जिस तरह सोनिया-राहुल गांधी परिवार पर निशाना साधा, उससे नहीं लगता कि 17वीं लोक सभा का सदन सुचारू रूप से चल पाएगा। यह ठीक है कि भाजपा की दूसरी बार प्रचंड जीत से पूरा विपक्षी खेमा हैरान- परेशाना है। टीएमसी को ईवीएम के बेजा इस्तेमाल की आशंका सता रही है। कहा यह भी जा रहा है कि साम्प्रदायिक कार्ड का इस्तेमाल करके भाजपा ने दोबारा बड़ी जीत हासिल की है। राष्ट्रवाद के नाम पर सेना के शौर्य का बेजा इस्तेमाल हुआ है आदि-आदि। जबकि जमीन पर कृषि संकट गहरा हुआ है, रोजगार के अवसर घटे हैं और महंगाई बढ़ी है।
यही नहीं बैंक खोखले हुए हैं और पहले से चल रहे उद्योग भी सुस्त हुए हैं। संवैधानिक संस्थाओं को लेकर सवाल उठते रहे हैं फिर भी ये शानदार जीत विपक्ष को लोकतांत्रिक तरीके से हुए फैसले में भी किसी साजिश की बू आ रही है। इसी वजह से जुबान फिसल रही है। विपक्ष के नकारात्मक रवैये के बरह्वस नरेन्द्र मोदी ने भी गिन-गिनकर देश की सबसे बड़ी पार्टी के तौर-तरीके को लेकर खूब शब्दों के तीर चलाये। यह ठीक है कि उनके कहने का ढंग प्रभावशाली होता है लेकिन यह भी सच है कि जब भी किसी तरफ से निजी हमले होते हैं, वे सकारात्मक प्रभाव नहीं छोड़ पाते। संयोग से 25 जून को आपातकाल की 44वीं बरसी भी थी। कहना भी चाहते थे और अवसर भी था। क्योंकि इधर विपक्ष काफी समय से कहता चला आ रहा है कि देश में अघोषित आपातकाल लगा हुआ है। संवैधानिक संस्थाओं के भीतर की विदरूपताओं के सामने आने का ठीकरा मोदी सरकार पर फोड़ा जा रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह इमरजेंसी नहीं है कि सरकार किसी को भी जेल में डाल दे।
जहां तक कोई मसला न्यायपालिका का है तो उसका फैसला उसे ही करना है, कानून अपना काम करेगा, इसमें सरकार की भला कैसे भूमिका हो सकती है। कांग्रेस पार्टी की ऊंचाई पर भी तंज कसा गया। तो इस तरह सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सियासी बदला चुकाने की प्रवृत्ति ही सदन का प्रमुख स्वर बनती नजर आ रही है। ऐसी स्थिति में मौजूदा सवाल और देश के सामने नंबर भी आएगा, यह लाख टके का सवाल है। दुनिया में अमेरिका-चीन के बीच ट्रेडवार के चलते मंदी का खतरा मंडराने लगा है। इसके अलावा ईरान से अमेरिका की तनातनी यदि विध्वसंक हुई तो भारतीय हित भी प्रभावित होगा। रूस चीन की महत्वाकांक्षा मध्य एशिया की शान्ति और प्रगति के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है। इसके साथ ही पाकिस्तान से बिगड़े हुए रिश्ते भारत की आंतरिक चुनौतियों को और बढ़ा रहे हैं। तब जरूरत है हमारी राजनीतिक बिरादरी देश की चुनौतियों से निपटने के लिए एक सुर में बोलती-सोचती दिखाई दे। सभी को ‘इलेक्शन मोड’ से उबरने की जरूरत है।