कांग्रेस की अधीरता

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लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद भी कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निजी हमले जारी है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा के दौरान सोमवार को कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने विवादित टिप्पणी कर दी, जिस पर सदन में हंगामा मच गया। हालांकि बाद में उन्होंने माफी मान ली और दोष उस भाषा पर मढ़ दिया यह कहकर कि उन्होंने जो हिंदी में कहा उसका मतलब असंसदीय हो सकता है। ठीक इसी तरह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने भी कुछ साल पहले मोदी को ‘नीच’ कहा था और बवाल बढऩे पर उसके अन्यार्थ से अनभिज्ञता जाहिर की थी। विवादित बोलों का सिलसिला पिछले कुछ बरसों से बढ़ा है, जो चिंतित करता है। चुनावी जनसभाओं में एक -दूसरे पर निजी हमलों की बढ़ती प्रवृत्ति का परिणाम अब यह है कि बात संसद तक पहुंच गई है, यह दुखद है। सबसे बड़ी पंचायत का सदन गंभीर चर्चाओं के बीच हास्य रस से रचा-बसा हो, यह तो समझ में आता है।

इससे विमर्श में एक रसता नहीं आती। लेकिन एक -दूसरे को दिल दुखाने जैसी बातों के जरिये आखिर हमारे माननीय क्या संदेश देना चाहते हैं? सदन में किसी भी सदस्य की गरिमा का ध्यान रखा जाना चाहिए। एक -दूसरे का सम्मान दलगत राजनीति से ऊपर का विषय होता है। फिर इस तरह का व्यवहार जब कोई वरिष्ठ सदस्य करे तो उसका पहली बार सदन में चुनकर आए सदस्यों पर क्या असर पड़ता है, यह भी सोचा जाना चाहिए। नवागत सांसदों को संसदीय परम्परा और गरिमा से परिचित कराने के लिए वरिष्ठ सांसदों को अपने आचरण के जरिए सिखाने का संकल्प लेना होगा। सदन देश की चुनौतियों के बारे में गंभीर चर्चा का स्थाना होता है, जिस पर हर दिन करोड़ों पये जनता की गाढ़ी कमाई से खर्च होते है। चिंता इस बाता की है कि जिस तरह दलीय हित से प्रेरित माननीय सदन में आचरण प्रकट कर रहे हैं जबकि बार-बार लोक सभा अध्यक्ष की तरफ से चेताया भी जाता है, भविष्य में सदन के अन्तर्व्यवहार की खुशनुमा तस्वीर पेश नहीं करता।

हालांकि अभी शुरू आत है, उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार देश की संसद ज्यादा से ज्यादा चले ताकि ढेर सारे मसलों पर विचार-विमर्श के साथ जनहित में कानून बन सके। शिक्षा स्वास्थ्य के मूलभूत सवाल, इसे लेकर संबंधित स्टॉक होल्डर्स की जवाबदेही का क्या हाल है, यह बताने की जरूरत नहीं है, सबको पता है। इन्हीं दो सेक्टरों से किसी देश के निर्माण के लिए लोग तैयार होते हैं इस दृष्टि से उम्मीद की जानी चाहिए कि नई शिक्षा नवीति जो अभी ड्राफ्ट की स्थिति में है, उस पर व्यापक चर्चा हो ताकि सदन के पटल पर उसे व्यवस्थित आकार दिया जा सके । स्वास्थ्य के क्षेत्र में जो बदहाली है, किसी से छिपी नहीं है। इसे बदलने के लिए बजट का आकार बढ़े और सरकारी अस्पतालों की जवाबदेही भी तय हो। ऐसी बातों के लिए ही तो होती है संसद और इसीलिए जनता अपना वोट करती है।

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