किताबे कुछ कहना चाहती हैं

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किताबें
किताबें

किताबे करती है बातें
बीते जमानों की
दुनिया की, इंसानो की

आज की, कल की
एक-एक पल की
खुशियों की, गमों की
फूलों की, खुशबूं की
जीत की, हार की
प्यार की, मार की!

किताबे कुछ कहना चाहती हैं
किताबे कुछ बोलना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं
क्या तुम नहीं सुनोंगे
इन किताबों की बातें?

किताबों में चिड़ियां चहचाहाती हैं
किताबों में खेतियां लहराती हैं
किताबों में झरने गुनगुनाते हैं
परियों के किस्से सुनाते हैं।

किताबें कुछ कहना चाहती हैं
किताबे कुछ बोलना चाहती हैं
नन्हें-नन्हें मुन्नों को रोलियां सुनाती हैं
मां को कुछ बोलियां सिखाती हैं।

बच्चों को अठखेलियां सिखाती हैं
पुरुषों को जीना सिखाती हैं
राही को राह दिखाती हैं
अंधियारें से प्रकाशमान बनाती हैं

किताबों में रॉकिट का राज है
किताबों में साइंस का आवाज है
किताबों का कितना बड़ा संसार है
किताबों का ज्ञान भी भरमार है।

क्या तुम इस संसार में
नहीं जाना चाहोंगे?
किताबें कुछ कहना चाहती हैं
किताबें कुछ बोलना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं

आपको सुंदर, सुशील बनाना चाहती हैं
मधुरमय और प्यार भरा बनना चाहती हैं
किताबें कुछ कहना चाहती हैं
किताबें तुम्हारे आकाश में उड़ाना चाहती हैं।

किताबें कुछ कहना चाहती हैं
किताबें कुछ बोलना चाहती हैं
हमें जीवन के हर पड़ाव पे साथ सिखाती है
क्या अच्छा है, क्या हुरा है
सब बताती है किताबें
किताबें कुछ कहना चाहती हैं।

सुदेश वर्मा, पीआरओ, सीईओ, एसएमएल

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