शुक्र प्रदोष व्रत

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देवाधिदेव भगवान शिवजी
देवाधिदेव भगवान शिवजी

शिव आधारना से होगी सुख-सौभाग्य में अभिवृद्धि
शुक्र प्रदोष व्रत से होती है मनोकामना की पूर्ति

हर आस्थावान धर्मालम्बी मनोकामना की पूर्ति लिए भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना अपनी-अपनी परम्परा के अनुसार करते हैं। भगवान शिवजी तैंतीस कोटि देवी-देवताओं में एकमात्र ऐसे देवता हैं जिन्हें देवाधिदेव महादेव माना गया है। इसकी पूजा अर्चना से सुख-समृद्धि खुशहाली के साथ ही जीवन में अलौकिक शान्ति भी बनी रहती है। व्रत उपावस रखकर विधि-विधानपूर्वक भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना करने की विशेष महिमा है। वैसे तो भगवान शिवजी की पूजा कभी भी की जा सकती है, लेकिन प्रदोष व्यापनी त्रयोदशी तिथि के दिन पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। प्रत्येक मास के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने की धार्मिक मान्यता है। कलियुग में प्रदोष व्रत को शीघ्र फलदायी माना गया है। इस बार 14 जून, शुक्रवार को प्रदोष व्रत रखा जाएगा। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि ज्येष्ठ शुक्लपक्ष की त्रयोदशी तिथि 14 जून, शुक्रवार को दिन में 3 प्रदोष बेला में त्रयोदशी तिथि का मान होने से प्रदोष व्रत इसी दिन रखा जाएगा। प्रदोषकाल का समय सूर्यास्त से 48 मिनट या 72 मिनट का माना जाता है। सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए सायंकाल पुनः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके प्रदोषकाल में भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना उत्तराभिमुख होकर करने का विधान है।

शास्त्रों में प्रत्यके दिन के प्रदोष व्रत का अगल-अगल प्रभाव बताया गया है। – प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि प्रत्येक दिन के प्रदोष व्रत का अलग-अलग प्रभाव है। जैसे – रवि प्रदोष- आयु, आरोग्य, सुख-समृद्धि, सोम प्रदोष – शान्ति एवं रक्षा, भौम प्रदोष –कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष- मनोकामना की पूर्ति, गुरु प्रदोष –विजय व लक्ष्य की प्राप्ति, शुक्र प्रदोष –आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना पूर्ति, शनि प्रदोष –पुत्र सुख की प्राप्ति। मनोरथ की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथवा अभीष्ट की पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने की धार्मिक मान्यता है।

प्रदोष व्रक का विधान – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कार्यों से निवृत्ति होकर स्नान-ध्यान, पूजा-अर्चना के पश्चात् अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। दिनभर निराहार रहकर सायंकाल पुनः स्नान करके प्रदोष काल में भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार श्रद्धा-भक्तिभाव के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। देवाधिदेव शिवजी का अभिषेक करके उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतिपुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। ऐसी मान्यता है कि व्रतकर्ता अपने मस्तिष्क पर भस्म और तिलक लगाकर देवाधिदेव शिवजी की पूजा करें तो पूजा शीघ्र फलित होती है। देवाधिदेव महादेव जी की महिमा में प्रदोष स्तोत्र का पाठ एवं स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोष व्रत कथा का पठन या श्रवण अवश्य करना चाहिए। प्रदोष व्रत से सम्बन्धित कथाएं भी सुननी चाहिए। यह व्रत महिला एवं पुरुष दोनों व्रत कथा का पठन या श्रवण अवश्य करना चाहिए। प्रदोष व्रत से सम्बन्धित कथाएं भी सुननी चाहिए। यह व्रत महिला एवं पुरुष दोनों के लिए समानरुप से फलदायी है। प्रदोष व्रत के दिन व्रतकर्ता को परनिन्दा से बचते हुए शुचिता का विशेष ध्यान रखना चाहिए तथा दिन शय़न नहीं करना चाहिए। अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मण को दान तथा जरूरतमंद एवं असहायों की सेवा व सहायता सदैव करते रहना चाहिए। प्रदोष व्रत से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के साथ-साथ जीवन में सुख, समृद्धि व खुशहाली मिलती है।

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