आम चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल ही एक ऐसा राज्य रहा, जहां पैरामिलेट्री फोर्स की तैनाती के बावजूद हिंसा थमी नहीं। हर चरण में इसी खित्ते से राजनीतिक हत्याओं की खबरें आती रहीं। पर चुनाव बाद भी भाजपा और टीएमसी कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़पें जारी हैं। राज्य में हो रही राजनीतिक हिंसा में दोषियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने के लिए गृह मंत्रालय की तरफ से राज्य सरकार को जारी एडवाइजरी में प्रभावी कदम उठाए जाने की अपेक्षा की गई है। एडवाइजरी पर पश्चिम बंगाल की मुगयमंत्री काफी भडक़ी हुई हैं। उनका आरोप है कि भाजपा के इशारे पर गृह मंत्रालय की तरफ से एडवाइजरी जारी हुई है। जबकि भाजपा का आरोप है कि उसके तीन कार्यकर्ताओं की टीएमसी कार्यकर्ताओं ने हत्या की है। टीएमसी की वजह से पुलिस मूक दर्शक बनी हुई है।
भाजपा, राष्ट्रपति शासन लगाये जाने की मांग कर रही है। राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी की प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से मुलाकात पर ममता भडक़ी हुई हैं। उन्होंने सगत लहजे में टीएमसी की सरकार गिराने की चल रही साजिश पर मोदी सरकार को परोक्ष रूप से चेतावनी भी दी है। इस तरह सत्ता संघर्ष और तेज होने की संभावना और प्रबल हो गई है। हाल के संसदीय नतीजों में 22 पर सिमटी टीएमसी नेता को अपना गढ़ बचाने की चिंता सता रही है ये वाजिब है और इसी तरह दो से 18 सीटें पाने के बाद भाजपा के भीतर राज्य में अपनी सत्ता के सपने देखना भी स्वाभाविक है। लेकिन सत्ता बचाने और पाने के खेल में जिस तरह दोनों तरफ के कार्यकर्ताओं का खून सडक़ों पर बह रहा है, वो ठीक नहीं है। हिंसा के रास्ते राजनीतिक वर्चस्व की स्थापना लोक तंत्र के दामन पर किसी दाग से कम नहीं है। ऐसे में दोनों राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को रोकने के लिए आगे आना चाहिए।
ऐसी घटनाओं से सामाजिक समरसता भंग होती है। राज्य की छवि धूमिल होती है सो अलग। पश्चिम बंगाल नवाचार का राज्य रहा है। राजनीतिक -सामाजिक स्तर पर ऐसे कई मूर्धन्य मनीषी हुए, जिन्होंने आजादी की अलख जगाई और मनुष्यता का पाठ पढ़ाया। रूढिय़ों के खिलाफ खड़ा होने वाला पश्चिम बंगाल हिंसा की घटनाओं से चर्चा में है यह शर्मसार करने वाली स्थिति है। भले ही कई दशकों से राज्य में राजनीतिक हिंसा को सत्ता की सीढ़ी बनाया जाता रहा हो, पर अब ये सुनियोजित कोशिश रोकी जानी चाहिए। कानून-व्यवस्था का मसला राज्य सरकार के अधीन होता है इसलिए हिंसा को रोकने के लिए जो भी सगत कदम हो सकते हैं, उठाए जाने चाहिए वो भी बिना किसी भेदभाव के, जिससे लोगों के बीच बिना सकारात्मक संदेश पहुंचे। चुनाव बाद भी सियासत के लिए हर मसले पर एक -दूसरे को घेरने की कसरत को अब विराम देने की जरूरत है।