अति का अंत होता है!

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एक बार की बात है कि बहुत समय पहले सूखा पड़ गया। सूखा भी ऐसा कि पृथ्वी पर रहने वाले जीव-जंतु तड़प-तड़पकर मरने लगे। किसी जंगल में एक तालाब था। उस तालाब में बहुत सारी मछलियां रहती थी। जब सूखा पड़ गया तो तालाब का पानी सूखने लगा और मछलियां भी मरने लगीं। उन पर बहुत बुरा संकट था। ऐसे समय में उन्हें मौत के सिवा कोई दूसरा सूझ नहीं रहा था। वह मछलियां आपस में मरने गिरने की बात किया करती थी। एक दिन वह यही बात आपस में कर रही थी और तालाब के पास में एक पेड़ पर बैठी सारस उनकी बातें सुन रहा था। सारस ने ऐसे में उनका फायदा उठाना चाहा। सारस बोली ऐसे विपदा में आपको कौन बचा सकता है। बेचारी मछलियां सारस से प्रार्थना करने लगी कि आप हमें बचा सकते हैं। सारस तो अपने मन सोच रहा था कि अब तो उसकी मौज आ गई।

क्योंकि उसे खाने के लिये तरोताजा मछलियां जो मिलेंगी। सारस बोला कि मैं आपको दूर एक पहाड़ी है जिसके पास एक बहुत बड़ा तालाब है आपको एक-एक कर अपने चोंच में भरकर उड़कर वहां सुरक्षित ले जाऊंगा और आप सब इस सूखे में तड़प-तड़पकर मर जायेंगी। सारस ने ठीक ऐसा ही किया। उसने एक दिन में कई मछलियों को अपनी चोंच में पकड़ा और दूर जाकर उसे खा गया। यह चक्र कई दिनों तक चलता रहा। अंत में सारस ने सारी मछलियों को एक-एक मार डाला और अपना भोजन बनाया। परंतु इस तालाब में एक केकड़ा भी रहता था जो मछलियों से बड़ा था। परंतु सारस को तो खून मुंह लग गया था। अब उसे यह भी मालूम नहीं रहा कि उसका क्या हस्र होने वाला है।

जब बारी आयी केकड़े की तो सारस ने वही बात कही जो अन्य मछलियों से कही थी कि मैं अपनी चोंच में भरकर तुम्हें उस ओर जहां एक पहाड़ी है वहां एक तालाब है जिसमें ढेर सारा पानी है आप वहां अच्छे से रह सकती हैं। सारस बोला कि चल भाई केंकड़े में अब आपको भी आपके बहन-भहनों के पास सुरक्षित ले चलती हूं। परंतु वह केकड़ा उसकी चोंच में आया नहीं सारस ने बहुत कोशिश की।अंत में सारस बोला कि भाई केकड़े आप ही कोई उपाय बताओ मैं आपको कैसे उड़ाकर अपनी चोंच में भरूं जिससे आप भी इस सूखे से बच जाये। केकड़ा बोला प्यारे भाई, एक काम करते हैं कि आपकी चोंच में तो मैं आ नहीं सकता लेकिन आप अपनी चोंच मेरे मुंह में दे देना और मैं आपको रास्ता बता चलूंगा और आप दूर जो पहाड़ी है उस तालाब में जहां मेरे भाई-बहन हैं मुझे भी वहां सुरक्षित ले चलोगे भाईया मुझे जीवित बचाने की आपकी बहुत मेहरबानी होगी।

अब सारस उसकी बातों में आ गया। क्योंकि अति का अंत होता है। जैसे ही सारस ने अपनी चोंच केकड़े के मुंह में डाली तो केंकड़ा तो तैयार बैठा था कि कब यह अपनी चोंच मेरे मुंह में दे और मैं कब इसे अपना निवाला बनाऊं क्योंकि मेरे सभी परिवार वालों, रिश्तेदार, पड़ोसियों को निगल चुका है। उसने वैसा ही किया झठ से उसे खा गया। अब सारस का अंत हो चुका था। कहानी बहुत अजीब है जैसो बोओगे वैसा काटोगे। प्रकृति का यही नियम है। आज जब कलयुग अपनी पूरी चर्म सीमा पर है। तो प्रकृति भी समय-समय पर अपने रंग दिखाती रहती है वह समझाती है कि हे मनुष्य समझ जाओ वरना मैं अभी जीवित हूं।

– सुदेश वर्मा

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