नरेंद्र मोदी सरकार का दूसरा शपथ समारोह पहले से भी अधिक भव्य होना चाहिए। 2014 में चुनाव अभियान के दौरान मैंने दक्षेस (सार्क) देशों को जोड़ने पर विशेष जोर दिया था। तालकटोरा स्टेडियम में बाबा रामदेव द्वारा आयोजित उस सभा में खुद नरेंद्र मोदी भी उपस्थित थे। मैं तो दक्षेस से भी बड़े आर्यावर्त्त को जोड़ने पर बरसों से काम कर रहा हूं। पिछले पचास साल से इन देशों में जाता रहा हूं और इनकी आम जनता और नेताओं से मिलता रहा हूं।
मुझे खुशी है कि इस बार शपथ समारोह में ‘बिम्सटेक’ के नेताओं को बुलाया गया है याने बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, थाईलेंड, नेपाल और भूटान के नेता आएंगे लेकिन आश्चर्य है कि दक्षेस के राष्ट्रों को नहीं बुलाया गया है याने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और मालदीव छूट जाएंगे। मोरिशस और किरगिजिस्तान को बुलाने का कारण क्या है ? वे न तो बिम्सटेक और न ही दक्षेस (सार्क) के सदस्य हैं।
मैं तो चाहता हूं कि किरगिजिस्तान के साथ-साथ तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान, कजाकिस्तान और उज़बेकिस्तान को भी निमंत्रण जाना चाहिए। ये सभी राष्ट्र मिलकर ‘आर्यावर्त्त’ कहलाएंगे। ये मुस्लिम राष्ट्र हैं लेकिन सब आर्य राष्ट्र हैं। इनका इस्लाम सतही और अपेक्षाकृत नया है। मैं इन सब देशों में रहा हूं। इनकी भाषा भी बोल लेता हूं। इन देशों की खदानों में इतना माल-मत्ता भरा है कि मोदी के अगले कार्यकाल में भारत महासंपन्न बन सकता है।
‘आर्यावर्त्त’ की यह धारणा गोलवलकरजी के ‘अखंड भारत’ और लोहियाजी के ‘भारत-पाक महासंघ’ से काफी बड़ी और गहरी है। यह उनके स्वप्न को महास्वप्न बनाती है। वह उसको ही आगे बढ़ाती है। क्या मोदी इस महान मौके को हाथ से सिर्फ इसलिए निकल जाने देंगे कि हमें इमरान के पाकिस्तान को सबक सिखाना है ? दक्षेस के तीन पड़ौसी और मुस्लिम सदस्यों- पाकिस्तान, अफगानिस्तान और मालदीव की उपेक्षा करके मोदी क्या अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि को छोटा नहीं कर देंगे ?
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेकख वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं…