शुक्र प्रदोष व्रत : 25 अप्रैल को

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भगवान शिवजी की आराधना से बनेंगे सारे काम, मनोरथ होंगे पूरे

शुक्र प्रदोष व्रत से आरोग्य व सौभाग्य की प्राप्ति

भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में देवाधिदेव भगवान् शिवाजी की महिमा अपरम्पार है। प्रदोष व्रत के उपास्य देवता भगवान शिवजी हैं। भगवान शिवजी की विशेष कृपा प्राप्ति के लिए शिवपुराण में विविध व्रतों का उल्लेख है, जिसमें प्रदोष व्रत अत्यन्त प्रभावशाली तथा शीघ्र फलदायी माना गया हैं। प्रदोष व्रत से जीवन में सुख-समृद्धि खुशहाली मिलती है, साथ ही जीवन के समस्त दोषों का शमन भी होता है। प्रत्येक माह के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि जो प्रदोष बेला में मिलती हो, उसी दिन प्रदोष व्रत रखा जाता है।

प्रदोषकाल का समय सूर्यास्त से 48 मिनट या 72 मिनट तक माना गया है, इसी अवधि में भगवान् शिवजी की पूजा प्रारम्भ करने की परम्परा है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि इस बार 25 अप्रैल, शुक्रवार को प्रदोष व्रत रखा जाएगा। वैशाख कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि 25 अप्रैल शुक्रवार को दिन में 11 बजकर 46 मिनट पर लगेगी जो कि 26 अप्रैल, शनिवार को प्रात: 08 बजकर 29 मिनट तक रहेगी। पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र 24 अप्रैल, गुरुवार को दिन में 10 बजकर 50 मिनट से 25 अप्रैल, शुक्रवार को प्रात: 08 बजकर 54 मिनट तक रहेगा, तत्पश्चात् उत्तराभाद्रपद नक्षत्र सम्पूर्ण दिन रहेगा। प्रदोष बेला में त्रयोदशी तिथि का मान 25 अप्रैल, शुक्रवार को होने के फलस्वरूप प्रदोष व्रत इसी दिन रखा जाएगा।

प्रदोष व्रत का विधान- ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रतकर्ता को प्राप्त: काल ब्रह्यमुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त हो स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। तत्पश्चात् अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्जना करके अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध न कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए सायंकाल पुन: स्नान कर स्वतच्छ वस्त्र धारण करके पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर प्रदोषकाल में भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक यथोपचार, पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करके पुण्यलाभ उठाना चाहिए।

भगवान शिवजी को क्या करें अपर्पित – भगवान शिवजी का अभिषेक करके उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतुरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि जो भी सुलभ हो, अपर्पित करके श्रृंगार करना चाहिए। धूप-दीप प्रज्वलित करके आरती करनी चाहिए। परम्परा के अनुसार कहीं – कहीं पर जगतजननी माता पार्वतीजी की भी पूजा-अर्चना करने का विधान है। शिवभक्त अपने मस्तक पर भस्म व तिलक लगाकर शिवजी की पूजा करें तो पूजा शीघ्र फलित होती है। भगवान् शिवाजी की महिमा में उनकी प्रसन्नता के लिअ प्रदोष स्त्रोत्र का पाठ एवं स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोषव्रत कथा का पठन या श्रवण अवश्य करना चाहिए। साथ ही व्रत से सम्बन्धित कथाएँ भी सुननी चाहिए। प्रदोष व्रत महिलाएँ एवं पुरुष दोनों के लिए समानरूप से फलदायी बतालाया गया है।

कामना के अनुसार प्रदोष व्रत के दिन का चयन – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि प्रत्येक दिन के प्रदोष व्रत का अलग-अलग महत्व है। वारों (दिनों) के अनुसार सात प्रदोष व्रत बतलाए गए हैं, जैसे-रवि प्रदोष-आयु, आरोग्य, सुख-समृद्धि, सोम प्रदोष-शान्ति एवं रक्षा तथा आरोग्य व सौभाग्य में वृद्धि, भौम प्रदोष-कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष-मनोकामना की पूर्ति, गुरु प्रदोष-विजय व लक्ष्य की प्राप्ति, शुक्र प्रदोष-आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना की पूर्ति, शनि प्रदोष-पुत्र सुख की प्राप्ति। अभीष्ट की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथवा मनोकामना पूर्ण होने तक प्रदोष व्रत रखने की मान्यता है।

व्रतकर्ता के लिए विशेष- व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए। अपनी दिनचर्या को नियमित संयमित रखनी चाहिए, ब्रह्यचर्य के नियम का पालन करना चाहिए। अपनी सामर्थ के अनुसार ब्राह्यणों को उपयोगी वस्तुओं का दान करना चाहिए, साथ ही गरीबों व असहायों की सेवा व सहायता करनी चाहिए।

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