आप का क्या होगा जनाबे आली?

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मेरा कसूर क्या है? मैं देश के लोगों के लिए स्कूल और अस्पताल ही तो बनवा रहा हूं। साधारण सी चप्पल, सफेद रंग की कमीज और आंखों पर बड़ा सा चश्मा लगाए बेचारगी भरी आवाज में अरविंद केजरीवाल की इस मासूमियत से भरे अंदाज में लोकसभा चुनाव के मध्य उठाए गए सवाल से हर कोई धोखा खा जाएगा। लेकिन वास्तव में यह केजरीवाल की राजनीति का अनूठा स्टाइल है।

भाजपा मुझे अपने ही सुरक्षाकर्मियों से मरवा सकती है। भाजपा मुझे क्यों मरवाना चाहती है? मेरा कसूर क्या है? मैं देश के लोगों के लिए स्कूल और अस्पताल ही तो बनवा रहा हूं। साधारण सी चप्पल, सफेद रंग की कमीज और आंखों पर बड़ा सा चश्मा लगाए बेचारगी भरी आवाज में अरविंद केजरीवाल की इस मासूमियत से भरे अंदाज में लोकसभा चुनाव के मध्य उठाए गए सवाल से हर कोई धोखा खा जाएगा। लेकिन वास्तव में यह केजरीवाल की राजनीति का अनूठा स्टाइल है। अरविंद केजरीवाल की राजनीति का एक सीधा-सादा फॉर्मूला है जो बिल्कुल आसान है लाईट, कैमरा एक्शन और आरोप। पहले भाजपा पर हत्या की साजिश रचने का फिर हार के एहसास में नतीजों से पहले कांग्रेस की तरफ मुस्लिम वोट शिफ्ट हो जाने का और भाजपा को फायदा पहुंचाने का ओर न जाने क्या-क्या?

चार शब्दों के इस फॉर्मूले के सहारे अरविंद केजरीवाल ने अन्ना आंदोलन के जरिए पूरे देश में अपनी पहचान बनाई। जिसके बाद से वो अपने चार सूत्री कार्यक्रम पर लगातार चल रहे हैं। लेकिन दिल्ली में यह फॉर्मूला फ्लॉप हो गया। दिल्ली को सात सीटों पर भाजपा ने जबरदस्त जीत दर्ज की और सात में से छह सीटों पर तो मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रहा। सिर्फ उत्तर पश्चिमी दिल्ली सीट पर आम आदमी पार्टी दूसरे स्थान पर ही। लेकिन भाजपा उम्मीदवार और आप प्रत्याशी के मतों का फासला साढ़े पांच लाख के लगभग का रहा। लोकसभा चुनाव 2019 के परिणामों पर गौर करें तो 2014 के चुनाव में सभी सीटों पर तीसरे स्थान पर खिसकने वाली कांग्रेस ने पिछली बार के मुकाबले अपनी स्थिति को बेहतर किया। नतीजनत आम आमदमी पार्टी तीसरे नंबर पर खिसक गई।

गौरतलब बै कि 2014 के चुनावों में भाजपा को 46.40 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए थे और सूबे की सातों सीटें उनके नाम हो गई थी। वही पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी ने 32.50 प्रतिशत वोट के साथ सीटें तो एक भी हासिल नहीं की लेकिन सभी सीटों पर उसके उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे थे। साल 2013 में आप के शुरु हुए राजनीतिक सफर में जहां विधानसभा चुनाम में 40 प्रतिशत वोटों से शुरुआत करने वाली पार्टी देखते ही देखते 2015 के विधानसभा चुनाव के सहारे 54.3 प्रतिशत वोट तक पहुंच गई थी। वही कांग्रेस पार्टी 2013 के विधानसभा चुनाम में 11.43 वोट प्राप्त किए थे तो यह आंकड़ा साल 2015 में घटकर 9.7 प्रतिशत हो गया था। जिसके पीछे 2013 के चुनाव बाद आप को समर्थन देना और फिर समर्थन वापस लेने जैसे कई फैक्टर राजनीति विश्लेषकों द्वारा गिनाए गए थे।

लेकिन इस बार गठबंधन करने के आम आदमी पार्टी के सविनय निवेदन को खारिज करते हुए कांग्रेस ने एकला चलो की राह अपनाते हुए चुनावी समय में अकेले उतरने का निर्णय लिया और अपने खोए हुए जनाधार को वापस पाले की कवायद में जूझती दिखी और कुछ हद तक कामयाब भी हुई। कांग्रेस को दिल्ली में भले ही एक भी सीट हासिल नहीं हुई हो लेकिन जो कोर वोटर कांग्रेस से खिसक कर आप की तरफ शिफ्ट हो गया था और कांग्रेस को वोटों के लाले पड़ गए थे उसे कुछ हद तक पार्टी ने पाट लिया है। इसका प्रभाव जनवरी में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिल सकता है। साल 2013 में 28 सीटों से शुरु हुए आप के सफर ने 2015 में इतिहास रचते हुए 67 सीटें जीतक कांग्रेस के राजनीतिक भविष्य पर दिल्ली में ग्रहण लगा दिया था। लेकिन आगामी चुनाव में मुकाबवा जबरदस्त होने की उम्मीद है। एक तरफ भाजपा का उग्र प्रचार अभियान और नरेन्द्र मोदी लार्जर देन लाइफ छवि होगी तो दूसरी तरफ खोए हुए जनाधार को कुछ हद तक अपने पाले में लाने की सफलता से संतुलित कांग्रेस भी पूरे दम-खम से कम-बैक करने की कोशिश में होगी। ऐसे में आम आदमी पार्टी को पूर्ण राज्य के मुद्दे की मांग और काम नहीं करने देने के आरोपों के सहारे मतदाताओं को फिर से अपने पाले में करने की चुनौतियों से जूझना पड़ेगा।

अभिनय प्रकाश
लेखक पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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