संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी

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श्री गणेश
भगवान श्री गणेश

श्रीगणेश-अर्चना से जीवन में मिवता है सुख-समृद्धि, होता है संकटों का शमन
बुधवार के दिन श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना विशेष फलदायी
चन्द्रोदय होगा रात्रि 9 बजकर 57 मिनट पर

प्रत्येक शुभ कार्य को प्रारम्भ करने से पूर्व सर्वप्रथम गौरीपुत्र श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना करने का विधान है। सनातन हिन्दू धर्मशास्त्रों में भगवान श्रीगणेशजी की महिमा अनन्त है। गौरीपुत्र श्रीगणेशजी की आराधना से सुख-समृद्धि, खुशहाली मिलती है, साथ ही जीवन के समस्त संकटों का निवारण भी होता है। खुशहाली के लिए संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत रखने की पौराणिक व धार्मिक मान्यता है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि इस बार यह व्रत 22 मई, बुधवार को रखा जाएगा। ज्येष्ठ कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि 21 मई, मंगलवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात 01 बजकर 41 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 22 मई, बुद्धवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 02 बजकर 41 मिनट तक रहेगी। चन्द्रोदय रात्रि 9 बजकर 57 मिनट पर होगा। फलस्वरूप 22 मई, बुधवार को संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत रखा जाएगा। बुधवार को चतुर्थी तिथि होने से यह व्रत फलदायी हो गयी है। चन्द्रमा के बिम्ब में भगवान श्रीगणेश जी की भावना मानी जाती है, इसलिए चन्द्र उदय होने के पश्चात विधि-विधानपूर्वक चन्द्रमा को अर्घ्य देकर उनकी पूजा-अर्चना करने का विधान है।

पूजा का विधान – प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी के मुताबिक व्रत के दिन प्रातः काल ब्रह्ममुहू्र्त में उठना चाहिए। अपने समस्त दैनिक कार्यों से निवृत्ति होकर अपने अराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए व्रत के दिन सायंकाल पुनः स्नान करके श्रीगणेश जी की पंचोपचार, दशोपचार एवं षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए। श्रीगणेशजी को दूर्वा एवं मोदक अति प्रिय है, अतएव दूर्वा की माला, ऋतुफल, मेवे एवं मोदक अवश्य अर्पित करने चाहिए।

ऐसे करें मनोरथ पूर्ण – प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी के मुताबिक श्रीगणेश जी की विशेष अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए श्रीगणेश स्तुति श्रीगणेश सहस्त्रनाम, श्रीगणेश अथर्वशीर्ष, श्रीगणेश चालीसा एवं संकटनाशन श्रीगणेश स्तोत्र का पाठ करना चाहिए तथा श्रीगणेश जी से सम्बन्धित विविध मंत्रों का जप भी करना चाहिए। जिन व्यक्तियों की जन्मकुण्डली के अनुसार केतु ग्रह की महादशा, अन्तर्दशा और प्रत्यन्तरदशा में अनुकूल फल न मिल रहा हो ते संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के दिन व्रत उपवास रखकर सर्वविघ्न विनाशक प्रथम पूज्यदेव भगवान श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना करके लाभान्वित होना चाहिए। जिन्हें जीवन में संकटों का सामना करना पड़ रहा हो, उन्हें भी आज के दिन श्रीगणेश जी का दर्शन-पूजन करके व्रत रखना चाहिए। श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत महिला-पुरुष तथा विद्यार्थियों के लिए समानरूप से फलदायी है। श्रीगणेश पुराण के अनुसार भक्तिभाव व पूर्ण आस्था के साथ किए गए संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत से सर्व संकटों का निवारण होता है साथ ही सुख-समृद्धि में अभिवृद्धि होती है।

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