हिन्दुओं को राज करना नहीं आता

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यों आगे बहुत पोस्टमार्टम होगा कि 2014 में दशकों राज करने के जनादेश को मोदी-शाह ने कैसे गंवाया? आप पूछे सकते हैं कि मैं पांच साल के जनादेश पर दशकों राज की संभावना कैसे बता रहा हूं? दरअसल अपना मानना है कि मतदाताओं ने 2014 में चक्रवर्ती हिंदू राज की आस में भाजपा को जिताया था। लेकिन नरेंद्र मोदी छप्पर फाड़ जीत से होश गंवा बैठे। उन्होंने माना यह उनकी निजी जीत है। वे अपने आपको भगवान और प्रजा को अपना भक्त मानने लगे। 26 मई 2014 कोशपथ से लेकरइस चुनाव में प्रचार केआखिरी 17 मई के दिन तक नरेंद्र मोदी मनसा,वाचा, कर्मणा यह एकालाप लिए हुए हैं कि सबकुछ मेरे से है!मेरे से जनादेश, मेरे से भारत, मेरे से सरकार, मेरे से दुनिया, मेरे से पार्टी, मेरे से वोट!मतलब मोदी, मोदी, हर-हर मोदी!

यही गुजरे पांच साल का सत्व-तत्व है। मोदी इज इंडिया एंड इंडिया इज मोदी या मोदी मतलब ईश्वर के अवतार की जन-जन में मार्केटिंग, जहां नरेंद्र मोदी के गुमान, अहंकार की बदौलत है तोराजनीति की चतुराई भरी रणनीति भी है। नरेंद्र मोदी ने जाना हुआ है कि हिंदू भक्ति, आस्था और दुख-दर्द की गरीबी में ईश्वर पर आश्रित होता है। हिंदू के इस डीएनए पर ही उन्होंने अपनी राजनीति का ताना बाना बनाया। चतुराईपूर्ण वह राजनीतिक रणनीति गढ़ी, जिसमेंप्रधानमंत्री व प्रजा के रिश्ते को आस्था, भक्ति के पुल से जोड़ा गया है। नरेंद्र मोदी ने हिंदू के स्वभाव, उसकी कमजोरी को बूझ उसे अपने वशीकरण में बांधा। स्वंय ईश्वर का अवतार, भारत का पर्याय तो उस अनुसार आस्था, भक्ति पैदा करना नरेंद्र मोदी की वह नंबर एक चतुराई है, जिसने सबकुछ मोदीमय बनाया।

अब जब ऐसा होता है तो विरोधी भी होते हैं। सीधे आमने-सामने लोग आ खड़े होते हैं। बुद्धि, तर्क, समझ खत्म तो भक्ति, मूर्खता के साथ तलवारें खिंचती हैं। पाले बनते हैं। तभी सवा सौ करोड़ लोगों का, देश की राजनीति का दो हिस्सों में बंटना भी पिछले पांच सालों की खास पहचान है। इसमें परस्पर जितनी खुन्नस उतनी ही भक्तों में कट्टरता प्रबल।

जाहिर है मोदी की चतुराईपूर्ण योजना में सवासौ करोड़ की भीड़ आज या तो भक्त रूप लिए हुए है या दुश्मन रूप में। 2014 का जनादेश क्योंकि छप्पर फाड़ था इसलिए मोदी ने भक्तों की बहुलता के विश्वास में स्थायी राज की योजना बनाई।प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे अपने को भगवान विष्णु का अवतार समझ हर, हर मोदी का आह्वान चलवाया।सत्ता, मंदिरमें कन्वर्ट हुई। मंदिर के घंटों से पूरे देश को गूंजाते हुए, करोड़ों-करोड़ भक्तों की आरती, आस्था, प्रसादी पर राग मोदी बना। देश के रक्षक अकेले मोदी। मोदी, मोदी, हर-हर मोदी!

मतलब 36 करोड़ देवी-देवताओं की विविधिताओं की आस्था वाले हिंदुओं के दिल-दिमाग को पिछले पांच वर्षों में इस आरतीमें बंधुआ बनाया गया किनेता एक है। उद्धारएकेश्वरवादी हो कर मोदी को पूजने से ही होना है। और तो कोई लायक ही नहीं।एक ही ईश्वर, एक ही नेता व उसी की पूजा-उपासना!

तभी मोदी, मोदी, हर-हर मोदी!याद कीजिए नरेंद्र मोदी के भाषणों की उस पंक्ति को कि आपका डाला वोट मोदी के खाते में जाएगा। मतलब भगवान सीधे भक्त को आश्वस्त कर रहे हैं किप्रसाद का चढ़ावा सीधे मुझको। भक्तजन उर्फ वोटर उम्मीदवार, पार्टी के पंडे-पुजारी सभी को आउट मानें। अकेले एक भगवान नरेंद्र मोदी की आंखों में देखें, उन्हें अपना वोट समर्पित करें। यह हिप्नोटिज्म, सम्मोहन या वशीकरण का चतुराई भरा वह मामला है, जिसमें जादूगर सामने बैठे व्यक्ति को पूरा वशीभूत किए होता है। सो, चुनाव 2019 नरेंद्र मोदी की वशीकरण कला की परीक्षा है। उन्होंने पांच साल चतुराई से सत्ता के तंत्र-मत्रों से, मार्केटिंग और झूठ से करोड़ों-करोड़ मतदाताओं की जोवशीभूत भीड़ बनाई है उसकेवोटों का 23 मई को फैसला भी है।

लेकिन यहां, इस बिंदु पर बात गड़बड़ाती है। इसलिए क्योंकि भक्तों को वशीभूत करते-करते खुद नरेंद्र मोदी इतने बेसुध और वशीभूत हो गए कि उन्हें सुध ही नहीं हुई कि सभाओं में भीड़ जनता से नहीं, बल्कि कार्यकर्ताओं की आ रही है। हल्ला गुलाम मीडिया से है न कि आजाद मीडिया से। हल्ला अपने ही सोशल मीडिया से बनवाया हुआ है न कि प्रजाद्वारा बताई जा रही बातों से। हल्ला है तो उस हल्ले के बाहर मौन मतदाता भी हैं और वे नेता भी हैं, जिनका भाव दो टके का नहीं माना जा रहा था।

ताजा खबर है कि पिछले एक महीने में टीवी चैनलों पर नरेंद्र मोदी कोई 750 घंटे दिखे। सोचें तीस दिनों में घंटे 720 होते हैं जबकि नरेंद्र मोदी का चेहरा अलग अलग चैनलों पर 750 घंटे देखा गया। उन्होंने चेहरा भक्तों को दिखाया, और दर्शन कर भक्तों ने, एंकरों ने हर, हर मोदी किया। सब इसी में खोए रहे। नतीजतन जो संगत, पंगत से बाहर थे उनकी और ध्यान ही नहीं गया कि उनका मौन क्या सोच रहा है।

मोदी के छाए रहने, भक्तों के हर, हर करने का सिलसिला पांच सालों से है। नरेंद्र मोदी ने पांच वर्षों में हर तरह की लीला कर कण-कण में हर, हर मोदी बनवाया। उस सघनता, व्यापकता का हिसाब ध्यान करें तो 23 मई 2019 को लोकसभा की सभी 543 सीटें नरेंद्र मोदी को जीतनी चाहिए। आखिर भगवान एक और बाकी सब पप्पू, चोर, लुटेरे, भ्रष्ट, वंशवादी, पाकिस्तानी, गद्दार, देशद्रोही हैं तो 23 मई को निश्चित ही2014 से बड़ी मोदी महासुनामी आनी चाहिए!

लेकिन मेरा विश्वास (मैं गलत हो सकता हूं।) है कि उलटा होना है। 23 मई की शाम से उलटे नरेंद्र मोदी कई क्षत्रपों के दरवाजे, जातीय देवी-देवताओं की आरती उतारते हुए, साष्टांग लेट उनसे कृपा की, एलायंस की याचना कर रहे होंगे। 23 मई से नरेंद्र मोदी का असली पराभव शुरू होगा। वे याचक होंगे चंद्रशेखर राव, नवीन पटनायक, उद्धव ठाकरे, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, मायावती आदि के आगे।

फिर आप सोचेंगे कि मैं मोदी विरोध के दुराग्रह में मोदी के हारने की गणित में भटका हुआ हूं। नहीं, कतई नहीं। मैं दीवाल पर लिखी बेसिक गणित को देख आपसे पूछता हूं कि 2014 में कांग्रेस को जो 44 सीट मिली थी, क्या वो85 हो रही है या नहीं? (अभी भूलें100-125 के आंकड़े को)यदि हां, तो कांग्रेस का 40 सीटों का फायदा क्या भाजपा को सीधे 40 सीटों का नुकसान नहीं है? ऐसे ही सामान्य सवाल कि यूपी में सपा-बसपा-कांग्रेस को यदि 50 सीट मिलीं तो भाजपा के 2014 के आंकड़े में 45 सीट का नुकसान है या नहीं? मतलब भाजपा को 45+45 याकि एक झटके में 90 सीट का नुकसान। अब इसके आगे तो आप का भी यह हिसाब अपने आप बनेगा कि 90 सीट नुकसान मतलब भाजपा की 282 की बहुमत संख्या झटके में गिर 200 सीट से भी नीचे! फिर यदि आप राजद, जेएमएम, जेवीएम, एआईयूडीएफ, जनता दल(एस) जैसी छोटी पार्टियों को दो-दो, चार-चार कर 15-20 सीट दें तो मोदी,मोदी, हर, हर मोदी धड़ाम से 180 से नीचे!

ऐसा इसलिए क्योंकि हर, हर मोदी के वशीकरण की शक्तिमान आत्ममुग्धता में नरेंद्र मोदी कब खुद हर, हर हुए, इसका उन्हें ध्यान नहीं रहा।इन बातों से भीसुध नहीं बनी कि ‘पप्पू’ राहुल गांधी ने गुजरात में टक्कर बराबरी की दी है तो मध्यप्रदेश, छतीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक में कांग्रेस की सरकारें बन गई हैं। उधर मायावती-अखिलेश-अजित सिंह ने एलायंस बना लिया। मौन मुसलमान, दलित, आदिवासी, यादव औरतमाम जातियों के परंपरागत भाजपा विरोधी निश्चय कर गए हैं कि हर हर को हराना है। यह सब चुपचाप इसलिए हुआ क्योंकि आत्ममुग्धता, चतुराईयों के तानेबाने में जब जाल बनाया जाता है तो मकड़ी खुद अपने जाल में उलझती भी है।

नरेंद्र मोदी और अमित शाह की चतुराईयां उनका मकड़जाल कैसे बना बैठी इस पर बहुत लिखा जा सकता है। ऐसा पहले भी कई नेताओं के साथ हुआ है। हम हिंदुओं का हाल के सालों में यह अनुभव है कि आधुनिक अवतारी भगवानों ने अपने ख्यालों में, अपने भक्तों के घेरे में, अपनी अनन्य लीलाओं में खोए रह कर अपना पतन खुद अपनी शक्तिमान आत्ममुग्धता में किया। अचानक जाना कभी बाबा राम-रहीम का हादसा तो कभी आसाराम या रामपाल का हस्र। गजब बात है जो पिछले पांच सालों में हमने अवतारी संतों की दुर्दशा देखी तो 23 मई के बाद हमारे सामने अवतारी चक्रवर्ती राजा का हस्र भी होगा। जो हुआ और जो है वह अहंकार, आत्ममुग्धता, चतुराई की एक ऐसी त्रासद स्थिति है, जिसमें 2014 के ऐतिहासिक जनादेश का दुखद अंत तय है तो अनुभव का यह दुखद सार भी कि हम हिंदुओं को राज करना नहीं आता!

हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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