कालभैरव अष्टमी 5 दिसम्बर को, व्रत से होगा रोग संताप व कर्ज का निवारण

0
459

भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में देवी-देवताओं का प्राकट्य दिवस श्रद्धा भक्तिभाव से मनाए जाने की धार्मिक परम्परा है। इसी क्रम में मार्गशीर्ष माह का प्रमुख पर्व है श्रीकालभैरव अष्टमी। इस बार यह पर्व 5 दिसम्बर, मंगलवार को हर्ष उमंग के साथ मनाया जाएगा। ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि 4 दिसम्बर, सोमवार को रात्रि 10 बजकर 00 मिनट पर लगेगी जो कि 5 दिसम्बर, मंगलवार को अर्द्धरात्रि 12 बजकर 38 मिनट तक रहेगी। पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र 4 दिसम्बर, सोमवार को अर्द्धरात्रि 12 बजकर 35 मिनट से 5 दिसम्बर, मंगलवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 3 बजकर 38 मिनट तक रहेगा। 5 दिसम्बर, मंगलवार को प्रदोष व्यापिनी अष्टमी तिथि का मान होने से इसी दिन श्रीकालभैरव जी का उत्पत्ति दिवस भक्तिभाव से मनाया जाएगा।
धार्मिक पौराणिक मान्यता– आज के दिन देवाधिदेव महादेवजी ही कालभैरव के रूप में अवतरित हुए थे। भगवान शिव के दो स्वरूप हैं- पहला स्वरूप भक्तों को अभय प्रदान करने वाले विश्वेश्वर के रूप में तथा दूसरा स्वरूप दण्ड देनेवाले श्रीकालभैरव के रूप में, जो समस्त दुष्टों का संहार करते हैं। भगवान विश्वेश्वर (शिवजी) का रूप अत्यन्त सौम्य व शान्ति का प्रतीक है, जबकि श्रीभैरव जी का रूप अत्यन्त रौद्र व प्रचण्ड है। इसलिए इन्हें साक्षात् भगवान शिवजी का स्वरूप माना जाता है।

कालभैरवजी की पूजा विधि – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त हो स्वच्छ वस्त्र धारणकर अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात् श्रीकालभैरव जी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। भैरव जी की पंचोपचार, दशोपचार एवं षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए। श्रीभैरवजी का श्रृंगार करके उनको धूप-दीप, नैवेद्य, ऋतुपुष्प, ऋतुफल आदि अर्पित करके पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इसके साथ ही श्रीकालभैरव जी को उड़द की दाल से बने बड़े, इमरती एवं अन्य मिष्ठान्न अर्पित करने चाहिए। श्रीभैरव जी की प्रसन्नता के लिए’ ॐ श्री भैरवाय नमः’ मन्त्र का जप अधिकतम संख्या में करना चाहिए।

आर्थिक पक्ष में कर्ज की निवृत्ति के लिए करें श्रीभैरव जी के इस मन्त्र का जप-‘ ॐ ऐं क्लीम् ह्रीं भम् भैरवाय मम ऋण विमोचनाय महा महाधनप्रदाय क्लीं स्वाहा’ इस मन्त्र का जप 11, 21, 31, 51 माला या अधिकतम संख्या में जप करना लाभकारी रहता है। जप नित्य व नियमित रूप से करना चाहिए। व्रतकर्ता को दिन के समय शयन नहीं करना चाहिए। अपनी दिनचर्या को नियमित संयमित रखते हुए व्रत करके लाभान्वित होना चाहिए। श्रीकालभैरव जी का वाहन श्वान (कुत्ता) की पूजा करके उन्हें मिष्ठान्न खिलाया जाता है अथवा दूध भी पिलाया जाता है। श्रीकालभैरव जी की श्रद्धा, आस्था भक्तिभाव के साथ आराधना करने से जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्य व सौभाग्य में अभिवृद्धि होती है। पर्व विशेष पर ब्राह्मण, संन्यासी एवं गरीबों की सेवा व सहायता करने से जीवन में खुशहाली मिलती है।

ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी के अनुसार श्रीकालभैरव जी अकाल मृत्यु के भय का निवारण करते हैं तथा रोग, शोक, संताप, कर्ज आदि का भी शमन करते हैं। जिन्हें जन्मकुण्डली में ग्रहजनित दोष, शनि व राहू की महादशा, अन्तर्दशा या प्रत्यन्तरदशा चल रही हो, अथवा जिन्हें जीवन में राजकीय कष्ट, विरोधी या शत्रुओं से कष्ट, न्यायालय सम्बन्धित विवाद अथवा संकटों या मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा हो, उन्हें आज भैरव अष्टमी तिथि विशेष के दिन व्रत उपवास रखकर श्रीकालभैरव जी की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करनी चाहिए। श्रद्धालु भक्त एवं व्रतकर्ता को श्री भैरवजी की प्रसन्नता के लिए रात्रि जागरण करने से अलौकिक आत्मिक शान्ति मिलती है, साथ ही उन्हें समस्त पापों से मुक्ति भी मिलती है। श्रीभैरव जी की महिमा में श्रीभैरव चालीसा, श्रीभैरव स्तोत्र का पाठ एवं भैरव जी से सम्बन्धित मन्त्र का जप करना लाभकारी रहता है। जिन्हें अपने जीवन में शारीरिक, मानसिक कष्ट या स्वास्थ्य सम्बन्धित परेशानी हो या कर्ज की अधिकता से कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा हो, उन्हें भी आज के दिन भैरवजी का दर्शन-पूजन करके व्रत रखना चाहिए।

काशी में विराजते हैं अष्टभैरव देव – काशी में अष्टभैरव के विग्रह विराजमान हैं, भैरव अष्टमी के दिन इनके दर्शन-पूजन का विशेष महिमा है। प्रथम-चण्ड भैरव (दुर्गाकुण्ड), द्वितीय रुद्रभैरव (हनुमानघाट), तृतीय क्रोधन भैरव (कामाख्यादेवी-कमच्छा), चतुर्थ-उन्मत्त भैरव (बटुक भैरव-कमच्छा), पंचम-भीषण भैरव (भूतभैरव-नखास), षष्ठम् असितांग भैरव (दारानगर), सप्तम-कपाल भैरव (लाट भैरव), अष्टम संहार भैरव (गायघाट)। श्रीकालभैरव जी को काशी का कोतवाल माना जाता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here