कोई फर्क नहीं पड़ेगा यगि मतगणना एक गिन के बजाय तीन दिम हुई। मगर पहली जरूरत जन-जन में ईवीएम पर बने अविश्वास को खत्म करने की है। पहली जरूरत है जो 2019 का चुनाव शक-अविश्वास का गृह युद्ध न बनवा डाले। जब हर ईवीएम मशीन के साथ वीवीपैट मशील लग गई हो, पर्चियों का रिकार्ड बन रहा है तो पर्चियों की काउटिंग कुछ और बढ़ा लेने के फैसले में हर्ज क्या है।
मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा और उनके दो साथी आयुक्त जिद्द नहीं करें। कोई फर्क नहीं पड़ेगा यगि मतगणना एक गिन के बजाय तीन दिम हुई। मगर पहली जरूरत जन-जन में ईवीएम पर बने अविश्वास को खत्म करने की है। पहली जरूरत है जो 2019 का चुनाव शक-अविश्वास का गृह युद्ध न बनवा डाले। जब हर ईवीएम मशीन के साथ वीवीपैट मशील लग गई हो, पर्चियों का रिकार्ड बन रहा है तो पर्चियों की काउटिंग कुछ और बढ़ा लेने के फैसले में हर्ज क्या है। भारत राष्ट्र-राज्य, सवा सौ करोड़ लोगों के लोकतंत्र का दुनिया में यह सुन कर उलटे मान बढ़ेगा। चुनाव आयोग की साख बढ़ेगी कि चुनाव को विश्वासनीय, सौ टका ईमानदार बनाने के लिए, शक दूर करने के लिए राजनीतिक दलों की मांग में पर्चियों से ईवीएम की मतगणना का मेल कराने का अनुपात बढ़ाया गया। मतगणना एक दिन के बजाय तीन दिन हो या इस काम की मैनपावर दो-तीन गुणा बढ़ भी जाए तो क्या फर्क पड़ता है।
जब दो महीने चुनाव प्रक्रिया चल सकती है, अरबों रुपये खर्च होते हैं तो मतगणना में दो-तीन दिन का समय लगे या कुछ खर्चा बढ़े तो दुनिया की छठी आर्थिकी वाला भारत इतना और वहन करने में समर्थ है। भारत के लोग धैर्य के साथ दो-तीन दिन इंतजार कर लेंगे तो दो-तीन दिन सस्पेंस में भी रह लेंगे लेकिन जनादेश सौ टका भरोसा तो लिए होगा। आप जानते हैं मैं ईवीएम मशीन पर शक नहीं करता हूं। लेकिन मैं इन दिनों बार-बार, लगभग हर दिन जनता के बीच से यह दलील सुनता हूं कि ईवीएम मशीन की धांधली से नरेंद्र मोदी चुनाव जीतेंगे। पूरे देश में ईवीएम मशीन पर इतना गहरा संदेह फैला है कि यदि जनमत संग्रह हो तो बहुसंगया में लोग शक जाहिर करेंगे कि हां, ईवीएम से धांधली हो सकती है। अपना मानना है कि यदि ईवीएम का शक दूर नहीं क या तो उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में चुनाव नतीजों के बाद नतीजों को नहीं मानते हुए लोग सड़क़ों पर उतर सकते हैं। देश सूडान, नाइजीरिया, जिंब्बावे जैसी चुनावी धांधली, गृह लड़ाई वाली सुर्खियां लिए हुए होगा।
हां, मुझे अखिलेश यादव के तमतमा, चेहरे से वह बिंदु समझ आया, जिसका बुनियादी पेंच है कि यदि रामपुर, कैराना, फूलपुर, गोरखपुर में भाजपा चुनाव जीती तो उत्तर प्रदेश की आबादी में से क्या बराबरी का बड़ा जनसमूह नतीजे के खिलाफ सड़क पर नहीं उतरेगा। चुनाव आयोग कैसे तब भरोसा करा सकेगा कि ईवीएम ने सही काम किया। मगर हां, यदि चुनाव आयोग ईवीएम के साथ अच्छी संख्या में इन सीटों की वीवीपैट मशीन की पर्चियों से भी काउंटिंग करवाता है और दोनों ही तरह की मतगणना में एक सा नतीजा निकलता है तो रामपुर, कैराना, फूलपुर, गोरखपुर में भी भाजपा का जीतना लोगों के गले उतरेगा फिर भले रामपुर में 55 प्रतिशत मुसलमान वोट हों या पिछले एक साल में भाजपा गोरखपुर, कैराना, फूलपुर सीट हारी है लेकिन इस चुनाव लोगों ने मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट दिया। ऐसा भरोसा ईवीएम व वीवीपैट मशीन की पर्चियों मतलब दोनों तरह की काउंटिंग से ही बनसकता है। केवल ईवीएम की मशीनी गिनती से नहीं बनेगा! मैंने ये उदाहरण क्यों दिए।
इसलिए क्योंकि रामपुर में मतदान के दिन जब अखिलेश यादव को मैंने ईवीएम और वीवीपैट पर तमतमा, देखा, उन्हें चुनाव आयोग पर नाराज देखा तो लगा कि यगि अखिलेश यादव भी ईवीएम को लेकर शक का ऐला लहजा बना बैठे हैं तो निश्चित ही उन्हें मतदान केन्द्रों पर ईवीएम, वीवीपैट मशीनों को लेकर भारी संख्या में शिकायत है। जिससे अखिलेश यादव इतना बोले। अपना मानना है कि अखिलेश यादव शिष्ट नेता हैं। संतुलित बोलते हैं। वे अपने चुनावी भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ का भी नाम लेने से बचते हैं। वे आलोचना और कटाक्ष भी सधे अंदाज में करते हैं। उन्होंने पहले मायावती की तरह ईवीएम मशीन को इश्यू नहीं बनाया था। लेकिन तीसरे चरण के मतदान के साथ पूरे देश में चौतरफा अंदाज में सभी तरफ से विपक्षी पार्टियों के नेता या लोगों के अनुभव की जो खबरे हैं उसने शक को भारी बनवाया है। वीवीपैट मशीनों के फेल होने की शिकायत ने अखिलेश यादव को गुस्से में बनाया है तो चुनाव आयोग को अपनी तह सोचना चाहिएए सुप्रीम कोर्ट में जा कर कहना चाहिए कि वह शक दूर करने के लिए काउंटिंग को लेकर और नए बंदोबस्त कर रहा है।
हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं