परमाणु-समझौते को लेकर डोनाल्ड ट्रंप का अमेरिका ईरान से इतना नाराज है कि उसने अब ईरानी तेल खरीदने पर प्रतिबंध की घोषणा कर दी है। 2 मई के बाद जो भी राष्ट्र ईरान से तेल खरीदेगा, अमेरिका उसके खिलाफ कार्रवाई करेगा। दूसरे शब्दों में ईरान का हुक्का-पानी बंद करने पर अमेरिका तुल पड़ा है। भारत ईरान से 11 बिलियन डॉलर का अपना 11 प्रतिशत तेल आयात करता है। इसी प्रकार वह वेनेजुएला से भी लगभग 6.4 प्रतिशत तेल हर साल खरीदता है।
ट्रंप ने वेनेजुएला पर भी प्रतिबंध लगा रखा है। याने भारत के कुल तेल-आयात का 17 प्रतिशत खतरे में पड़ जाएगा। यो भी तेल की कीमत 64 डॉलर प्रति बेरल से बढ़कर 74 डॉलर हो गई है। इसी कारण डॉलर के मुकाबले रुपया गिर गया है। लेकिन भारत में तेल के दाम अभी नहीं बढ़े हैं, क्योंकि सरकार यह खतरा मोल नहीं लेना चाहती, खासतौर से चुनाव के मौसम में। उसने अमेरिकी प्रतिबंध की भी निंदा नहीं की है, जैसी कि चीन-जैसे कुछ देशों ने की है।
भारत सरकार का कहना है कि वह अपने तेल की कमी इराक, सउदी अरब और अमारात से कह कर पूरा करेगी। अमेरिका भी तेल भेज सकता है। लेकिन कांग्रेस ने कहा है कि मोदी सरकार ने भारत की संप्रभुता खो दी है, क्योंकि वह ट्रंप के दबाव में आ गई है। ट्रंप ने हमारी संप्रभुता पर सर्जिकल स्ट्राइक कर दी है। यह प्रतिक्रिया जरा अतिवादी है। हम यह क्यों भूल रहे हैं कि ट्रंप मसूद अजहर के मामले में भारत का कितना साथ दे रहे हैं और पाकिस्तान को आतंकवाद से मुक्त करने के लिए कितना दबाव डाल रहे हैं।
वे भारत द्वारा संचालित ईरान के चाहबहार-प्रोजेक्ट में भी कोई अड़ंगा नहीं लगा रहे हैं। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपेयो ने आश्वस्त किया है कि इस प्रतिबंध का मित्र-राष्ट्रों पर वे कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ने देंगे। लेकिन यह समझ में नहीं आता कि ईरानी तेल का रुपए में जो भुगतान होता है और बदले में ईरान जो भारतीय माल खरीदता है, उसकी भरपाई डॉलरों में कैसे होगी, कौन करेगा?
ईरान पर अमेरिका की यह एकतरफा कार्रवाई शुद्ध ब्लेकमेल से कम नहीं है, हालांकि उसके पीछे कुछ अनुमानित कारण भी हैं लेकिन उनका समाधान संयुक्तराष्ट्र संघ के जरिए होता तो कहीं बेहतर रहता। ईरान के साथ हुए छह राष्ट्रों के परमाणु-समझौते को अकेले अमेरिका ने रद्द करके फिर से अपनी विश्व-दादागीरी जमाने की कोशिश की है।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं