ऐसा देश है मेरा… जिसे आप चुनने जा रहे हैं उनकी अमर्यादित भाषा देख शर्म आ जाये, और शर्म आनी चाहिए लोकतंत्र के इन प्रहरियों को भी जो राष्ट्र को आगे रखकर पाकिस्तान भेजने का वीजा बात-बात पर तैयार करते हैं। शर्म आनी चाहिए धर्म के इन ठेकेदारों को जो धर्म का सर्टिफिकेट बांटते रहते हैं। शर्म आनी चाहिए इन खादी का सफ़ेद कुर्ता-पायजामा और गांधी जी की टोपी लगाने वाले सफ़ेदपोशों को। हमें और आपको शर्म आती है जब कुछ नेता अपनी सियासत के आगे अपशब्दों तक पहुंच जाते हैं। सोचना चाहिए पार्टी के उन शिर्ष नेताओं को उन अध्यक्षों को जो समाज में एक सुसभ्य समाज की दुहाई देते नहीं थकते हैं।
यदि बात अगर कर ली जाए 2019 लोकसभा चुनाव की तो कमी इसमें में भी कुछ नहीं रही है। नेताओं ने जुबानी बाण खूब चलाएं हैं। सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी वोटों का धुर्वीकरण करते नज़र आये उन्होंने कहा सपा-बसपा कांग्रेस यदि तुम्हारें ‘अली’ हैं तो हमारे पास भी ‘बजरंग बली’ हैं। वहीँ मायावती भी मुस्लिमों से वोट के लिए ख़ास अपील करती हुई नज़र आयी। आज़म खान ने तो गज़ब कर दिया वो तो महिला की चड्ढी तक का कलर बताने लगे। शर्म! शर्म ! शर्म! लोकतंत्र में इससे गन्दी भाषा और क्या हो सकती है। कुछ नेताओं की भाषा तो इतनी अमर्यादित है की उसका ज़िक्र हम नहीं कर सकते हैं। वोट पाने के लिए नेताओं के बिगड़े बोल सामने आ रहे हैं, चुनाव में निजी हमले हो रहे हैं. नेता अपनी मर्यादा भुलकर निजी हमले कर रहे हैं। इस पर चुनाव आयोग ने कार्रवाई की है, लेकिन फिर भी बदजुबान जारी है. नेता अब भी विवादित बयान दे रहे हैं।
चुनाव आयोग ने कुछ नेताओं पर कार्रवाई जरूर की है लेकिन नेता सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं। लेकिन सवाल ये है क्या दो या तीन दिनों के बैन से कोई फ़र्क़ पड़ेगा? मुझे तो नहीं लगता कोई फ़र्क़ पड़ेगा। गन्दी भाषा का कितना असर जनता और समाज पर पड़ेगा ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन क्या आपने कभी सोचा हैं आपका प्रतिनिधि, आपका प्रतिनिधित्व करने वाला जिसे आप अपना नेता चुनने जा रहे हैं उसकी इमेज समाज में क्या है ? क्या आप चाहते हैं नेताओं की भाषा अमर्यादित हो? क्या आप चाहते हैं वो गन्दी भाषा का इस्तेमाल करे? अभी दो चरणों के मतदान खत्म हुए हैं 5 चरणों के अभी बाकी हैं EC को सख़्त कार्रवाही करनी चाहिए चाहे कोई भी हो किसी भी पार्टी का हो…यदि पुरे चुनाव में बैन हों तो कुछ हद तक सुधार किया जा सकता है ! चलिए आपको थोड़े अतीत के पन्नो को उलट कर देखना होगा, ठीक आज से 5 साल पहले यानी 2014 के लोकसभा चुनाव में नेताओं ने आपस में एक दूसरे को क्या कुछ नहीं कहा।
कुत्ता, जानवर, चूहे, राक्षस…जी हाँ , ये किसी बच्चों के बीच लड़ाई में इस्तेमाल होने वाले शब्द नही है। बल्की हमारे नेता चुनाव खत्म होते-होते अपना आपा खोते दिख जाते हैं। बदजुबानी के इस खेल में कोई भी पार्टी पाक साफ नहीं है। बीजेपी भी प्रियंका गांधी के पती रॉबर्ट वाड्रा पर पिछले चुनाव में सीडी रिलीज कर रही थी। तृणमूल कांग्रेस नरेंद्र मोदी को गुजरात का कसाई कहती है, तो सलमान खुर्शीद को उनकी आंखे राक्षस जैसी दिखती है। पीएम नरेंद्र मोदी खुद अपने भाषणों में पूछ रहे है की ममता बनर्जी की पेंटिंग इतनी महंगी क्यों बिकी और जवाबी हमले में फारुक अब्दुलाह कहते है कि सारे मोदी समर्थक समंदर में डूब जाएं। समाजवादी पार्टी नेता अबू आजमी ने कहा कि जो मुसलमान सपा को वोट नहीं देगा, उसका डीएनए टेस्ट कराना चाहिए। जो मुसलमान लोकसभा चुनाव में सपा को वोट नहीं देगा, वह सच्चा मुसलमान नहीं है।
उस वक्त के बीजेपी यूपी प्रभारी अमित शाह ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सामुदायिक नेताओं की एक बैठक में कहा था, ‘उत्तर प्रदेश और खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए यह चुनाव सम्मान की लड़ाई है. यह चुनाव ‘बेइज्जती’ का बदला लेने के लिए है। यह चुनाव उन लोगों को सबक सिखाने का मौका है जिन्होंने जुल्म ढाए है। ‘ वहीँ आम आदमी पार्टी के प्रमुख और दिल्ली के मौजूदा सीएम अरविंद केजरीवाल ने अमेठी के लोगों से कहा था कि अगर उन्होंने लोकसभा चुनाव में बीजेपी या कांग्रेस को वोट किया तो यह देश और खुदा से ‘गद्दारी’ होगी। इस बयान पर चुनाव आयोग ने उन्हें नोटिस भी भेजा। वहीँ योग गुरु बाबा रामदेव ने भी उस वक्त के कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बारे में विवादित बयान दिया। राहुल गांधी का मजाक उड़ाने के लहजे में उन्होंने कहा,वह दलितों के घर पिकनिक और हनीमून मनाने जाते हैं।
राजनीति किस तरह से एक गठबंधन में बदल जाती है ये उदहारण पेश किया है बुआ और बबुआ की जोड़ी ने, 2014 के चुनाव को याद कीजिये जब समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने यूपी की पूर्व सीएम और बसपा प्रमुख मायावती पर आपत्तिजनक बयान देते हुए कहा कि हम मायावती को क्या कहें। उन्होंने कहा कि मायावती को श्रीमती कहें या कुंवारी, बेटी या बहन कहें। कांग्रेस सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे सलमान खुर्शीद ने झांसी में नरेंद्र मोदी को राक्षस तक कह डाला। इतना ही नहीं, उन्होंने कहा कि मोदी जब भाषण देते हैं तो ऐसा लगता है, जैसे कोई भोंपू लगा हो। इन लोकसभा चुनावों में संसदीय भाषा की मर्यादाएं पार करने वालों की सूची में बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी का नाम भी आ गया है।
लेकिन फिल्मों की कहानी लिखने वाले लेखक भी यह साबित कर सकतें हैं कि अगर ढंग का संवाद, पटकथा न हो तो उनके शब्द किसी अनाड़ी निशानेबाज की गोलियों की तरह हैं, एक गुड्डू पंडित हैं, जो बागपत में वोटरों को धमका चुके हैं अगर हमारे यहां शासक का चुनाव वोट से होता है और इस प्रक्रिया में देश इतना सारा पैसा और समय खर्च करता है तो इसका एक अर्थ है। अर्थ यह है कि हम शांतिपूर्ण और सुसंस्कृत तरीके से अपने नेता चुनना चाहते हैं, वरना तलवार से फैसला करने का मध्ययुगीन ढंग ही क्या बुरा है? लेकिन, अपनी जुबान का तलवार की तरह इस्तेमाल करने वाले ये सत्ता के दावेदार सिर्फ यही साबित करते हैं कि विचारों का युद्ध लड़ने की उनकी सामथ्र्य नहीं है और वे हिंसक ढंग से ही लड़ सकते हैं। वाणी की हिंसा भी लोकतंत्र की प्रक्रिया को उतना ही गन्दा बनाती है, जितनी शारीरिक हिंसा।
अब सवाल ये है कि क्या 2014 और 2019 के चुनाव में वोट डालने वाले लाखों-करोड़ों भारतीयों का हक नही है कि उनके नेता शालीनता बनाए रखें। सभ्य भाषा का इस्तेमाल करें, मुद्दों की बात करें, निजी अटैक करके लोगों को भटकाएं नहीं। संयमहीनता के लिए कुछ नेता चुनावों में चर्चा में रहते हैं, वे कहीं न कहीं ऐसे लोग हैं, जो अपना गैरराजनीतिक और अनुभवहीन होना साबित कर रहे हैं। इससे उन्हें राजनैतिक नुकसान ही होगा, लेकिन यह उन्हें सोचना चाहिए, जो इनके नेता और राजनैतिक मार्गदर्शक हैं। राजनैतिक संवाद की स्तरहीनता से किसी को फायदा नहीं होता। सिवाय नुकसान के।लोकतंत्र के इस महापर्व में आपका एक-एक वोट कीमती है अपने मत का इस्तेमाल सोच समझ कर करें। जाती धर्म के नाम पर नहीं बल्कि अपना नेता अपनी समझ से चुनें।