चुनाव आयोग की बंदिशे अपनी जगह हैं और सियासी दलों का पैतरा अपनी जगह। एक कहावत है, तू डाल-डाल, मैं पात-पात। मौजूदा सियासी परिदृश्य पर मुहावरा फिट बैठता है। आज मतदान का दूसरा चरण है और नेताओं ने वोटरों को साधने के दूसरे तरीके ढूंढ लिए हैं। योगी आदित्यनाथ मंदिर-मंदिर श्री हनुमान चालीसा पढ़ रहे हैं और जिस वजह से उनकी चुनाव प्रचार में मांग रहती है उसे मौन रहकर भी बाखूबी अंजाम दे रहे हैं। मायावती, मेनका और आजम खान जरूर घर से ही अपनी टीम को दिशा-नेर्देश दे रहे हैं। इस सबके बीच नेतागण जाति कार्ड भी फेंट रहे हैं। एक जनसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा है कि नामदार को मोदी सरनेम लगाने वाले सोच दिखाई देते है। मुझे कहें तो ठीक, पूरे समुदाय के बारे ऐसी बाते सहन नही होगी। इस दौड़ में कांग्रेस भी किसी से कम नहीं है।
पिछले की राजनीति की काट में राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलौत ने भी कह दिया कि मौजूदा राष्ट्रपति कोविंद जाति की वजह से सर्वोच्च पद पर ही है। तो इस वार और पलटवार के सियासी दौर में चुनाव आयोग के सामने नेताओं की बदजुबानी के बढ़ते मामले एक बड़ी चुनौती बन गये हैं। ठीक है फिलहाल की कार्रवाई से सुप्रीम कोर्ट में संतोष का भाव जगा है लेकिन नेता तरह-तरह से चुनाव को मुद्दों से अलग संवेदनशील विषयों पर केन्द्रित करके जीत की राह बनाने में लगे हुए हैं। बुधवार को ही साध्वी उमा भारती ने भी कांग्रेस महासिचव प्रियंका वाड्रा पर राबर्ट वाड्रा को लेकर जो विवादास्पद टिप्पणी की है उसकी उन जैसी अनुभवी नेता से तो अपेक्षा नहीं हो सकती पर चुनावी मौसम में शील, मर्यादा को किनारे रखने की होड़ मची हुई है। चुनाव प्रचार के गिरते स्तर को देखते हुए जरूरी हो गया है कि आचार संहिता की पुनःसमीक्षा हो, ताकि नई चुनौतियों से निपटने वाले तौर-तरीकों को सहिंता का हिस्सा बनाया जा सके।
चुनाव आयोग के पास पहले ही निर्वाचन संबंधी तमाम कार्य है, उसमें बढ़ती स्तरहीनता से निपटने के लिए अलग से व्यवस्था की जरूरत होगी। उसके अभाव में मनमानी बढ़ती जाएगी। इसके अलावा सोशल मीडिया में जिस तरह जहक उगलने वाले वीडियो चल रहे हैं उन पर रोक लगाने की शुरूआत स्वागत योग्य है। ट्विटर इंडिया ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के वायरस वाले ट्वीट को भारत में दिखने पर रोक लगा दी है। ट्विटर इंडिया ने सांप्रदायिक प्रकृति के 34 ट्वीट के खिसाफ ऐक्शन लेते हुए या तो उन्हें अपनी वेबसाइट से हटा दिया है या फिर उसे भारत में दिखने पर रोक लगा दी है। फेसबुक ने भी इधर सख्ती बरती है लेकिन यूट्यूब पर विवादित वीडियो की भरमार है। उस प्लेटफार्म पर भी सख्ती बरते जाने की जरूरत है ताकि लोगों के बीच दुर्भाव और वैमनस्यता ना फैल सके। यह वाकई बड़ी चिंताजनक बात है कि सियासत में चुनाव का वक्त ऐसा है जब हमारे नेतागण किसी भी हद से गुजरने के लिए तैयार रहते हैं और जेहन में सिर्फ एक बात होती है कि किस प्रकास सत्ता हथियाई जा सके। मुद्दों पर चर्चा नहीं होती। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पूरा चुनाव बेवजह की बातों के बीच हो रहा है।