हर दल के अपने बयानवीर हैं। जिसे देखिये वही जो मन में आता है करने से गुरेज नहीं करता। यह तब है जब चुनाव आयोग की तरफ से बंदिश है। सियासी लाभ के लिए राजनीतिक दलों के बयानवीर मर्यादा को लांघने से बाज नहीं आते। ताजा मामला यूपी के रामपुर से भाजपा की तरफ से चुनाव लड़ रहीं जयाप्रदा का है। उन्होंने शनिवार को जनसभा में अपना दुखड़ा रोया और सपा के कद्दावर नेता आजम खान पर आरोप लगाया कि किस तरह उन्होंने उनकी छवि को बिगाड़ने का काम किया है विवादास्पद बदजुबानी की सो अलग। मुलायम सिंह यादव से भी की गयी शिकायत काम ना आई और आजम खान अपने बड़बोलेपन के लिए पहले से मशहूर हैं। गाहे-बगाहे बदजुबानी के मामले भी सामने आते रहे हैं। खासतौर पर जयाप्रदा को लेकर उनकी टिप्पणियां पहले भी चर्चा में रही है और अब खास तौर पर क्योंकि खुद पहली बार रामपुर लोकसभा सीट पर आजम खान चुनाव लड़ रहे हैं।
स्त्रियों को लेकर उनकी टिप्पणियां पहले भी चर्चित रही हैं और इन दिनों उनकी नई टिप्पणी चर्चा में है जिसमें उन्होंने एक जनसभा में बजरंग अली का नारा लगवाया था। ऐसा उन्होंने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस नारे के जवाब में कहा जिसमें योगी ने कहा था कि उसके अली तो हमारे बजरंग बली। वोटों के लिए चल रही सियासत में बोल बहुत से नेताओं के बिगड़ गये हैं। भाजपा के गिरिराज सिंह बदजुबानी के लिए पहले से मशहूर है। अब ऐसी स्थिति में सबसे दयनीय स्थिति चुनाव आयोग की हो गयी है जिसके पास वैसे तो ऐसे मामलों में नोटिस देने और जवाब तलब करने का अधिकार है, लेकिन चुनाव निरस्त करने जैसी कठोर व्यवस्था के अभाव में यह कागजी कवायद ही साबित होती है। ऐसे मामलों में सख्त कारवाई किए जाने की जरूरत है ताकि ऐसी प्रवृत्ति पर रोक लग सके। चुनावी मौसम में मोदी की सेना हके जाने पर आयोग न चेतावनी देकर बात खत्म कर दी। मयावती को सिर्फ मुस्लिमों को ध्यान में रखकर दिये बयान पर आयोग ने नोटिस भेजा तो बाद में बसपा सुप्रीमों का टोन बदल गया।
उन्होंने कहा कि उन्हें बजरंबली और अली दोनों के वोट चाहिए और यही नहीं रुकी, यह भी कहा कि बजरंग बली तो दलित बिरादर से आते है। दरअसल ध्रवीकरण का यह खेल चुनाव के दिनों में तेजी पकड़ लेता है। यही वजह है कि गिरिराज जैसे लोग मुसलमानों को पाक जाने की सलाह दे बैठते है। एक केन्द्रीय स्तर की मंत्री रामजादे कहने से गुरेज नहीं करती। प्रियंका वाड्रा पर स्त्रियोचित टिप्पणी कर दी जाती है। प्रधानमंत्री को चोर कह दिया जाता है। स्मृति ईरानी के एफीडेविट पर सवाल उठाते हुए सारी गरिमा गिराने में गर्व महसूस किया जाता है। तो स्थितियां वाकई काफी चिंताजनक है। शायग पहली बार है कि हर तरफ से चुनाव अभियान बहुत ही गंदे तरीके से अंजाम दिया जाता रहा है। जहां लिंग और जाति व सम्प्रदाय के नाम पर नेतागण किसी भी हद तक जुबान चलाने पर आमदा दिखाई देते हैं। अब यह प्रश्न नहीं रहा कि छोटे स्तर के नेता या कुछ साख किस्म के नेताओं की जुबान बिगड़ी हुई है। इन प्रतिस्पर्धा में बड़े से लेकर सभी नेता शामिल हैं। हर पार्टी इस स्तरहीन संबोधन के लिए जिम्मेदार है। आयोग बेबस है और पार्टियां खुद बड़बोलों को बढ़ावा दे रही है। ऐसे में वोटरों से ही कोई उम्मीद रखी जा सकती है।