बसपा सुप्रीमो मायावती ने पहले भी कांग्रेस से गठबंधन के सवाल पर किनारा किया था। अब एक बार फिर उन्होंने सख्त लहजे में कांग्रेस को साफ कर दिया है कि यूपी में सपा के साथ उनका गठबंधन भाजपा को हराने के लिए काफी है। यह बयान तब आया है जब कांग्रेस ने महागठबंधन के लिए सात सीटों पर उम्मीदवार ना खड़ा करने का ऐलान किया है। दरअसल तनातनी का आलम यह है कि मायावती ने कांग्रेस को यह भी कहा है कि वो चाहे तो सभी सीटों पर चुनाव लड़े कोई फर्क नहीं पड़ता। वास्तव में जबसे प्रियंका गांधी वाड्रा का यूपी की सियासत में प्रवेश हुआ है। तबसे बसपा सुप्रीमो विशेष रूप से चौकन्नी हैं। सपा भले ही पहले से कांग्रेस के लिए पैरवी करती रही हो लेकिन बसपा के बदले रुख से उनका भी सुर बदल गया है। मायावती की नाराजगी का एक बड़ा और तात्कालिक कारण भीम आर्मी की संस्थापक चन्द्रशेखर रावण है जिसको अस्तपाल में देखने प्रियंका गांधी गयी थी और उन्होंने मुलाकात की वजह पूछे जाने पर कहा था कि उन्हें उस युवा का जोश पसन्द है।
पश्चिमी यूपी में दलितों के बीच रावण की एक अलग सी अहमियत है। युवाओं में उन्हें लेकर क्रेज है। मायावती जानती हैं कि आगे चलकर उनके लिए सियासी चुनौती पैदा हो सकती है। यही वजह है कि चन्द्रशेखर रावण की तरफ से बार-बार बुआ संबोधित किये जाने के बावजूद बसपा नेत्री ने एक दूरी बना रखी है। लिहाजा रावण से मिलने के बहाने दलित वोट बैंक में सेंध की कोशिश करती प्रियंका बसपा नेतृत्व को नागवार गुजरीं। इसके अलावा भी कांग्रेस ने बसपा के बागियों को जिस तरह पार्टी में शामिल कराकर टिकट में नवाजाए उससे भी मायावती की नाराजगी बढ़ी। हालांकि बसपा नेत्री के सख्त तेवर वाले बयान के बावजूद प्रियंका गांधी अवचलित हुए कहा है कि सबका लक्ष्य नरेन्द्र मोदी को सत्ता में आने से रोकना है और यह काम बखूबी राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में कांग्रेस कर रही है। यह सत्य है कि यूपी में कांग्रेस को पुनर्जीवित होना है तो अपने परम्परागत वोट बैंक दलित व मुस्लिम को वापस लाना होगा।
इसीलिए कांग्रेस जहां मायावती पर नरम रुख दिखा रही है वहीं दलितों के बीच पैठ बनाने की कोशिश भी कर रही है। यही वजह है कि मायावती कांग्रेस से चौकन्नी हैं। उन्हें पता है कि एक बार दलित कांग्रेस की तरफ लौटा तो पार्टी का वजूद नहीं बचेगा। बसपा नेत्री ने इसलिए यूपी में अपना सख्त तेवर बरकरार रखा है। बसपा चाहती है कि कांग्रेस अलग से लड़े ताकि भाजपा के सभी वोट बैंक में सेंध लगे ताकि उसका भी लाभ महागठबंधन के खाते में जाये। लिहाजा कांग्रेस से दूर रहकर सपा से गठजोड़ के बलबूते बसपा अपना खोया वजूद पाना चाहती है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो उसे अपना आधार पाने के लिए क्षेत्रीय दलों की नाराजगी मोल लेना ही पड़ेगा। यूपी में मायावती ने कांग्रेस को बहुत पहले से झटका दिया है। बिहार में भी कांग्रेस के लिए स्थिति सहज नहीं दिखाई देती। राजद की तरफ से सिर्फ आठ सीटें दिये जाने पर कांग्रेस के लिए नई राह पर चलना जोखिम भरा है क्योंकि आम चुनाव सिर पर है। तो बिहार से भी अच्छी खबर नहीं है।