पेगासस से जासूसी का सवार कौन ?

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ग्रीक मायथोलॉजी के मुताबिक पेगासस पंखों वाला एक उज्ज्वल, धवल घोड़ा है, जिसकी सवारी ग्रीक कथाओं का सबसे महान नायक बेलारोफॉन करता है। यह घोड़ा ग्रीक कथा संसार का सबसे जाना-पहचाना प्राणी है। लेकिन बात जब पेगासस स्पाईवेयर की होती है तो इसमें उज्ज्वल, धवल कुछ नहीं रह जाता है। इसके जरिए राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर उन लोगों की जासूसी की जाती है, जिनकी राय किसी देश विशेष की सरकार से मेल नहीं खाती है। आमतौर पर सरकारों से असहमति रखने वालों की जासूसी के लिए इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जाता है। इजराइल की संस्था एनएसओ ने इस सॉफ्टवेयर का निर्माण किया है और उसका दावा है कि वह ये सॉफ्टवेयर सिर्फ संप्रभु सरकारों या सरकारों से मान्यता प्राप्त एजेंसियों को ही बेचती है।

तभी सवाल है कि क्या भारत सरकार ने या उसकी मंजूरी से किसी खुफिया एजेंसी या राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े किसी संस्थान ने इसे इजराइल की संस्था एनएसओ से खरीदा? भारत सरकार इस सवाल का जवाब नहीं दे रही है। पिछले करीब दो साल से यह सीधा सवाल पूछा जा रहा है और सरकार इसका जवाब देने से बच रही है। बाकी सारी बातें सरकार और सरकारी पार्टी के प्रवक्ता कह रहे हैं लेकिन इसका जवाब नहीं दे रहे हैं कि सरकार ने इसे खरीदा या नहीं।

करीब दो साल पहले 2019 के आखिर में जब पहली बार पेगासस से जासूसी किए जाने और व्हाट्सऐप हैक होने की खबर आई थी तब सरकार के सूचना व प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस मसले पर संसद में जो कुछ कहा था कि लगभग वहीं बात नए आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन कही है। दोनों मंत्रियों ने अलग अलग समय में एक ही बात कही। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार की कितनी एजेंसियां, किस कानून के तहत अधिकृत रूप से फोन टेप करती हैं, लेकिन यह नहीं बताया कि पेगासस भारत सरकार ने खरीदा है या नहीं और भारत में फोन टेप करने वाली एजेंसियां पेगासस का इस्तेमाल करती हैं या नहीं।

अगर सरकार इस बात का जवाब दे तो आगे की कड़ी खुले। परंतु मुश्किल यह है कि हां या ना दोनों जवाब में सरकार फंसेगी। सरकार अगर सीधे तौर पर कहती है कि दुनिया के और देशों की तरह राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार या उसकी किसी एजेंसी ने इसे खरीदा है तो यह सवाल उठेगा कि विपक्ष के नेताओं, सरकार के मंत्रियों, अधिकारियों, संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति या किसी न्यायिक अधिकारी से राष्ट्रीय सुरक्षा को क्या खतरा था, जो उसका फोन टेप किया गया? इसका जवाब देना बहुत भारी पड़ेगा।

या तो सरकार को बताना होगा कि जिनके फोन टेप हुए हैं उनसे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है और इसका सबूत पेश करना होगा या फिर यह माना जाएगा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर राजनीतिक मकसद से अपने विरोधी नेताओं, स्वतंत्र विचार रखने वाले बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं आदि के फोन टेप किए गए। यह स्थिति सरकार को बहुत शर्मिंदा करने वाली होगी।

अगर भारत सरकार यह जवाब देती है कि उसने या उसकी किसी एजेंसी ने पेगासस सॉफ्टवेयर नहीं खरीदा है तो सवाल उठेगा कि फिर सरकार ने इस बात की जांच क्यों नहीं कराई कि भारतीय नागरिकों के ऊपर इसका इस्तेमाल कौन कर रहा है? इजराइली संस्था एनएसओ एक कारोबारी कंपनी है इसलिए उसके सॉफ्टवेयर का भारत में इस्तेमाल करने के लिए किसी न किसी ने तो उसे भुगतान किया है। अगर सरकार ने भुगतान नहीं किया है तो उसे पता लगाना चाहिए कि किसने पैसे चुकाए हैं!

अगर विपक्ष के नेता, केंद्रीय मंत्री, अधिकारी, सुप्रीम कोर्ट के जज, मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकारों के फोन हैक किए गए हैं तो यह सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह इसकी गंभीरता से जांच करे और पता लगाया कि किसने ऐसा किया है। उसे इजराइल की उस संस्था से भी बात करनी चाहिए, जिसने यह सॉफ्टवेयर बनाया है और इस पहलू से भी जांच करनी चाहिए कि कहीं उस संस्था ने ही तो जासूसी नहीं कराई है!

रविशंकर प्रसाद ने आईटी मंत्री रहते कहा था कि सरकार ने इजराइली संस्था एनएसओ को नोटिस भेजा था और उसने कहा कि जिन देशों में इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किए जाने का खुलासा हो रहा है उनमें से कई देश उसके ग्राहक नहीं हैं। इतने भर से भारत सरकार ने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली। पिछली बार जब पेगासस के जरिए व्हाट्सऐप हैकिंग का मामला सामने आया था तब कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने राज्यसभा में इसे उठाते हुए तीन संभावनाएं जताई थीं।

उन्होंने कहा था कि या तो सरकार ने कानूनी तरीके से इसका इस्तेमाल किया है या सरकार ने गैरकानूनी तरीके से इसका इस्तेमाल किए जाने की मंजूरी दी है या फिर सरकार की बिना जानकारी के अवैध तरीके से इसका इस्तेमाल किया गया है। ये तीन ही स्थितियां बनती हैं और इन तीनों स्थितियों में स्पष्टीकरण देने की जिम्मेदारी सरकार की है।

लेकिन सरकार स्पष्टीकरण देने और हां या ना में जवाब देने की बजाय डिनायल मोड में है। वह ऐसी किसी घटना से ही इनकार कर रही है। उसके पास एक रटा-रटाया जवाब है कि सरकार को बदनाम करने के लिए ऐसा किया जा रहा है। राफेल से लेकर पनामा पेपर्स तक के खुलासे में सरकार का यही जवाब था। हालांकि दूसरे देशों में सबकी जांच होती है। पनामा पेपर्स के खुलासे से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की कुर्सी गई और राफेल की जांच में फ्रांस के पूर्व और मौजूदा राष्ट्रपति दोनों की गर्दन फंसी है।

पर भारत में सरकार के लिए न पनामा पेपर्स मुद्दा हैं, न राफेल मुद्दा है और न पेगासस का इस्तेमाल कोई मुद्दा है। उसने तो कह दिया कि इस तरह की बातों से देश का विकास नहीं रूकेगा और इसके साथ ही उसकी जिम्मेदारी खत्म हो गई!

सभ्य समाजों और लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसा नहीं होता है। वहां सरकारें अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने वाटरगेट बिल्डिंग में अपनी विरोधी पार्टी की चुनावी बैठकों की रिकार्डिंग कराई थी, जिसका खुलासा होने के बाद उनको पद से इस्तीफा देना पड़ा था। भारत में भी सबसे बड़ी विरोधी पार्टी के नेता का फोन हैक किए जाने की खबर है। इस लिहाज से यह वाटरगेट कांड से मिलता-जुलता कांड है। लेकिन भारत में इतनी बड़ी घटना के बावजूद किसी की जवाबदेही तय नहीं हुई है और जिम्मेदारी लेकर इस्तीफा देने का जो सवाल ही नहीं उठता है।

फोन टेपिंग के मामले में व्यक्ति की निजता का मामला भी शामिल होता है तो सरकारों या सरकारी एजेंसियों के कदाचार का मामला भी शामिल है। इसमें सरकार की खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों की जवाबदेही का मामला भी बनता है।

आखिर किसी भी एजेंसी को राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर किस सीमा तक लोगों की निजता के उल्लंघन की इजाजत दी जा सकती है! क्या इन एजेंसियों को किसी ऐसी संस्था के प्रति जवाबदेह नहीं बनाया जा सकता है, जहां गोपनीयता के साथ साथ पारदर्शिता भी सुनिश्चित की जा सके? ऐसा हो सकता है लेकिन यह तब होगा, जब सरकार डिनायल मोड से बाहर आएगी और सरकारी पार्टी विरोधियों को बदनाम करने और अपने राजनीतिक फायदे को सर्वोच्च प्राथमिकता देना बंद करेगी।

अजीत द्विवेदी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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